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ऐसे प्यार की कोई जगह नहीं

समलैंगिकता के दूरगामी परिणाम भयावह

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NDND
भारतीय समाज को अब तक अपनी परंपरा और संस्कृ‍ति के कारण सबसे ऊँचा मुकाम मिलता आया है। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को अपने एक अहम फैसले में दो वयस्कों द्वारा आपसी सहमति से बनाए जाने वाले अप्राकृतिक संबंधों को अपराध नहीं माना है। कोर्ट का कहना है कि यदि दोनों की उम्र 18 वर्ष से अधिक है तो दोनों साथ रह सकते हैं।

कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को भले ही अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया हो, लेकिन भारतीय समाज और संस्कृति में इसे कतई स्वीकार नहीं रखा गया हो, लेकिन भारतीय समाज और संस्कृति में इसे कतई स्वीकार नहीं करने की बात कही जा रही है। नईदुनिया द्वारा इंदौर के समाजशास्त्री, डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, व्यवसायी और विद्यार्थियों से इस बारे में बात की। हर वर्ग द्वारा समलैंगिकता का विरोध किया जा रहा है।

विदेशी संस्कृति को निभाना गलत
समलैंगिकता बरसों से एक प्रश्न रहा है। कुछ लोग जो इसमें रुचि रखते हैं यह उनके लिए सही है, जबकि भारतीय संस्कृति को मानने वाले के लिए गलत। स्टार एकेडमी ऑफ टेक्नोलॉजी के डायरेक्टर डॉ.नरेंद्र नागर ने कहा कि भारतीय होकर भी विदेशी संस्कृति को अपनाना गलत है। भले ही हर व्यक्ति को अपने मुताबिक जीवन जीने की इच्छा हो, लेकिन हमें अपनी संस्कृति और परंपरा कभी नहीं भूलना चाहिए। कोर्ट ने भले ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ध्यान दिया हो, लेकिन भारतीय समाज और संस्कृति में इसके लिए कतई जगह नहीं है।

हर हाल में गलत
निश्चित तौर पर समलैंगिकता हर देश के लिए गलत है। कानूनी मान्यता से इन अनैतिक कार्यों को और भी गति मिल जाएगी। लियो क्लब के पूर्व अध्यक्ष वैभव शाह कहते हैं समलैंगिकता भारतीय संस्कृति और परंपराओं के मान से पूरी तरह गलत और अस्वीकार्य है। भले ही इस तरह के कार्यों को कुछ लोग सही मानते हो, और उन्हीं की व्यक्तिगत जरूरतों के कारण समलैंगिकता को मान्यता मिली है, लेकिन इससे होने वाले सामाजिक और पारिवारिक हनन का अंदाजा लगाया जा सकता है।

अनैतिक कार्यों में इजाफा होगा
इस तरह के निर्णय सिद्ध करते हैं कि भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति हावी हो रही है। भविष्य में इसके हानिकारक प्रभाव देखने को मिलेंगे। भारत विकास परिषद के उपाध्यक्ष कैलाश खंडेलवाल बताते हैं कि भले ही इस तरह के रिश्तों को कानूनी मान्यता दे दी गई हो, लेकिन भारतीय समाज में इसके लिए कोई जगह नहीं है। न इसे कल स्वीकार किया जाता था और न ही अब किया जाएगा। इस तरह की कल्पना से ही भारतीय संस्कृति को ठेस पहुँचेगी।

गौरव पर कलंक
भारतीय संस्कृति की पवित्रता की मिसाल दी जाती रही है, लेकिन समलैंगिकता को कानूनन मान्यता मिलने पर संस्कृति खतरे में प़ड़ गई है। आईआईटी स्टूडेंट अंकित जैन कहते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने उच्च और परिष्कृत मूल्यों के कारण पहचानी जाती रही है, लेकिन ऐसे निर्णय गौरवशाली इतिहास को क्षति पहुँचाएँगे। समलैंगिकता सदा ही प्रकृति के प्रतिकूल रहेगी और भारतीयों को इसे कभी नहीं अपनाना चाहिए।

