चार घंटे के सफर में प्रकृति की हर छटा देख ली। हर रंग देखा सड़क के दोनों और पाव कि.मी. का टुकड़ा भी ऐसा नहीं था जहाँ हरियाली न हो। ढ़ेर सारे सुंदर फूल वहाँ की धरती की खुशहाली की कहानी झूम-झूम कर कह रहे थे। चारों ओर हरी-हरी घाटियाँ (जहाँ चाय के बगीचे अधिक थे) कभी हरी-भरी नजर आती तो कभी एक ही पल में बादलों से ढँक जाती चूँकि हम जून के आखिर में वहाँ थे- अत: कभी-कभी फुरफुरी बारिश भी होने लगी कुल मिलाकर प्रकृति से यही संदेश आ रहा था कि यहाँ कि वसुधा समृद्ध है, क्योंकि यहाँ हरियाली है।
रिसॉर्ट पहुँचने पर भी कमरे की खिड़की खोलते ही ऐसा लगा मानो सामने कोई बड़ा-सा वॉलपेपर लगा है, जिसमें हल्के व गहरे रंगों की पर्वत माला है जिस पर घने वृक्ष है, बीच में बहती नदी/झील रंगबिरंगे बिखरे ढेरों फूल है बिलकुल जीवंत बड़ा-सा वॉल पेपर। और सुबह का वॉलपेपर ! इस बार सफेद बादल अठखेली कर रहे थे। सारी हरियाली ओस से धुल गई थी। फूलों पर शबनम की बूँदे थी और एक बात जो शाम के धुँधलके में नहीं देखी वो थी रिसॉर्ट एक पर्वत पर था और बाकी तीनों तरफ पर्वतों का कव्हर था। बीच में नीचे गहरी हरी घाटी।
एक बार फिर कुदरत ने अपना नया नवेला रंग दिखाया। हर पहर में अलग छटा। पूरी हरी घाटी में कहीं-कहीं सफेद पट्टियाँ-सी नजर आती थी, ये पहाड़ी झरने थे जो कही भी, किसी भी सड़क के किनारे भरपूर जोश के साथ गिरकर दूध की धारा का आभास दे रहे थे। लेकिन यहीं पानी नीचे गिरकर काँच की मानिद साफ था।
इस विहंगम दृश्य को देख आँखें सुखद आश्चर्य से भरी थी, लेकिन अभी प्रकृति ने आगे अपनी सुंदरता से और भी हैरान करना था। जब मुन्नार में तीन दिन बिताने के बाद थेकड़ी (पेरियार) और थेकड से अलप्पी की ओर रवाना हुवे तो ये सुखद आश्चर्य सामने आया। मुन्नार व थेकड़ी में जहाँ पहाड़ी सुंदरता थी वहीं अलप्पी में पानी और हरियाली में मंत्र मुग्ध किया वहीं 'बेक वाटर' में लेक पैलेस रिसॉर्ट की बोट तैयार खड़ी थी। सामान सहित हम उसमें सवार हो गए। थोड़ी सँकरी केनल आगे जाकर विशाल झील में बदल गई और उसी झील के लेक पेलेस रिसॉर्ट में हमारा अगले दो दिन निवास था। बेक वाटर में बोट से घूमते-घूमते महसूस हो रहा था कि हम फिल्मों में देखे गए वेनिस शहर में पहुँच गए है। शायद इसीलिए इसे एशिया का वेनिस कहा जाता है।
इस वेनिस समेत पूरा केरल समृद्ध और संपन्न है इस सत्य प्रमाणित करती आँखों देखी वसुधा के अलावा दो बातों ने मेरा ध्यान खींचा वे थी एक तो वहाँ कोई भिक्षुक नजर नहीं आया, दूसरे वहाँ के लोग भोले, निश्छल, संतुष्ट व प्रसन्न लगे।
तो दोबारा केरल जाने की इच्छा के साथ इस पूर्ण साक्षर राज्य को हमने कहा पोइचवरम (फिर मिलेंगे)।