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ताजुल उल मसाजिद...

जिसे माना जाता है एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद

हमें फॉलो करें ताजुल उल मसाजिद...
- श्रुति अग्रवा
भोपाल पहुँचते ही आपको दीदार होते हैं ताज-उल-मसाजिद के, जिसे आम भाषा में जामा मस्जिद के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित इस मस्जिद को ‘मस्जिदों की मस्जि’ की संज्ञा दी जाती है। कहा जाता है कि यह मस्जिद आकार में एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद है। मस्जिद के अंदर कदम रखते ही रूहानी सुकून का अहसास होता है।
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  मस्जिद के मुख्य दरवाजे से लगे एक बड़े गलियारे को पार करने के बाद आप मुख्य भवन में दाखिल होते हैं। गलियारे में काफी बड़ा जलकुंड बना है जिसमें मुख्य भवन की खूबसूरत परछाई नजर आती है। मुख्य भवन में नमाज अदा करने के लिए एक बड़ा हॉल बना है।      
मुख्य भवन में नमाज अदा करने के लिए एक बड़ा हॉल बना है। खूबसूरत नक्काशीदार खम्भों से भरे इसी हॉल से लगा एक मदरसा है, जहाँ बच्चों को दीनी तालीम दी जाती है।

गुलाबी पत्थरों से बनी सफेद गुंबद वाली यह मस्जिद स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। खुदा के बंदों का मानना है कि यह शफ्फाक गुंबद उन्हें खुदा की बंदगी और नेकी के राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। चूँकी इस मस्जिद को भोपाल के स्थानीय कारीगरों ने बनाया था, इसलिए मस्जिद की इमारत में कहीं-कहीं हिंदुस्तानी स्थापत्य कला की भी झलक नजर आती है।

मस्जिद की दीवारों पर कहीं-कहीं खूबसूरत फूल उकेरे गए हैं। कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ की बीवी कुदसिया बेगम ने करवाया था। ईद के मौके पर मस्जिद में होने वाली नमाज का माहौल देखने लायक होता है। हजारों सिर एक साथ खुदा की इबादत में झुकते हैं। मस्जिद के कुछ हिस्सों तक किसी भी मजहब को मानने वाले लोग आ सकते हैं। मस्जिद को निहारते समय आप कई लोगों को यहाँ खुदा की इबादत करते देख सकते हैं

Shruti AgrawalWD
कुतुबखाना- मस्जिद से लगा एक कुतुबखाना (पुस्तकालय) भी है। इस कुतुबखाने में उर्दू से जुड़ी कई शानदार और नायाब किताबों का संग्रह किया गया है। इन्हीं में से एक है सोने के पानी से लिखी हुई कुरान। कहा जाता है कि इस कुरान को आलमगीर औरंगजेब ने जिल्द करवाया था। इन पांडुलिपियों का पूरा संग्रह इस कुतुबखाने में बड़ी एहतियात से संभालकर रखा गया है।

इस नायाब पांडुलिप‍ि के अलावा कई नई-पुरानी किताबों का संग्रह आप यहाँ देख सकते हैं। इसके साथ ही इस कुतुबखाने में दुनिया के कई देशों की उर्दू में छपने वाली पत्रिकाओं का संग्रह है। कई पत्रिकाएँ तो इतनी नायाब हैं कि उनकी दूसरी प्रति मिलना मुश्किल है।

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इज्तिमाः- भोपाल में पिछले 60 सालों से लगातार इज्तिमा लग रहा है। पहले पहल ताजुल मसाजिद के बड़े से अहाते में इज्तिमा भरा जाता था, लेकिन फिर लोगों की तादात काफी बढ़ जाने के कारण पिछले कुछ सालों से दूसरी जगह इज्तिमा भरा जाने लगा है

कैसे पहुँचें :- भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी है, इसलिए पूरे देश से यहाँ के लिए सुलभ यातायात साधन उपलब्ध हैं।
वायु सेवा- दिल्ली, ग्वालियर, इंदौर औमुंबई से भोपाल के लिए नियमित विमान सेवा है
रेल सेवा- भोपाल, दिल्ली-मद्रास मेन लाइपर है। मुंबई से इटारसी और झाँसी के रास्ते दिल्ली जाने वाली मुख्य गाड़ियाँ भोपाहोकर जाती हैं
सड़क मार्ग- भोपाल तथा इंदौर, मांडू, उज्जैन, खजुराहो, पचमढ़ी, ग्वालियर, साँची, जबलपुऔर शिवपुरी के बीच नियमित बस सेवाएँ हैं।

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