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माघ स्नान से स्वर्ग की प्राप्ति

नारायण को प्रिय माघ मास

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- कृष्ण गिरि गोस्वामी

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स्वर्ग लोक की इच्छा को पूरा करने के लिए माघ पुण्य स्नान का प्रारंभ हो गया है। शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा से माघ मास की पूर्णिमा तक माघ मास में पवित्र नदी नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित अन्य जीवनदायनी नदियों में स्नान करने से मनुष्य को पापों से छुटकारा मिल जाता है और स्वर्गलोकारोहण का मार्ग खुल जाता है।

महाभारत के एक दृष्टांत में इस बात का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इन दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है।

वहीं पद्मपुराण में कहा गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं। यही वजह है कि प्राचीन ग्रंथों में नारायण को पाने का सुगम मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है।


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निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें लेकिन एक दिन के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है।

॥ मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्‌ ॥
- अर्थात् जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।

संकल्प लें
॥ स्वर्गलोक चिरवासो येषां मनसि वर्तते
यत्र काच्पि जलै जैस्तु स्नानव्यं मृगा भास्करे॥
- अर्थात् माघ स्नान का संकल्प शास्त्रों के अनुसार पौष पूर्णिमा को ले लेना चाहिए। स्नान के बाद भगवान विष्णु का पूजन-अर्चन करना चाहिए। हो सके तो एक समय भोजन का व्रत करना चाहिए।

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माघ मास में दान का विशेष महत्व है। दान में तिल, गु़ड़ और कंबल का विशेष पुण्य है। मत्स्य पुराण का कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को ब्रह्मावैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से एक विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है। वहीं शास्त्रों व पुराणों में वर्णित है कि इस मास में पूजन- अर्चन व स्नान करने से भगवान नारायण को प्राप्त किया जा सकता है। वहीं मास के स्नान से स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है

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