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भगवान शुक्र व्रतकथा

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माणिकपुर नगर में तीन मित्र रहते थे। उनमें से एक कायस्थ, एक ब्राह्मण और एक वैश्य था। वे तीनों हमेशा साथ रहते थे। तीनों का विवाह हो चुका था। ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों का गौना हो चुका था लेकिन वैश्य पुत्र का नहीं।

उसके दोस्त उसे अक्सर कहा करते थे कि तुम अपनी पत्नी को उसके मायके से ले क्यों नहीं आते? तब वैश्यपुत्र धनराज ने अपनी पत्नी कुसुम को लाने का निश्चय कर लिया।

अगले ही दिन धनराज ने माता-पिता से अपनी पत्नी कुसुम को लेने जाने की बात कही। उसकी बात सुनकर वे हैरान होते हुए बोले- 'बेटे! अभी शुक्र अस्त हो रहा है। इसलिए अभी बहू को लाना उचित नहीं है। कुछ दिन ठहर रुक जाओ।' लेकिन धनराज नहीं माना। वह कुसुम को लाने ससुराल पहुँच गया।

ससुराल में धनराज की खूब आवभगत की गई। धनराज ने कुसुम को विदा करने के लिए कहा तो उसके सास-ससुर ने बोले- 'बेटे! अभी शुक्र अस्त हो रहा है। ऐसे में लड़की को विदा नहीं करते। कुछ दिन ठहर जाओ। फिर हम कुसुम को खुशी-खुशी विदा कर देंगे।' लेकिन धनराज वहाँ भी जिद पर अड़ गया और कुसुम को लेकर ही वहाँ से विदा हुआ।

धनराज कुसुम को जब अपने घर ले जा रहा था तो अचानक बैल तेजी से भागने लगे। रास्ते में पड़े पत्थर से टकराने से गाड़ी का पहिया टूट गया फलस्वरूप कुसुम को काफी चोट आई। दोनों को आगे की यात्रा पैदल ही करनी पड़ी। सुनसान रास्ते से गुजरते हुए डाकुओं ने उन्हें लूट लिया। उनका सारा धन, आभूषण और वस्त्र छीन लिए। किसी तरह वे घर पहुँचे।

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दूसरे ही दिन घर में धनराज के बिस्तर पर साँप चढ़ गया और उसे डस लिया। सेठजी ने बड़े-बड़े चिकित्सक बुलवाए मगर कोई भी चिकित्सक जहर उतारने में सफल नहीं हुआ। दूर-दूर से सपेरे बुलाए गए लेकिन कोई भी धनराज को नहीं बचा सका। धनराज की मृत्यु हो गई।

उसी समय पंडितों ने सेठजी को एक बात बताई कि आपके बेटे ने शुक्र अस्त होने पर बहू को विदा करा लाने की भूल की है। यदि आप शुक्रवार की पूजा-अर्चना करें और बहू शुक्रवार का व्रत करे तथा कथा सुनकर प्रसाद ग्रहण करे तो शुक्र देवता की अनुकम्पा से धनराज पुनः जीवित हो सकता है।

सेठजी ने पंडितों की बात मानकर अपने मृत बेटे और बहू को वापस उसके ससुराल भेज दिया। कुसुम ने अपने घर पहुँचकर शुक्रवार का व्रत और पूजा-पाठ की। उसने अपने पति की गलती के लिए शुक्र देवता से क्षमा माँगी फलस्वरूप धनराज जीवित हो उठा। धनराज के जीवित हो जाने से घर में खुशियाँ भर गईं।

उधर धनराज के माता-पिता ने बेटे के जीवित होने का समाचार सुना तो शुक्रवार का व्रत किया और गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान दिया। शुक्र के उदय होने पर धनराज अपनी पत्नी कुसुम के साथ घर लौट आया।

दोनों पति-पत्नी शुक्रवार का विधिवत व्रत करते हुए शुक्र की पूजा करने लगे। उनके घर में धन-धान्य की वर्षा होने लगी। उनके सभी कष्ट दूर होते चले गए। परिवार में सभी आनंदपूर्वक रहने लगे।

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