Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मलेशिया में 'अल्लाह' कहने की मनाही

धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल

हमें फॉलो करें मलेशिया में 'अल्लाह' कहने की मनाही
ND
अल्लाह या ईश्वर का शुक्र मनाइए कि आपका जन्म न तो मलेशिया में हुआ और न ही आप वहाँ रहते हैं। अगर आप मुसलमान नहीं होते और गलती से भी अपने ईश्वर को अल्लाह के नाम से पुकारते तो आपकी खैर नहीं थी। कोई भी हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन या अन्य गैर मुस्लिम आदमी किसी भी गैर इस्लामी संदर्भ और विमर्श में ईश्वर के लिए यदि अल्लाह शब्द लिखता या बोलता है तो उसे एक साल तक की सजा हो सकती है।

मलेशिया में 7 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल के लोगों की है और वहाँ हिन्दू और सिख धर्मावलंबियों की अच्छी-खासी संख्या है। मलेशिया में जो भाषाएँ बोली जाती हैं उनमें चीनी, थाई और अँगरेजी भाषा के साथ-साथ पंजाबी का भी नाम आता है। बहुधर्मी और बहुभाषी समाज में भाषाएँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। जैसे हमारे यहाँ ईश्वर को रब, अल्लाह, ईश्वर, खुदा, राम, रहीम, गॉड आदि किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है, वैसे ही पश्चिमी देशों में ही नहीं अरब देशों तक में चलन है।

जो समाज अनीश्वरवादी रहे हैं, वहाँ भी इस तरह की कोई बंदिश नहीं है। लेकिन मलेशिया में ईश्वर को या गॉड को या रब को अल्लाह कहने की मनाही है। मलेशिया से ज्यादा मुसलमान पड़ोसी देश इंडोनेशिया में रहते हैं, लेकिन वहाँ किसी भी धर्म का आदमी अपने ईश्वर को अल्लाह के नाम से पुकार सकता है। और तो और मलेशिया के बोर्नियो में रहने वाले ईसाई लोग अपने गॉड को अल्लाह के नाम से पुकार सकते हैं लेकिन मलेशिया की मुख्यभूमि पर इसकी मनाही है।

यही नहीं 'फतवा', 'इमाम', 'हाजी', 'शेख', 'मुफ्ती' और 'अल्लाह-ओ-अकबर' जैसे शब्द भी कोई गैर मुस्लिम लिख या बोल नहीं सकता। सब जानते हैं कि ईसाई और सिख धर्म में अल्लाह शब्द का ईश्वर के अर्थ में इस्तेमाल होता है। संत, कवियों और सूफियों ने यही सिखाया है कि ईश्वर एक है और उसे किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है। गाँधीजी का तो भजन है : 'ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सम्मति दे भगवान' इसलिए हम भारतीयों को जब यह पता चलता है कि मलेशिया में हम ईश्वर को अल्लाह नहीं कह सकते तो हमें गहरा झटका लगता है। लेकिन मलेशिया सरकार के अपने तर्क और कारण हैं।

webdunia
ND
उसने इस तरह की बंदिशें इस डर से लगाई थीं ताकि दूसरे धर्मों के लोग और विशेषकर क्रिश्चियन लोग मुसलमानों का धर्म परिवर्तन न करा लें। अल्लाह और अन्य शब्दों को लेकर विवाद वर्षों पुराना है। 1980 के दशक में करीब दो दर्जन ऐसे शब्दों की सूची बनाकर सरकार ने हुक्मनामा जारी कर दिया था। बेशक मलेशिया में मलय-मुसलमानों, ईसाइयों और हिन्दुओं आदि की अलग-अलग राजनीतिक पार्टियाँ हैं और आजादी के बाद से आज तक देश का प्रधानमंत्री मलय मुसलमान ही रहा है मगर समाज में जातीय आधार पर स्पष्ट विभाजन भी है। जब तक मलेशिया समृद्ध रहा और आर्थिक विकास की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया, तब तक किसी ने इस बात की कोई खास परवाह नहीं की कि कौन गैर मुस्लिम अल्लाह शब्द का इस्तेमाल कर रहा है।

गत दिसंबर में एक जज ने गैर मुस्लिमों द्वारा अल्लाह शब्द के प्रयोग पर लगे प्रतिबंध को उलट डाला। इस पर सरकार भड़क उठी और उसने घोषणा की कि वह इस फैसले को चुनौती देगी। इसके बाद कई चर्चों को जलाने की खबरें मिलीं। दो मस्जिदों के परिसरों में दो जंगली सुअरों के कटे सिर मिलने के बाद इस तरह चर्चों को जलाने की और खबरें आईं। बेशक किसी आदमी को मारा-पीटा नहीं गया, मगर जातीय आधार पर समाज में फाँकें और गहराने लगीं। सरकार मलय-अस्मिता के नाम पर इन फाँकों को बरकरार रखना चाहती है। सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद खुलेआम इन फाँकों के पक्ष में दलीलें दे रहे हैं और कह रहे हैं कि हर जातीय समुदाय की अलग राजनीतिक पार्टी होनी चाहिए। सत्तारूढ़ पार्टी अल्लाह-विवाद को प्रतिपक्ष को सत्ता में आने से रोकने के लिए इस्तेमाल कर रही है।

मगर यह हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों और ईसाइयों की धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल है। अल्लाह शब्द की खोज किसी मलय ने नहीं की और वैसे भी शब्द समूची मनुष्यता की संपत्ति होते हैं। शब्दों का अपना कोई धर्म नहीं होता। उनका इतिहास यही बताता भी है।

अल्लाह एक अरबी शब्द है जिसका मतलब है, वह जो सब तरह से संपूर्ण हो, - चाहे ज्ञान हो या शक्ति। विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में ईश्वर की जो कल्पना की गई है, उससे अल्लाह किस तरह भिन्न है? हाँ यह सही है कि इस्लाम में अल्लाह शब्द का इस्तेमाल सिर्फ ईश्वर के लिए हुआ है जबकि खुदा, प्रभु, गॉड, राम और रहीम जैसे शब्दों का इस्तेमाल औरों के लिए भी हुआ है। लेकिन जब सऊदी अरब या ईरान में अल्लाह को लेकर ऐसा कोई आग्रह नहीं है तो मलेशिया में क्यों हो? अव्वल तो यही पता नहीं है कि सचमुच कोई ईश्वर है भी, और अगर है तो क्या वह मुसलमानों का अलग और ईसाइयों का अलग है? हिन्दुओं का अलग और सिखों का अलग है? लेकिन मलेशिया में ऐसा बताया जा रहा है और विशुद्ध राजनीतिक हितों के लिए सरकार वहाँ एक खतरनाक खेल खेल रही है।

इस विवाद को मलेशिया के ही लोगों को सुलझाना होगा क्योंकि इससे समाज में फाँकें और गहरी ही होंगी और कोई भी देश फाँकों के साथ नहीं जी सकता। दरअसल राजनीतिक पार्टियाँ सभी देशों में प्रायः इसी तरह की जन विरोधी राजनीति करने से बाज नहीं आतीं। हमारे अपने देश में बाबरी मस्जिद प्रसंग इसका उदाहरण है। जैसे अल्लाह कोई और हो और राम कोई और है। धर्म का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व बताया गया है लेकिन हम देख रहे हैं कि राष्ट्रों के जीवन में धर्म अपने साथ विध्वंसात्मक प्रवृत्तियाँ लेकर आते हैं और विकास की इतनी बड़ी यात्रा के बावजूद हम सचमुच में सभ्य नहीं हुए हैं। या अल्लाह!

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi