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रिद्ध‍ि-सिद्घ‍ि के दाता सिद्ध‍ि विनायक

मनोकामना पूर्ण करने वाला मंदिर

हमें फॉलो करें रिद्ध‍ि-सिद्घ‍ि के दाता सिद्ध‍ि विनायक
- श्रुति अग्रवा
वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोट‍ि समप्रभ
निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा

धर्मयात्रा में इस बार हम आपको दर्शन करा रहे हैं रिद्ध‍ि-सिद्ध‍ि के दाता सिद्ध‍ि विनायक मंदिर के। इस मंदिर की महिमा का जितना वर्णन किया जाए, कम होगाइसे सर्व मनोकामनापूर्ण करने वाला सिद्ध मंदिर माना जाता है।

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वे दिन-रात संतान की कामना से भगवान गणेश की पूजा किया करती थीं और उनका यह गहरा विश्वास था कि एक-न-एक दिन गणेशजी उनकी यह कामना अवश्य पूर्ण करेंगे। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि यदि उनकी यह कामना पूर्ण होती है तो वे भगवान गणेश का एक भव्य मंदिर बनवाएँगी।
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सिद्ध‍ि विनायक मंदिर में गणेश प्रतिमा का रूप बेहद निराला है। मंदिर में गणेशजी की प्रतिमा श्याम वर्ण के पाषाण पर उकेरी गई है। विनायक का यह श्याम रूप बेहद मनमोहक है। इसके साथ ही शिवपुत्र की गर्दन में भुजंग लिपटा हुआ है। साथ ही गजानन के भाल पर त्रिनेत्र की तरह एक चिह्न अंकित है, जो उनके शिवरूप को दर्शाता है। गणपति का यह शिवरूप बेहद विलक्षण है, लेकिन मूर्ति पर रोज नारंगी चोला चढ़ाया जाता है, जिसके कारण प्रतिमा श्याम की जगह भगवा रंग की प्रतीत होती है।

मूर्ति की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ गणपति बप्पा लड्डू की जगह मोदक थामे हुए हैं। गणपति की मूर्त‍ि के दोनों ओर रिद्ध‍ि-सिद्ध‍ि माता की मूर्ति हैं। रिद्ध‍ि-सिद्ध‍ि को धन और विद्या की देवियाँ माना जाता है। गणेशजी के साथ रिद्ध‍ि-सिद्ध‍ि की मूर्तियाँ विराजमान होने के कारण ही इसे सिद्ध‍ि विनायक मंदिर कहा जाता है।

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Shruti AgrawalWD

गजाननं भूत गणाधिपति सेवितंकपित्थजंबू फल चारूभक्षणं।
उमासुतं शोकविनाश कारकंनमामि विघ्नेश्वर पादपंकजं।

मूर्ति में गजानन की सूँड सीधे हाथ की ओर मुड़ी हुई है। यूँ आमतौर पर विनायक की मूर्ति में सूँड को उल्टे हाथ की ओर मोड़ा जाता है। इस तरह से विघ्नहर्ता की यह मूर्त‍ि अपने आप में बेहद अनूठी है। इस मंदिर का निर्माण 19 नवंबर सन 1801 में गुरूवार के दिन पूर्ण हुआ था। कालांतर में यह मंदिर काफी जीर्ण-शीर्ण हो गया था। यह मंदिर काफी व्यस्त मार्ग पर स्थित है। मंदिर की तल और सड़क का स्तर एक समान होने के कारण पुराने मंदिर में धूल-गंदगी काफी हो जाती थी।

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यह सब देखकर एक भद्र अमीर महिला ने इस मंदिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया। इसके पीछे की कथा कुछ इस प्रकार है। प्रभादेवी में काका साहेब गाडगिल मार्ग और एस.के. बोले मार्ग के कोने पर वह मंदिर स्थित है, जहाँ वाहनों की लगातार खूब आवाजाही रहती है। माटूंगा के आगरी समाज की स्वर्गीय श्रीमती दिउबाई पाटिल के निर्देशों और आर्थिक सहयोग से एक व्यावसायिक ठेकेदार स्वर्गीय लक्ष्मण विथु पाटिल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

