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युवाओं में उत्साह का संचार करता वसंतोत्सव

व्रत-त्योहार मनाने की परंपरा

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सज श्रृंगार ऋतु आई वसंती, जैसे नार कोई हो रसवंती....यहां कोई नारी की बात नहीं हो रही है बल्कि वसंत ऋतु का वर्णन हो रहा है। वसुंधरा श्रृंगाररत है और उसने वासंती हार पहन धानी चूनर लहराना शुरू कर दिया है, क्योंकि 18 फरवरी, शनिवार फाल्गुन कृष्ण एकादशी से वसंतारंभ हो चुका है, जो 18 अप्रैल तक रहेगा। सर्दी ने अपनी चादर समेट ली है, मौसम अंगड़ाइयां लेने लगा है, शिशिर झोले में सारा कोहरा भरकर चल दिया है।

वसंत के स्वागत में प्रकृति का कण-कण खिलने लगा है। पेड़-पौधों-फूलों पर बहार, खेतों में सरसों का चमकता सोना, गेहूं की सुडौल बालियां, आम के पेड़ों पर लदे बौर ऋतुराज के अभिनंदन में नत मस्तक हो रहे हैं। मौसम सुहाना हो गया है। न अधिक गर्मी है न अधिक ठंड। पूरे वर्ष को जिन छः ऋतुओं में बांटा गया है, उनमें वसंत मनभावन मौसम है।

अनादिकाल से ही ऋतुएं आमजनों को आकर्षित करती आई है, तभी तो ऋतु के अनुसार व्रत-त्योहार मनाने की परंपराएं चली आ रही हैं। चंद्र की गणना के अनुसार वसंत की शुरुआत माघ शुक्ल पंचमी से मानी जाती है, इस तिथि को सरस्वती का अवतरण हुआ था। पीत वस्त्र धारण कर, पीत भोजन सेवन कर वसंत का स्वागत आज भी इसी दिन से होता है। वसंत ऋतु में मुख्य रूप से रंगों का त्योहार होली मनाया जाएगा, वहीं मंदिरों में फाग उत्सव होने लगे हैं। राग वसंत व होलियां गाई जाती हैं।

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इस दौरान महाशिवरात्रि, रंग पंचमी, शीतला सप्तमी के अलावा चैत्र नवरात्रि में घटस्थापना, नव संवत्सर आरंभ, गुड़ी पड़वा, रामनवमी, चैती दशहरा, महावीर जयंती आदि पड़ेंगे।

वसंत में मौसम न ज्यादा ठंडा होता है और न गर्म, जो कार्यक्षमता बढ़ाता है। रचनात्मक, कलात्मक कार्य अधिक होते हैं। सृजन क्षमता बढ़ जाती है। सृजनकर्ताओं की लेखनी भी वासंती यौवन पर खूब चली है। महाकवि कालिदास का ऋतु वर्णन तो अमर ग्रंथ है ही, अन्य कवि भी वसंत के गुणगान के लिए उत्साहित रहे। संभवतः अन्य ऋतुओं की अपेक्षा वसंत पर लेखन ज्यादा हुआ है। यथा - यौवन के मद में मदमाती नवयौवना...आम बौरा कर हुए वासंती, मौसम ने ली अंगड़ाई...आई वसंत ऋतु आई। रामचरित मानस अयोध्याकांड में उल्लेख है -

रितु वसंत हबह त्रिबिध बयारी।
सब कहं सुलभ पदारथ चारी॥
स्त्रक चंदन बनितादिक भोग।
देखि हरष बिसमय बस लोग॥

- अर्थात् वसंत ऋतु है। शीतल, मंद, सुगंध तीन प्रकार की हवा बह रही है। सभी को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पदार्थ सुलभ हैं। माला, चंदन, स्त्री आदि भोगों को देखकर सब लोग हर्ष और विस्मय के वश हो रहे हैं।

वसंत श्रृंगार की ऋतु है। फसलें पकने लगी हैं। वसंत में उर्वरा शक्ति अर्थात उत्पादन क्षमता अन्य ऋतु की अपेक्षा बढ़ जाती है। प्रकृति यौवन पर होती है। वृक्ष अपने पुराने पत्तों का झाड़ नववसन धारण करते हैं, वहीं नाना प्रकार के फूलों से वृक्ष लदने लगे हैं। इन दिनों बोगनवेलिया, टेसू (पलाश), गुलाब, कचनार, कनेर आदि फूलने लगे हैं।

ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार ऋतु परिवर्तन दो माह में होता है। सूर्य के सायन भ्रमण से ऋतुओं की गणना की जाती है। सूर्य की सायन मीन संक्रांति के अनुसार वसंतारंभ 18 फरवरी से हो गया है। इसके साथ ही नए वर्ष के आने के संकेत मिलने लगते हैं। बसंत में पुराने पत्ते झड़कर नए पत्ते आ जाते हैं। मौसम सुहावना, मादकता लिए होता है। युवाओं में उत्साह, उमंग का संचार होता है जो होली पर दिखाई देता है। होली भी वसंतोत्सव ही है।

- अनिता मोदी

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