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नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में विवाद

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नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में बरसों से भगवान शिव की पूजा कर रहे दक्षिण भारतीय पुजारियों को नेपाल सरकार ने हटा दिया। नई माओवादी सरकार ने इनके स्थान पर नेपाली पुजारियों को नियुक्त करने के आदेश दिए हैं।

इस फैसले का नेपाल में तो विरोध हुआ ही है भारत में भी इसके खिलाफ आवाज उठी। समझा जा रहा है कि यह सिर्फ धार्मिक मामला नहीं है, इसके पीछे नेपाल सरकार की कोई और चाल भी नजर आ रही है।

शंकराचार्य घटना से दुखी हैं
एम्स अस्पताल में पिछले कुछ दिनों से द्वारिका और ज्योतिर्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। लेकिन पिछले दो दिनों से वे पशुपतिनाथ मंदिर की घटनाओं से बेहद दुखी हैं। वे नेपाल के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से बात करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कई बार फोन बीच में ही कट जाता है।

शंकराचार्य पशुपतिनाथ विवाद के समाधान के लिए दिल्ली से काठमांडू तक के सत्ताधीशों से बात करने के लिए जाना चाहते हैं, लेकिन शिष्य, अनुयायी और डॉक्टर उन्हें इजाजत नहीं दे रहे हैं।

दक्षिण भारतीय पुजारियों को पूजा-अर्चना का दायित्व सौंपे जाने का कारण यह बताया जाता है कि पहले यहाँ बलि दिए जाने की परंपरा थी। शंकराचार्य ने छठी शताब्दी में इस पर रोक लगाने के लिए दक्षिण भारत के भट्ट ब्राह्मणों को पूजा का काम सौंपा था।

राजशाही काल में जब राजा की मौत हो जाती थी तो पूरा देश शोक में डूब जाता था। सालभर तक नेपाल में कोई शुभ कार्य नहीं होता था। ऐसे में पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा भी प्रभावित होती थी। पूजा पर प्रभाव न पड़े इसलिए भारत के ब्राह्मणों को काम सौंपा गया था।

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