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भरोसा कायम होने में लगेगा वक्त

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-कमल शर्मा
दलाल स्‍ट्रीट में बीते सप्‍ताह का अंत पॉजिटिव रहा लेकिन इसे स्थिर होने में अभी भी कुछ और वक्‍त लग सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्‍याज दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया लेकिन अमेरिकी फैड बैंक ने 50 बेसिक अंक की ब्‍याज दर में कटौती की।

इस तरह अमेरिकी फैड बैंक ने एक सप्‍ताह में 1.25 फीसदी की ब्‍याज कटौती कर मंदी की ओर बढ़ रही अर्थव्‍यवस्‍था को थामने का प्रयास किया। इस कटौती से उम्‍मीद की जा रही थी कि भारतीय शेयर बाजार में जोरदार उछाल देखने को मिलेगा लेकिन अधिकतर निवेशक बाजार में नया पैसा लगाने की स्थिति में नहीं हैं। सा‍थ ही फिर से बाजार के प्रति भरोसा कायम होने में समय लगेगा। यही वजह है कि शेयर बाजार में अभी भी बिक्री दबाव बना रहेगा।

इस सप्‍ताह रिलायंस पावर लिमिटेड शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने जा रही है और अधिकतर निवेशकों की इस पर नजर है कि यह किस भाव पर लिस्‍टेडेड होगी। हालाँकि, इस समय ग्रे बाजार में इसका प्रीमियम घटकर 125 रुपए रह गया है।

बाजार के खिलाड़ियों को उम्‍मीद है कि रिलायंस पावर से रिफंड आने वाले एक लाख करोड़ रुपए बाजार में आएँगे लेकिन छोटे निवेशकों का मूड इस समय नया पैसा बाजार में लगाने का बिल्‍कुल दिखाई नहीं दे रहा, जब तक कि वे जहाफँसे हुए हैं, वहाँ से निकल नहीं जाते।

हालाँकि, भारतीय म्‍यूच्‍युअल फंड और बीमा कंपनियों के पास काफी पैसा है और नया पैसा भी आ रहा है। असल में इन कंपनियों को दिसंबर से मार्च के दौरान टैक्‍स सेविंग में होने वाले निवेश के तहत नया पैसा मिलता है। यदि यह पैसा शेयर बाजार में आता है तो बेहतर सुधार हो सकता है।

विख्‍यात निवेश गुरु मार्क फैबर की मानें तो यह भारी गिरावट की शुरुआत है। डिकपलिंग की थ्‍यौरी को नकारते हुए वे अमेरिकी बाजार की हलचल का असर भारत और चीन के उभरते बाजारों पर पड़ने की बात करते हैं और अमेरिकी बाजार के संबंध में फैबर का कहना है कि शेयर बाजार ओवर सोल्‍ड है इसलिए राहत देने के लिए एक रैली आ सकती है लेकिन यह रैली खरीद के लिए नहीं बल्कि अपनी पोजीशन काटने का अच्‍छा अवसर होगा।

फैबर अमेरिका में 1973- 74 की मंदी की बात करते हुए कहते हैं कि उस समय सभी ब्रोकर गिरावट के बावजूद तेजी में बने रहे लेकिन जब 1974 के अंत में मंदी ने पूरी तरह बाजार को ढँक लिया तो कई ब्रोकरेज फर्म बाजार से बाहर हो गई और न्‍यूयॉर्क में कई ब्रोकरों को जीवनयापन के लिए टैक्‍सी ड्राइवर बनना पड़ा। उनका मानना है कि एक बार फिर वही समय आ रहा है।

मार्क फैबर का मानना है कि अधिकतर लोग हाल की गिरावट के समय पूरी तरह निवेशित थे इसलिए वे पैसा गँवा चुके थे। अब बाजार को उबारने के लिए उनके पास पैसा नहीं है। उनका कहना है कि हाल की गिरावट मार्केट इवेंट नहीं बल्कि एक इकॉनामिक इवेंट है।

इस बारे में वे एक अन्‍य दिग्‍गज जॉर्ज सोरॉस से सहमत हैं, जिनका मानना है कि अमेरिका में हालिया संकट मात्र हाउसिंग बूम के बाद आई गिरावट नहीं है बल्कि यह 60 साल से जारी क्रेडिट एक्‍सपेंशन (विस्‍तार) का अंत है जो कि डॉलर को रिजर्व करेंसी मानकर किया गया था।

फैबर के मुताबिक अमेरिका की स्थिति काफी गंभीर है। पिछले कुछ दशकों की बात करें तो अमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था ने 1974, 1981-82, 1987, 1990, 1998 और 2001 में मंदी के दौर देखे हैं। लेकिन कभी भी डिस्‍पोजेबल इनकम के प्रतिशत के रूप में हाउस होल्‍ड रियल इस्‍टेट असेट और हाउसहोल्‍ड इक्विटी असेट के मूल्‍य में एक सा‍थ कमी नहीं आई थी, इसलिए बाजार को कुशन मिलता रहा।

लेकिन आज कहानी अलग है। शेयर और हाउसिंग, दोनों क्षेत्रों के टूटने से घरेलू संपत्ति पर दबाव पड़ा है। इस तरह की मंदी पहले नहीं देखी गई और इस स्‍तर पर तो कभी नहीं।

आज से शुरू हो रहे नए सप्‍ताह में बॉम्‍बे स्‍टॉक एक्‍सचेंज यानी बीएसई सेंसेक्‍स 18781 अंक के ऊपर बंद होता है तो यह 19243 अंक तक जा सकता है। इसे नीचे में 17514 अंक पर स्‍पोर्ट मिलने की संभावना है। निफ्टी को 5107 अंक पर स्‍पोर्ट मिलने के आसार हैं। निफ्टी 5477 अंक पार करने पर 5692 अंक तक जा सकता है।

इस सप्‍ताह कुछ कंपनियाँ बोनस, शेयर विभाजन और लाभांश घोषित करेंगी। इनमें एचसीएल इन्फो, मद्रास सीमेंट, एरियाल्‍टी, सेसा गोवा, प्राज इंडस्‍ट्री और जीवीके पावर मुख्‍य हैं।

जिन कंपनियों के शेयरों पर इस सप्‍ताह निवेशक ध्‍यान दे सकते हैं वे हैं : व्‍हील्‍स इंडिया, यस बैंक, पीएफसी, सुजलॉन एनर्जी, केएस ऑयल्‍स, अपोलो हॉस्पिटल्‍स, रोल्‍टा इंडिया, रिलायंस, गृह फाइनेंस, बैंक ऑफ महाराष्‍ट्र और मंगलम टिम्‍बर।

*यह लेखक की निजी राय है। किसी भी प्रकार की जोखिम की जवाबदारी वेबदुनिया की नहीं होगी।

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