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लंबी जद्दोजहद के बाद आरक्षण विधेयक मंजूर

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जयपुर (भाषा) , शुक्रवार, 31 जुलाई 2009 (14:25 IST)
राजस्थान के राज्यपाल एनके सिंह ने लंबी जद्दोजहद के बाद एक साल तेरह दिन से विचाराधीन राजस्थान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति, पिछड़ा वर्ग, विशेष पिछड़ा वर्ग और आर्थिक पिछड़ा वर्ग आरक्षण विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी।

विधेयक को मजूंरी मिलने के बाद गुजर्र, रेबारी, गाड़िया लुहार, बंजारा जाति को अति पिछड़ा वर्ग मानते हुए अलग से पाँच प्रतिशत आरक्षण तथा आर्थिक पिछड़े वंचित सवर्ण लोगों को चौदह प्रतिशत आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

गुजर्र नेता कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला ने आरक्षण विधेयक को मंजूरी मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए राज्यपाल एसके सिंह और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को समाज की ओर से धन्यवाद दिया।

गुजर्र प्रतिनिधि डॉ. रूपसिंह के अनुसार करौली जिले के पेंथला गाँव में पाँच दिनों से जारी महापड़ाव कल विजय महोत्सव में बदल जाएगा।

उन्होंने कहा कि कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला ने गुर्जर समाज और सर्व समाज की ओर से राज्यपाल और मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आरक्षण विधेयक के मंजूर होने से आरक्षण विधेयक में शामिल जातियों को एक नई राह मिलेगी।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में सुबह हुई मंत्रिमंडल की बैठक में प्रस्तावित आरक्षण विधेयक पर अपनी मंजूरी देते हुए राज्यपाल से आग्रह किया गया था कि संविधान और कानूनी प्रक्रिया को देखते हुए इस विधेयक को मंजूर किया जा सकता है।

राज्यपाल एसके सिंह के पास मंत्रिमंडल के निर्णय की सूचना पहुँचने के बाद विचाराधीन विधेयक को लेकर राजभवन में सरगर्मी अचानक तेज हो गई ।

सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने बाद में राजभवन जाकर राज्यपाल से करीब सवा घंटे से अधिक समय तक आरक्षण विधेयक पर चर्चा की। राज्यपाल ने चर्चा करने के बाद मुख्यमंत्री को विचाराधीन आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर करने की सहमति दी थी।

सूत्रों के अनूसार गहलौत के राजभवन जाने के बाद राज्यपाल ने आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिया। विधेयक की मंजूरी की खबर कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला को मिलते ही गुर्जर नेताओं में खुशी की लहर दौड़ गई।

अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली पूर्व कांग्रेस सरकार ने 26 मई 2003 में मंत्रिमंडल की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को चौदह प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव तत्कालीन प्रधानमंत्री अटली बिहारी वाजपेयी को भेजा था। वाजपेयी ने इसके लिए आयोग भी गठित किया था। संप्रग सरकार ने भी इस आरोप का पुनर्गठन किया था। जारी.


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