महर्षि वाल्मीकि के अनुसार पूर्व जन्म में किया हुआ कर्म ही भाग्य कहलाता है। इसलिए पुरुषार्थ किए बिना भाग्य का निर्माण नहीं हो सकता।
हमारे पौराणिक ग्रंथ बतलाते हैं कि मनुष्य के भीतर की आत्मा उसके भाग्य से भी अधिक शक्तिशाली है। किंतु इसके साथ ही कर्म को भी अत्यधिक महत्व दिया है। सही तरीके से किया गया कर्म ध्यान बन जाता है।
पूर्ण निष्ठा से किया गया कर्म हमारी चेतना का विकास भी करता है। अतः हमें अपने कर्म ऐसे करने चाहिए जैसे कि हम प्रार्थना करते हैं। यदि सही तरीके से पूर्ण निष्ठा के साथ कर्म किया जाए तो व्यक्ति की प्रगति दस गुना अधिक होती है। अतएव प्रत्येक व्यक्ति को कर्म केवल व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से नहीं बल्कि ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना से करना चाहिए।