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बसंत पंचमी और बाजार...

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सभी ऋतुओं में वसंत का अपना अलग महत्‍व है। वसंत का आगमन उल्‍लास और उमंग लाता है। वातावरण में विशेष स्‍फूर्ति दिखने लगती है और मन अपने कोमल और निर्मल स्‍वभाव के साथ हिलोरे लेता रहता हैऐसे में माघ माह की पंचमी का दिन ज्ञान, संगीत और कला की देवी माँ सरस्‍वती की वंदना का अवसर देता है

भारतीय संस्‍कृति में सरस्‍वती पूजन का विशेष महत्‍व है। प्राचीन समय में बच्‍चे के पढ़ाई आरंभ करने पर माँ सरस्‍वती का आह्वान किया जाता था

‘सरस्‍वती नमस्‍तुभ्‍यम्
वरदे कामरूपिणी
विद्यारंभम् करिश्‍यामि
सिद्धि भवतु मे सदा।

सरस्‍वती वंदना की यह परंपरा भारतीय संस्‍कृति में घुली मिली है और वक्‍त के साथ और प्रबल भी हुई। सभी प्रकार के ज्ञान, कला, तकनीकी और तंत्र से संबंधित उत्‍सवों में यह देखी जा सकती है। लेकिन इस उत्‍सव का महत्‍व होली, दीपावली और अन्‍य त्योहारों जैसा नहीं रहा है। इसके पीछे का एक बड़ा कारण त्‍योहारों की व्‍यावसायिकता है।

होली, दीपावली में खरीददारी जमकर होती है। इसकी वजह से इन त्‍योहारों का फैलाव भी हुआ। वहीं वसंत पंचमी के श्रद्धा, उमंग और आस्‍था का पर्व होने के कारण इसका बाजारीकरण नहीं हो पाया। यहाँ यह बात काबिले गौर है कि तमाम पर्व अपने मूल रूप के साथ इस बाजारवाद की संस्‍कृति में फल-फूल रहे हैं।

तो कैसे वसंत पंचमी इससे अछूता रह गया। इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि वसंत पंचमी भी इससे अनछूआ नहीं रह पाया है। ये जरूर सही है कि माँ सरस्‍वती को समर्पित यह त्‍योहार सिर्फ कामदेव (कामदेव के पश्‍चिमी संस्‍करण क्‍यूपिड) को समर्पित हो गया है। वेलेंटाइन डे क्‍या वसंतोत्‍सव का ही अँग्रेजी संस्‍करण नहीं है।

वैसे गत कुछ वर्षों में इस त्‍योहार को मनाने के पीछे जो मनोवृत्ति देखी गई है, वो भी इसके बाजार के पहलू के कारण है। वैसे वसंत पंचमी के इस रूप का भी स्‍वागत है। कामदेव को समर्पित इस त्‍योहार में उन्‍माद में आए प्रेम और आवेग को माँ सरस्‍वती के ज्ञान और बल-बुद्धि से इस नियंत्रण रखा जा सकता है।

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