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अध्यात्म व विज्ञान का संगम है संगीत

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अनुराग तागड़
संगीत उनके रोम-रोम में बसा है...सहज, सरल और मृदुभाषी इस कलाकार का सामीप्य पाकर संगीत को न जानने वाला भी मुग्ध हो सकता है। पंडिजसराज शास्त्रीय संगीत की उस ऊँचाई पर हैं, जो बिरलों को ही नसीब होती है। पंडितजी का मानना है कि भले ही देश की जनसंख्या 110 करोड़ हो, पर शास्त्रीय संगीत के उच्च कोटि के कलाकार केवल 25 ही हैं।

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शहर में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने आए पं. जसराज के अनुसार सरकार के कानों में संगीत की गूँज नहीं पहुँचती, जबकि विदेशी भारतीय शास्त्रीय संगीत पर प्रयोग कर रहे हैं।

पंडितजी के अनुसार भारतीय शास्त्रीय संगीत अध्यात्म और विज्ञान का अनूठा संगम है। संगीत के आध्यात्मिक पहलू में इतनी गहराई है कि इसके अंशमात्र के प्राप्त हो जाने पर आप स्वयं को धन्य मान सकते हो। मीराबाई और तुकाराम ने संगीत के सहारे ही मोक्ष प्राप्त किया था, इसे आप विज्ञान में रखेंगे कि अध्यात्म में?

गुरु-शिष्य परंपरा के संबंध में उनका कहना है कि पेंचवर्क वाला संगीत ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता, आपको एक गुरु के पास ही संगीत की शिक्षा लेना होगी। आपने कहा कि संगीत की विद्या दान करने की है, बेचने की नहीं। इस कारण वे ही गुरु अपने शिष्यों को अच्छा सिखा पाएँगे जो इसे ज्यादा से ज्यादा दान करेंगे।

एसएमएस से श्रेष्ठता नहीं : पंडितजी के अनुसार रियलिटी शो में एसएमएस से प्रतिभा का निर्णय किया जाता है, जो कि गलत परंपरा है। आज के युवा संगीत सोचकर जरूर सीखते हैं, पर समझदारी से गाते नहीं हैं।

गिल्ली-डंडा खेला था : इंदौर को यादों में खोजते हुए पंडितजी का कहना था कि वे सन्‌ 1962 में रेडियो के कार्यक्रम के सिलसिले में इंदौर आए थे। सन्‌ 64 में वे पं. आशकरण शर्मा के साथ जुगलबंदी गाने के लिए आए थे, तब लोग इतने पहचानते नहीं थे।

आयोजकों को भी लग रहा था कि पता नहीं किसे बुला लिया है। एक बार देखकर आते हैं कि कलाकार में दम है कि नहीं। आयोजक जब जावरा कंपाउंड स्थित हमारे रिश्तेदार के घर आए तो मैं परिवार के अन्य बच्चों के साथ गिल्ली-डंडा खेल रहा था।

पेंट-शर्ट में मुझे देखकर वे बोले कि ये गाना गाएगा। दूसरे दिन गाना सुनने के बाद आयोजक काफी शर्मिंदा हुए। इसके बाद इंदौर काफी आना हुआ।

रवींद्र नाट्यगृह जब नया बना था तो एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। तब एक ही दिन मेरा गाना, पं.सामता प्रसादजी का तबला और कुमारजी और उ. अमीर खाँ साहब का गाना था।

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