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पहाड़ी बाबा मंदिर

धर्मध्वज के साथ राष्ट्रध्वज फहराता मंदिर

हमें फॉलो करें पहाड़ी बाबा मंदिर
- विष्णु राजगढ़िया
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राँची शहर से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पहाड़ी बाबा का मंदिर इस लिहाज से अनोखा है कि यहाँ धर्मध्वजा के साथ-साथ हर स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रध्वज फहराने की परंपरा है। यह मंदिर भक्तिभाव के संग राष्ट्रप्रेम का भी संदेश देता है।

राँची रेलवे स्टेशन से लगभग सात किलोमीटर दूर करीब 26 एकड़ में फैला और 350 फुट की ऊँचाई पर स्थित पहाड़ी बाबा मंदिर देश का शायद इकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ धर्मध्वजा की जगह राष्ट्रध्वज फहराता जाता है। संभवतः यह भारत वर्ष में अपनी तरह का इकलौता मंदिर है जहाँ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रीय झंडा फहराया जाता है।

आम तौर पर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च अपनी धर्मध्वजाएँ फहराते हैं लेकिन पहाड़ी बाबा मंदिर पर हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रीय ध्वज शान से लहराया जाता है। मंदिर में राष्ट्रीय ध्वज को धर्मध्वज से ऊपर का दर्जा देने की यह परंपरा 14 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि से ही शुरू हो गई थी। देश की आजादी के बाद से ही प्रत्येक साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को मंदिर में सुबह की मुख्य पूजा के बाद राष्ट्रगान के साथ तिरंगा फहराया जाता रहा है। लोग आदरपूर्वक और उत्साह के साथ इसमें शामिल होते हैं ।

यूँ पहाड़ी बाबा मंदिर की मनोहारी छटा भी इसे महत्वपूर्ण और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का कारण बनती है। जिन्हें भक्तिभाव से बहुत लेना-देना नहीं होता वे भी यहाँ आने से नहीं कतराते। पर्यावरण प्रेमियों के लिए भी यह मंदिर महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरी पहाड़ी पर मंदिर परिसर के इर्द-गिर्द विभिन्न भाँति के हजार से अधिक वृक्ष हैं। मुख्य मंदिर के द्वार तक पहुँचने के लिए आपको 428 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर प्राँगण से राँची शहर का खूबसूरत नजारा भी दिखता है। साथ ही यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुपम सौंदर्य भी देखा जा सकता है।

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पहाड़ी बाबा मंदिर का पुराना नाम टिरीबुरू था जो आगे चलकर ब्रिटिश हुकूमत के समय फाँसी टुंगरी में परिवर्तित हो गया। फाँसी टुंगरी के नामकरण के पीछे आजादी का इतिहास छिपा है। अंग्रेजों ने जब छोटा नागपुर क्षेत्र पर अधिकार स्थापित कर लिया था तो राँची में उन्होंने अपना संचालन केंद्र खोला। जो लोग अंग्रेजी सरकार की नजरों में देशद्रोही, क्रांतिकारी या घातक होते थे, उन्हें राजधानी के शहीद चौक या फाँसी टुंगरी पर खुलेआम फाँसी दे दी जाती थी।

असल में मंदिर के साथ जुड़े ऐतिहासिक तथ्य लोगों में भक्तिभाव के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम के भाव को भी उद्वेलित करते हैं। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अनेक क्रांतिकारियों को अंग्रेज सरकार ने यहाँ फाँसी पर चढ़ा दिया था। ऐसे में यह शहीदों की शहादत का प्रतीक है। इनकी याद में राष्ट्रीय झंडा फहराकर उन्हें सम्मान प्रदान किया जाता है।

पहाड़ी बाबा मंदिर में एक शिलालेख लगा है जिसमें 14 अगस्त, 1947 को देश की आजादी संबंधी घोषणा भी अंकित है। पहाड़ी मंदिर के मुख्य पूजारियों में शामिल पंडित देवीदयाल मिश्र उर्फ देवी बाबा बताते हैं कि पहाड़ी मंदिर केवल आजादी के लिए लड़ने वाले सपूतों का शहीद स्थल भर नहीं है बल्कि इसका प्राचीन इतिहास भी महत्वपूर्ण है।

उनकी मानें तो छोटा नागपुर क्षेत्र के नागवंशियों का इतिहास भी यहीं से शुरू हुआ है। पहाड़ी पर जितने भी मंदिर हैं, उनमें नागराज का मंदिर सबसे प्राचीन है। आदिवासी समुदाय प्रकृति पूजक रहा है। इस स्थल पर शुरू से ही आदिवासी लोग नागदेवता की पूजा करने आते रहे हैं। आज भी प्रत्येक सोमवार को पाहन बाबा जो आदिवासियों के लिए पूजनीय होते हैं, मंदिर की प्रमुख पूजा संपन्न करने आते हैं।

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