-कमल शर्मा
भारतीय शेयर बाजार बीएसई सेंसेक्स के नई ऊँचाई पर पहुँचने के बाद अधिकतर निवेशकों का कहना था कि जल्दी बताओ कौन-कौनसी कंपनियों के शेयर खरीदें...हम तो गाड़ी चूक गए। हम गाड़ी पकड़ने के लिए दौड़ने वाले निवेशकों को राय देना चाहेंगे कि शेयर बाजार में आपाधापी का खेल न खेलें और अब तक जो भी निवेशक शेयर बाजार को कोसते हुए मिलते हैं या जिन्होंने इस बाजार में अपने हाथ जलाए हैं, वे आपाधापी में थे कि मैं क्यों नहीं पैसा कमा सका।
निवेशकों की यह जानने में अधिक रुचि है कि बीएसई सेंसेक्स या एनएसई निफ्टी का अगला मुकाम कहाँ। कुछ विश्लेषक इस साल के अंत तक सेंसेक्स के 25 हजार अंक पहुँचने की भविष्यवाणी कर रहे हैं तो कुछ 27 हजार। लेकिन आप यह मान लें कि जिस तरह से भारत आर्थिक विकास के रास्ते पर बढ़ रहा है और दुनिया भर के बड़े-बड़े फंड यहाँ मिलने वाले बेहतर रिटर्न के लालच में आ रहे हैं वह इस बात को पक्का करता है कि आने वाले दिनों में उभरते शेयर बाजार में भारत नंबर वन होगा।
सकल घरेलू विकास दर आने वाले समय में 8.5 फीसदी से 10 फीसदी तक पहुँचने के जो अनुमान सामने आ रहे हैं वह शुभ संकेत है। यानी यह तो मान लें कि अगले पाँच साल भी अच्छे हैं लेकिन सफल निवेशक वही है जो आने वाले समय की सफलतम कंपनियों को अपने पोर्टफोलियो में इस समय सस्ते भावों में जोड़ रहे हैं।
सेंसेक्स का मुकाम कुछ भी हो लेकिन हम सभी निवेशकों से कहना चाहेंगे कि किसी भी कंपनी के शेयर खरीदने से पहले उसके बारे में सारी जानकारी जुटा लें क्योंकि इस समय बाजार में अफवाहों का दौर है कि यह लो...यह पकड़ो...यहाँ बिल्कुल मत चूको... भागो....पकड़ो...एक निवेशक होने के नाते सारी सूचनाएँ आपके पास होनी चाहिए, लेकिन जिस कंपनी के शेयर लेना चाहते हैं उन्हें आप अपने पास कितने समय रखेंगे यानी कितने समय के कारोबार के हिसाब से खरीदना चाहते हैं- इंट्रा डे, शार्ट टर्म, लांग टर्म।
किसी भी सुनी-सुनाई टिप के आधार पर शेयर नहीं खरीदें क्योंकि ऐसा न हो कि शेयर बाजार का कचरा आपके हाथ में आ जाए और आपके सपनों पर पानी फिर जाए। बेहतर कंपनियों और तेजी से बढ़ते उद्योगों के ही शेयर खरीदे लेकिन छोटी-छोटी मात्रा में। सारा खरीद ऑर्डर एक साथ न दें।
हमेशा यह ध्यान रखें कि बाजार कहीं भागकर नहीं जा रहा और कंपनियाँ तो बनती- बिगड़ती रहती हैं। यदि आप रिलायंस चूक गए तो कोई बात नहीं क्योंकि रिलायंस को आज तक सफर तय करने में कई साल लगे हैं। ठीक ऐसी ही दूसरी कंपनी की तलाश कीजिए और देखिए वह भी इतने साल बाद रिलायंस बनती है या नहीं। एलएंडटी छूट गई तो क्या पकडि़ए दूसरी इंजीनियरिंग कंपनी जो बरसों बाद दूसरी एलएंडटी होगी।
असली निवेशक वही है जो भारत की दूसरी बड़ी भावी कंपनियों में आज कम निवेश करता है और हो जाता है करोड़पति कुछ साल बाद। वर्ष 1980 में विप्रो के सौ रुपए वाले सौ शेयर को आपने खरीदा होता तो आज आपके पास दो सौ करोड़ रुपए हो सकते थे।
वर्ष 1992 में इंफोसिस के शेयर में दस हजार रुपए का निवेश किया होता तो आपके पास आज डेढ़ करोड़ रुपए हो सकते थे। इसी तरह 1980 में रेनबैक्सी में एक हजार रुपए का निवेश किया होता तो आपके पास आज तकरीबन दो करोड़ रूपए होते। पुरानी बातें छोड़ भी दें तो अगर आपने 2004 की गिरावट में यूनिटेक में 40 हजार रुपए का निवेश किया होता तो आज आपके पास एक करोड़ दस लाख रुपए हो सकते थे।
