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प्यार में विश्वासघात की सच्ची कहानी

प्यार में विश्वासघात का शिकार हुआ था सुल्ताना

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लखनऊ , सोमवार, 2 अगस्त 2010 (17:32 IST)
डकैतों की दुनिया में राबिन हुड कहे जाने वाला सुल्ताना प्यार में विश्वासघात का शिकार हुआ था जो उसे आखिरकार फाँसी के फंदे तक ले गया। सुल्ताना मुसलमान नहीं बल्कि भातू जाति का था जो अपराध की दुनिया से जुडे रहते हैं। सुल्ताना पर बनी फिल्में और प्रचलित कहानियाँ उसकी वास्तविक कहानी से बिल्कुल अलग हैं।

यह सरासर गलत है कि वह इश्तेहार लगाकर डकैती डालता था और अमीरों से लूटे पैसे गरीबों में बाँटता था। हाँ इतना जरूर था कि उसने अपनी जिन्दगी में कभी किसी गरीब को परेशान नहीं किया।

प्रेमिका और उसके पति के विश्वासघात के कारण सुल्ताना पकड़ा गया और उसे आगरा के केन्द्रीय जेल में 1921 में फाँसी दे दी गई। उस पर नैनीताल की अदालत में मुकदमा चला जो 'नैनीताल गन केस' के नाम से चर्चित हुआ। लेखक जुबैर जावेद ने नैनीताल गन केस नाम से किताब लिखी जिससे सुल्ताना का सच सामने आया।

अंग्रेज कप्तान यंग को यह खबर मिली की सुल्ताना गैंडी खाता गाँव में चौकीदार मथुरा के घर ठहरा है। मथुरा की बीबी बहुत खूबसूरत थी और सुल्ताना उससे प्यार करता था। कप्तान यंग अपने सिपाहियों के साथ गाँव पहुँचे और मथुरा तथा उसकी बीबी को पैसे का लालच दिया। दोनों अंग्रेज कप्तान के कहने पर सुल्ताना को पकड़वाने पर राजी हो गए।

दोनों ने सुल्ताना को रात में खूब शराब पिलाई और उसकी बंदूक छुपा दी। सिपाहियों के आने पर सुल्ताना ने जब बंदूक की तलाश की तो वह नहीं मिली। उसने भागना चाहा, लेकिन उसे पकड़ लिया गया। धीरे-धीरे उसके गिरोह के 130 सदस्य पकड़े गए। अदालत ने सुल्ताना और दो अन्य को फाँसी तथा शेष को काला पानी की सजा दी। कालापानी की सजा पाए अंडमान निकोबार द्वीप भेज दिए गए।

सुल्ताना अपने पूरे डकैती के जीवन में पुलिस के साथ भिड़ने से बचता रहा। उसका कहना था कि यदि उसका एक साथी भी मरता है तो उस जैसा ढूँढना मुश्किल है जबकि एक सिपाही तेरह रूपों में मिल जाएगा। उस वक्त सिपाही का वेतन तेरह रुपए महीना था।

सुल्ताना मुरादाबाद जिले में हरथला बस्ती का भातू जाति का था। भातू अपराध में संलग्न रहते थे जिससे अंग्रेज हुकूमत परेशान थी। भातू जाति के अति बदनाम परिवार को बिजनौर के नजीबाबाद स्थित नवाब नजीबुद्दौला के किले में नजरबंद कर दिया गया। इन परिवार के भरण पोषण के लिए किले में ही कपड़ा बुनने का कारखाना लगाया गया।

कम मजदूरी के कारण लोगों में आक्रोश था। परिवार के मुखिया को सप्ताह में एक बार शहर जाने की अनुमति थी। इसी अनुमति के तहत एक-एक कर लोग फरार होने लगे और पास के जंगल में जमा होकर डकैती के लिए गिरोह बनाया जिसका सरगना बाल मुकुंद नामक भातू था। एक मुठभेड़ में बाल मुकुंद की मौत के बाद गिरोह की कमान सुल्ताना के हाथ आ गई।

सुल्ताना के गिरोह ने उसके दोस्त फतेह खाँ के दामाद को लूट लिया। उसे जब इसका पता चला तो न उसने पूरे पैसे लौटाए बल्कि अपनी ओर से भी जेवर और रुपए दिए। उसने गिरोह की इस हरकत के लिए दोस्त के दामाद से माफी भी माँगी। सुलताना के बारे में यह बातें जुबेर जावेद की किताब में लिखी गई हैं। (वार्ता)

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