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हरे रामा...हरे कृष्णा...

कृष्ण भक्तों का अनोखा समूह

हमें फॉलो करें हरे रामा...हरे कृष्णा...
- श्रुति अग्रवा
हररामा-हरे कृष्णा, हरे कृष्णा-हरे हरे.... कृष्ण धुन में डूबे भक्त और हर तरफ कृष्ण नाम का अनुपम स्वर। गले में तुलसी की माला डाले अपने प्रभु में लीन नाचते-झूमते अनुयायी। कहीं कोई चिंता नहीं, कोई बैर-भाव नहीं बस मस्ती प्रभु नाम की मस्ती...जो आपको अनुपम जोश से भर दे। यह अद्‍भुत माहौल होता है इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस अर्थात इस्कॉन मंदिर का।

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कृष्ण भक्ति में लीन इस अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना श्रीकृष्णकृपाश्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने की थी। गुरू आज्ञा को पूरा करने के लिए प्रभुपाद महाराज ने 59 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था। अथक प्रयासों के बाद सत्तर साल की उम्र में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की।
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गुरू भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने प्रभुपाद महाराज से कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने 59 साल की उम्र में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने की कोशिश करने लगे।
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न्यूयॉर्क से शुरू हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा जल्द ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। कई देश हरे रामा-हरे कृष्णा के पावन भजन से गुंजायमान होने लगे।

पूरी दुनिया में इतने अधिक अनुयायी होने का कारण यहाँ मिलने वाली असीम शांति है। इसी शांति की तलाश में पूरब की गीता पश्चिमों के लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी। यहाँ के मतावलंबियों को चार सरल नियमों का पालन करना होता है-

· उन्हें तामसिक भोजन त्यागना होगा ( तामसिक भोजन के तहत उन्हें प्याज, लहसुन, माँस, मदिरा आदि से दूर रहना होगा)

· अनैतिक आचरण से दूर रहना (इसके तहत जुआ, पब, वेश्यालय जैसी जगहों पर जाने की पाबंदी है)

· एक घंटा शास्त्राध्ययन (इसमें गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़शास्त्रों का अध्ययन करना होता है)

· हरे कृष्णा-हरे कृष्णा नाम की 16 बार माला करना होती है।

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Shruti AgrawalWD
इन साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस मंदिर के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह मंदिर स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के अथक प्रयासों के कारण दस साल के कम समय में ही समूचे विश्व में 108 मंदिरों का निर्माण हो चुका था। इस समय इस्कॉन समूह के तकरीबन 400 से अधिक मंदिरों की स्थापना हो चुकी है

धर्मयात्रा के तहत हम इस बार आपका परिचय करवा रहे हैं भगवान कृष्ण की शिक्षास्थली उज्जैन में बने इस्कॉन मंदिर से। सन 2006 में सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर काफी भव्य है। यहाँ मुरली मनोहर और उनकी प्रेमिका राधा की बेहद खूबसूरत प्रतिमा है। इसके अलावा कृष्ण-बलराम और कृष्ण-रुक्म‍िणी की मूर्तियाँ भी बरबस आपका ध्यान आकर्षित कर लेती हैं। इस मंदिर की रूपरेखा और इस्कॉन मंदिर के प्रवर्तक पूज्यपाद गुरुजी की मनोहारी मूर्ति भी यहाँ स्थापित की गई है। हर इस्कॉन मंदिर की तरह यहाँ तुलसी बगीचा है, जिससे तुलसी की माला बनाई जाती है। इसके साथ ही मंदिर की छत पर कमल के फूल के ऊपर रासलीला में लीन श्रीकृष्ण और राधारानी का अद्‍भुत चित्रांकन है।

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मंदिर की अपनी विशाल धर्मशाला है। यहाँ का नियम है कि यहाँ के सदस्य दस हजार रुपए जमा करवाने के बाद दुनियाभर के किसी भी मंदिर में साल में एक बार दो दिन के लिए रुक सकते हैं। इस दौरान अनुयायियों को सात्विक भोजन परोसा जाता है।


इन सभी मंदिरों की खासियत यह है कि इनकी बनावट से लेकर आंतरिक संरचना तक को एक समान रखने की कोशिश की जाती है। आप दुनिया के किसी भी इस्कॉन मंदिर में जाएँ आपको यहाँ बेहद अपनापन महसूस होगा। इन सभी खासियतों के कारण इस्कॉन के प्रति देश-दुनिया के लोगों में अगाध श्रद्धा है।
कैसे जाएँ-
सड़क मार्ग से - उज्जैन-आगरा-कोटा-जयपुर मार्ग, उज्जैन-बदनावर-रतलाम-चित्तौड़ मार्ग, उज्जैन-मक्सी-शाजापुर-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग, उज्जैन-देवास-भोपाल मार्ग, उज्जैन-धुलिया-नासिक-मुंबई मार्ग।

रेल मार्ग- उज्जैन से मक्सी-भोपाल मार्ग (दिल्ली-नागपुर लाइन), उज्जैन-नागदा-रतलाम मार्ग (मुंबई-दिल्ली लाइन), उज्जैन-इंदौर मार्ग (मीटरगेज से खंडवा लाइन), उज्जैन-मक्सी-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग

वायुमार्ग- उज्जैन से इंदौर एअरपोर्ट लगभग 65 किलोमीटर दूर है।

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