बहुत धन-संपन्न होने के बावजूद श्रीमती पाटिल के कोई संतान नहीं थी। वे दिन-रात संतान की कामना से भगवान गणेश की पूजा किया करती थीं और उनका यह गहरा विश्वास था कि एक-न-एक दिन गणेशजी उनकी यह कामना अवश्य पूर्ण करेंगे। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि यदि उनकी यह कामना पूर्ण होती है तो वे भगवान गणेश का एक भव्य मंदिर बनवाएँगी। वे लगातार प्रार्थना करती रहीं और अपनी शपथ पर कायम रहीं। उन्होंने एक मूर्तिकार को गणेशजी की ठीक वैसी ही प्रतिमा बनाने का आदेश दिया, जो उनके घर में टँगे कैलेंडर पर बनी हुई थी। सौभाग्य से वह गणपति भगवान की उसी प्रतिमा का चित्र था, जो मुंबई के वालकेश्वर स्थित बाणगंगा में है और जो प्रतिमा 500 वर्ष पुरानी है।

विघ्नेश्वराय वरदाय लंबोदराय
सकलाय जगद्धिता
नागाननाय सुरयज्ञ विभूषिताय
गौरीसुताय गणनाथ नमोस्तुते।


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यद्यपि उनकी यह मनोकामना पूर्ण न हो सकी, लेकिन उन्होंने सोचा कि क्यों न दूसरों की मनोकामना पूर्ण हो, दूसरी माँओं की तो सूनी गोदें भरें, इसलिए उन्होंने मंदिर बनवाने का निश्चय कर लिया। उसके बाद ही इस मंदिर का निर्माण हुआ। इस मंदिर के इतिहास को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने स्वर्गीय दिउबाई पाटिल की प्रार्थना स्वीकार कर ली, इसीलिए आज लाखों लोग यहाँ पर अपनी अधूरी मनोकामनाओं के साथ आते हैं और खुशी-खुशी वापस जाते हैं। गणपति भगवान सबकी इच्छाएँ पूरी करते हैं। यही कारण है कि यह सिद्धि विनायक मंदिर मराठी में 'नवसाचा गणपति' या 'नवसाला पवर्णा गणपति' के नाम से भी प्रसिद्ध है।

आज इस मंदिर को गजानन के विशेष मंदिर का दर्जा प्राप्त है। मंदिर की सिद्ध‍ि और प्रसिद्ध‍ि इतनी है कि आम हो या खास, सभी बप्पा के दर पर खिंचे चले आते हैं। गणेश चतुर्थी के पर्व के समय यहाँ दिन-रात लोगों का ताँता लगा रहता है। दूर-दूर से व्यक्ति गजानन के दर्शन करने यहाँ आते हैं। लोगों की मान्यता है कि नंगे पाँव सिद्ध‍ि विनायक पहुँचने पर बप्पा आपके सारे कष्ट हर लेते हैं और आपकी मनोकामना पूरी करते हैं। इसी के चलते हर बुधवार और गणेश चतुर्थी के दिन आधी रात से ही लोग अपने घर से मंदिर की ओर निकल पड़ते हैं। इस आस में कि बप्पा उनके सारे दु:ख हर उन्हें सुखी करेंगे।

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कैसे पहुँचें:- सिद्ध‍ि विनायक मंदिर मुंबई में स्थित है। भारत की आर्थिक राजधानी कहलाने के कारण मुंबई हमारे देश का इंटरनेशनल गेटवे कहलाता है और यहाँ तक पहुँचना बेहद सुगम है। सड़क, रेल, वायुयान जिससे चाहें उससे आसानी से मुंबई पहुँचा जा सकता है। मंदिर के पास में ही कई धर्मशालाएँ और होटल हैं, इसलिए यहाँ ठहरना काफी सुविधाजनक है।

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