विदेशी फैला रहे हैं सामाजिक प्रदूषण
समलैंगिकता को मान्यता मिलना भारतीय समाज के हित में नहीं है। यह सामाजिक प्रदूषण है, जो विदेश में रहकर आने वाले लोग फैला रहे हैं। रोटरी क्लब ऑफ इंदौर सेंचुरी की पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुनीता जैन ने कहा कि इस तरह की गतिविधि की जरूरत भारतीयों को नहीं है। यह सब विदेशी संस्कृति की नकल करने के चक्कर में हो रहा है। इससे स्वास्थ्य और मानसिकता दोनों पर नकारात्मक असर होंगे।

प्रकृति के प्रतिकूल है समलैंगिकता
जब भी हम प्रकृति के खिलाफ जाकर कोई काम करने की कोशिश करते हैं तो उसके दुष्परिणाम भोगने प़ड़ते हैं। प्रकृति के विपरित जाना हमेशा हानिकारक होता है।प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पूनम माथुर ने कहा समलैंगिकता को भले ही कानूनन अपराध न माना गया हो, लेकिन भारतीय संस्कृति और समाज में इसे हमेशा अपराध की भाँति ही लिया जाएगा। देश ही नहीं दुनियाभर में काफी कम लोग इसके पक्ष में होंगे, क्योंकि यह हर समाज में अस्वीकार्य है।

चिकित्सकीय दृष्टि से अनुपयुक्त है "गे " रिलेशनशिप
प्रकृति ने जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जननांगों की रचना की है, "गे" रिलेशनशिप उससे मेल नहीं खाती। एमजीएम मेडिकल कॉलेज के एचआईवी-एड्स एवं संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ.वीपी पांडे कहते हैं हमारे देश में यौन विषय को लेकर वैसे ही बहुत अज्ञानता है, ऐसे में "गे" रिलेशनशिप के दौरान सुरक्षित यौन संबंधों की कल्पना करना बेमानी है। इस तरह के संबंधों से संक्रामक रोग होने की आशंकाएँ रहती हैं। अप्राकृतिक यौन प्राथमिकता मानसिक विकृति है, इसे ब़ढ़ावा देने से किसी का भला नहीं होगा। इस तरह सामाजिक ढाँचे की आधारशिला को ही नष्ट करने की बात की जा रही है।

खुल रहा है अनैतिकता का रास्ता
एक तरफ तो हम भारतीय संस्कृति के परिष्कृत होने की बात करते हैं और दूसरी तरफ पाश्चात्य संस्कृति को तेजी से अपनाते जा रहे हैं। डॉ. गौतम कोठारी कहते हैं कि हमारे मू्‌ल्य बदलते जा रहे हैं। हमारे नैतिक मूल्यों पर पाश्चात्य मूल्य भारी प़ड़ते नजर आ रहे हैं। स्पष्ट है कि इसके दूरगामी परिणाम भयावह हैं। इस तरह के निर्णय अनैतिक कार्यों के लिए रास्ता खोलने की तरह है।

संस्कृति पर भारी पाश्चात्य का रंग
हो सकता है भारत के कुछ युवाओं को यह निर्णय काफी खुशी देने वाला हो। फिर भी भारतीय समाज में इस तरह की बातों को कभी अपनाया नहीं जाएगा। सीए गोविंद अग्रवाल मानते हैं कि इस तरह की विसंगति पाश्चात्य कारणों से हो रही है। पिछले कुछ सालों में समलैंगिकों की संख्या और युवाओं में इस बात के लिए रूझान में काफी इजाफा हुआ है। इस तरह की कानूनन मान्यता मानव समाज, स्वास्थ्य और मानसिकता पर भारी पड़ेगी।

कैसे आगे बढ़ेगा समाज और परिवार
भारतीय समाज में इंसान की मूलभूत जरूरतों के बाद विवाह को बेहद जरूरी माना जाता है। समाजशास्त्री डॉ. सुधा सुरेश सिलावट बताती हैं इस तरह का निर्णय मान्य होना भारतीय समाज के विघटन की शुरुआत को दर्शा रहा है। इससे सामाजिक प्रदूषण ब़ढ़ेगा और संस्कृति प्रदूषित हो जाएगी। समलैंगिक संबंधों को मंजूरी मिलने पर विवाह की जरूरत ही खत्म हो जाएगी। परिवार और समाज को आगे बढ़ाने के रास्ते बंद होने लगेंगे। प्रकृति के विपरीत यह काम भारतीय समाज को अंधकार में धकेल देगा।

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