इंतजार करने वाले निवेशकों ही यहाँ फायदा होता है, भले ही सेंसेक्स कुछ भी हो। जिस तरह एक बच्चे को पूरी तरह क्षमतावान होने में समय लगता है वही इन कंपनियों के साथ होता है। इसलिए उन कंपनियों की तलाश कीजिए जो कल के युवा होंगे।
बैंक ऑफ इंडिया : डार्क हॉर्स
देश का प्रमुख सरकारी बैंकों में से एक बैंक ऑफ इंडिया क्वॉलिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट यानी क्यूआईपी के माध्यम से 1300-1400 करोड़ रुपए जुटाएगा। इस कदम के बाद इस बैंक का पूँजी पर्याप्तता अनुपात सितंबर 2007 के 12.5 फीसदी से बढ़कर 13 फीसदी से अधिक हो जाएगा। बैंक बेस द्वितीय की शर्तों के मुताबिक पूँजी बढ़ा रहा है।
साथ ही क्रेडिट में विस्तार और नए कारोबार मसलन जीवन बीमा संयुक्त उद्यम में उतरने की तैयारी कर रहा है। बैंक की टियर प्रथम कैपिटल 7.08 फीसदी के मुकाबले बढ़कर आठ फीसदी से ज्यादा हो जाएगी।
बैंक ऑफ इंडिया में सरकार की भागीदारी 69.47 फीसदी है, जो इस इश्यू के बाद घटकर 64.47 फीसदी आ जाएगी। बैंक ने इस बात के संकेत दिए हैं कि अगले दो साल तक उसका इरादा अपनी और इक्विटी वितरण का नहीं है। बैंक ऑफ इंडिया पिछले कुछ साल से तेजी से विकास के रास्ते पर बढ़ रहा है।
वित्त वर्ष 2004 से वर्ष 2007 के बीच इसकी कंसोलिडेटेड जमाओं और एडवांस में 19 फीसदी और 23 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2008 की पहली छमाही में इसकी जमा में 25.5 फीसदी एवं एडवांस में 27.6 फीसदी का इजाफा हुआ है।
बैंक ऑफ इंडिया की शुद्ध ब्याज आय में वित्त वर्ष 2008 की दूसरी तिमाही में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 986 करोड़ रुपए पहुँच गई। जबकि, शुद्ध ब्याज मार्जिन में मुश्किल से पाँच बेसिस अंक यानी 3.04 फीसदी की कमी आई है।
बैंक के कामकाज की स्थिति को देखें तो इसकी साख यानी क्रेडिट और जमाओं दोनों में 26-27 फीसदी की बढ़ोतरी दिखाई दे रही है। इस बैंक की देश भर में 2640 से ज्यादा शाखाएँ हैं। इनमें 93 विशेष शाखाएँ शामिल हैं। शुद्ध नॉन परफोर्मिंग एसेट यानी नेट एनपीए सितंबर 2006 के 1.27 फीसदी से कम होकर सितंबर 2007 में 0.75 फीसदी आ गई।
वित्त वर्ष 2008 की पहली तिमाही में राजस्व 2727 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 315 करोड़ रुपए रहा, जो दूसरी तिमाही में बढ़कर 425 करोड़ रुपए पहुँच गया। जबकि दूसरी तिमाही में राजस्व 2975 करोड़ रुपए थी।
इस बैंक के कार्य प्रदर्शन को देखते हुए निवेशकों ने इसमें काफी रुचि दिखाई। पिछले एक वर्ष में इसके शेयर का दाम 76 फीसदी बढ़ा, जबकि बीएसई सेंसेक्स में 45 फीसदी और बैंक्स में 61 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
बैंक ऑफ इंडिया में सरकार की शेयरधारिता 69.47 फीसदी है, जबकि आम जनता के पास केवल 7.06 फीसदी शेयर हैं। विदेशी संस्थागत एवं दूसरे निवेशकों के पास 23.47 फीसदी शेयर हैं। बाजार पूंजीकरण 17817 करोड़ रुपए है।
बैंक ऑफ इंडिया का शेयर पिछले 52 सप्ताह में नीचे में 132 रुपए और ऊपर में 416 रुपए था। बैंक ऑफ इंडिया के कार्य प्रदर्शन को देखते हुए निकट भविष्य में इसके शेयर का दाम 460 रुपए तक जाने के मजबूत आसार हैं।
स्पष्टीकरण : बैंक ऑफ इंडिया में खरीद सलाह जारी करते समय मेरा अपना निवेश नहीं है।
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