Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सौंधी-सौंधी आँखों से

हमें फॉलो करें सौंधी-सौंधी आँखों से
मैंने तुम्हारे प्रेम पत्र जला दिए सवानी!
मैं तुम्हारे नमक का कर्जदार रहूँगा

सावनी!
धू-धू जल नहीं मरा
तुम्हारा कोई भी खत,
भस्म होते सैकड़ों सपनों की राख से
एक वामदेव

फिर जाग उठा साथ-साथ
जब सतरंगी-सुरमई-जलतरंग आँखों में
दुनिया जहान की आग तैर आई थी...

हालाँकि
उस क्षण मैं पानी-पानी बहुत था
पर
ज्वार में पहली चाप
जानती हो किसकी थी?

तुम्हारी ही बरौनियों से टपके
उस दर्द की
जिसे मैं तन्हा गिरने नहीं देना चाहता

सावनी!
तुम्हारे सपनों का घर
दुनिया से बाहर है क्या
नहीं तो
कहाँ इसके माकूल जमीन है?

आदमी के जीने को
उम्र ही काफी नहीं
उम्र भर का सूर्य
मय चाँद-तारे चाहिए
कहो,
खतरे उठाने को तैयार हो...?

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi