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कामाख्या मंदिर- कामरूप का कुंभ

कामाख्या में अंबुवासी मेला 22 जून से

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- रविशंकर रवि

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तंत्र-मंत्र साधना के लिए विख्यात कामरूप कामाख्या (गुवाहाटी) में शक्ति की देवी कामाख्या के मंदिर में प्रतिवर्ष होने वाले 'अंबुवासी' मेले को कामरूप का कुंभ माना जा सकता है। इसमें भाग लेने के लिए देशभर के साधुओं और तांत्रिकों का जुटना आरंभ हो गया है।

वैसे तो इस वर्ष अंबुवासी मेला 22 से 25 जून तक चलेगा, लेकिन एक सप्ताह पहले से ही तांत्रिकों और साधु-संन्यासियों व साधकों का आगमन आरंभ हो गया है। शक्ति के ये साधक नीलाचल पहाड़ (जिस पर माँ कामाख्या का मंदिर स्थित है) की विभिन्न गुफाओं में बैठकर साधना करते हैं। अंबुवासी मेले के दौरान अजीबो-गरीब हठयोगी पहुँचते हैं।

कोई अपनी दस-बारह फुट लंबी जटाओं के कारण कौतूहल का कारण बना रहता है, कोई पानी में बैठकर साधना करता है तो कोई एक पैर पर खड़े होकर। इन चार दिनों में चार से पाँच लाख श्रद्धालु वहाँ पहुँचते हैं। इतना बड़ा धार्मिक जमावड़ा पूर्वोत्तर में और कहीं नहीं लगता है।

ऐसी मान्यता है कि 'अंबुवासी मेले' के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सौर आषाढ़ माह के मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण बीत जाने पर चतुर्थ चरण में आद्रा पाद के मध्य में पृथ्वी ऋतुवती होती है। यह मान्यता है कि भगवान विष्णु के चक्र से खंड-खंड हुई सती की योनि नीलाचल पहाड़ पर गिरी थी।

इक्यावन शक्तिपीठों में कामाख्या महापीठ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिए कामाख्या मंदिर में माँ की योनि की पूजा होती है। यही वजह है कि कामाख्या मंदिर के गर्भगृह के फोटो लेने पर पाबंदी है इसलिए तीन दिनों तक मंदिर में प्रवेश करने की मनाही होती है। चौथे दिन मंदिर का पट खुलता है और विशेष पूजा के बाद भक्तों को दर्शन का मौका मिलता है।

वैसे भी कामाख्या मंदिर अपनी भौगोलिक विशेषताओं के कारण बेहतर पर्यटन स्थल है और सालभर लोगों का आना-जाना लगा रहता है। यह पहाड़ ब्रह्मपुत्र नदी से बिलकुल सटा है। कामाख्या देवत्तर बोर्ड के प्रशासनिक अधिकारी ऋजु शर्मा के अनुसार, इतने सारे लोगों के आने से व्यवस्था संभालनी कठिन हो जाती है। जिला प्रशासन की मदद ली जाती है। उस दौरान निजी वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी जाती है।

मेले को असम की कृषि व्यवस्था से भी जोड़कर देखा जाता है। किसान पृथ्वी के ऋतुवती होने के बाद ही धान की खेती आरंभ करते हैं।

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