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लखपतियों का गाँव बनेगा कट्टीपार

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भोपाल (भाषा) , रविवार, 13 अप्रैल 2008 (13:15 IST)
कल तक दाने-दाने को मोहताज मध्यप्रदेश का एक आदिवासी गाँव अब जल्दी ही लखपतियों का गाँव बनने वाला है।

घने जंगलों के बीच बसे बालाघाट जिले का लगभग पहुँचविहीन एक छोटा-सा गाँव हकट्टीपार, जिसमें बमुश्किल 25 घरों की आबादी है और वह भी पूरे आदिवासियों की, लेकिन अब यह 'लखपतियों का गाँव' बनने की राह पर है।

इस छोटे से गाँव के नौ आदिवासी किसान लगभग आधा करोड़ रुपए के मालिक बनने जा रहे हैं। आजादी के छह दशक बाद भी विकास की रोशनी से कोसों दूर यह गाँव अब अपनी नई पहचान बनाने में लगा है। इसके गरीब आदिवासी किसानों को लखपति बनाने का श्रेय वन विभाग की लोक वानिकी योजना को जाता है।

महाराष्ट्र की सीमा से सटे गाँव कट्टीपार के सभी परिवार जीवनयापन के लिए वनोपज एवं मजदूरी पर निर्भर हैं। लोक वानिकी योजना के अमल में आने से इसके किसान जीवनलाल को 12.46 लाख रुपए, दसरूलाल को 9.68 लाख, पुन्नूसिंह को 5.53 लाख, भैयालाल को 5.19 लाख, सुगनलाल को 4.12 लाख, खेमलाल को 4.26 लाख, नत्थूलाल को 3.36 लाख, रेन्दूलाल को 1.91 लाख और सुमाबाई को 1.40 लाख रुपए की रकम मिलने जा रही है।

आदिवासी बहुल बालाघाट जिले के इस दूरस्थ कट्टीपार गाँव में लोक वानिकी योजना का अवलोकन करने गए संवाददाताओं के एक दल को वन अधिकारियों ने बताया कि योजना के तहत गाँव के किसानों के खेत में उनके भूस्वामी हक के इमारती पेड़ों को वन समिति के माध्यम से काटने की अनुमति दिलाकर और काटी गई लकड़ी को विभागीय डिपो में शासकीय दर पर नीलामी का इंतजाम कर दिया गया है।

हालाँकि वन विभाग की इस पहल से वर्षों से आदिवासी किसानों का शोषण कर लकड़ी का धंधा करने वाले बिचौलियों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है, क्योंकि सरकार ने अब लोक वानिकी योजना में नियमों को सरल बना दिया है, जिसमें समिति को अधिकार दिए गए हैं कि वह 15 दिनों के भीतर पेड़ों के काटने की अनुमति दिलाकर उन्हें डिपो में बेचने तक की जिम्मेदारी निभाएगी।

इसके बदले बेची गई लकड़ी के मूल्य का पाँच प्रतिशत समिति को पर्यवेक्षण शुल्क के रूप में मिलेगा। किसान को 20 प्रतिशत राशि का भुगतान काटे गए पेड़ों की दुगनी संख्या में नए पेड़ लगाने पर किया जाएगा।

कट्टीपार के लखपति बनने जा रहे किसान दसरूलाल बिना किसी हिचक के कहते हैं कि उन्हें अपने ही खेतों के पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं मिल रही थी, लेकिन वन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें अब लगभग लखपति बना ही दिया है।

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