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मंदी से उबरने की कोशिश जारी

हमें फॉलो करें मंदी से उबरने की कोशिश जारी
, सोमवार, 4 फ़रवरी 2008 (17:25 IST)
- शैलेन्द्र कोठारी

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान निफ्टी सीमित दायरे में घूमता हुआ कुल 66 प्वाइंट्स घटकर 5317 पर बंद हुआ। सोमवार से गुरुवार तक निफ्टी में दबाव बना रहा किंतु ओवरसोल्ड होने व तकनीकी सुधार की गुंजाइश बने रहने के कारण इसमें तीव्र गिरावट की स्थिति निर्मित नहीं हुई।

तकनीकी विश्लेषकों का कहना है कि निफ्टी के साथ ही लगभग पूरा बाजार 21-22 जनवरी के हादसे से उबरने की कोशिश कर रहा है। फिलहाल निफ्टी के बारे में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि यदि यह अगले आठ-दस ट्रेडिंग सत्रों तक सीमित दायरे में घूमते हुए वर्तमान स्तरों के आसपास टिका रहे तो यह एक बुलिश सिग्नल होगा।

व्यवसायियों का कहना है कि बाजार में कुछ दिनों पहले आई तीव्र गिरावट से आम निवेशकों का मनोबल टूट गया है। वैसे भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति को लेकर जानकारों के मन में कोई संशय नहीं है लेकिन अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में पहुँच रही है व इसका असर भारत पर भी पड़ेगा ऐसे भय का भूत बाजार को अपनी जकड़ में लेने की कोशिश कर रहा है। किंतु विशिष्ट जानकारों की समझ यह कहती है कि भारतीय बाजार को किसी से कोई खतरा नहीं है।

विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पहले से ही बहुत धीमी चल रही है तो अब उसमें नया क्या है? सब प्राइम समस्या तो सिर्फ उनके वित्तीय सिस्टम की कमजोरियों को उजागर कर रही है तथा संभलने के अवसर प्रदान कर रही है। कई विकट समस्याओं के बावजूद विश्वभर के निवेशक व स्वयं अमेरिकावासी अपने देश के शेयर बाजारों में विश्वास बनाए हुए हैं।

यकीन न हो तो पिछले डेढ़-दो वर्षों में डो जोंस के मूवमेंट का अध्ययन करना चाहिए और समझना चाहिए कि जब विश्व की सबसे बड़ी ताकत में निवेशकों का विश्वास अभी तक डिगा है तो फिर भला भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को देखते हुए कौन विदेशी निवेशक भारत में विश्वास नहीं करेगा? सच पूछा जाए तो दुनियाभर के अधिकांश विश्लेषक हौव्वा बनाने में माहिर हैं।

कई विश्लेषक अमेरिकी डॉलर को रद्दी कागज का टुकड़ा कहने से नहीं चूकते तो क्या इनकी बातें सुनकर पूरे विश्व के अधिकांश सेंट्रल बैंकों या भारतीय रिजर्व बैंक ने डॉलर को रिजर्व में रखना बंद कर दिया है?

बाजार के एक दीर्घ अनुभवी ट्रेडर का कहना है कि बड़े खिलाड़ियों एवं ऑपरेटरों ने ट्रेडर्स को फ्यूचर में घेरकर जमकर निपटा दिया है और अब जनता का ध्यान इधर-उधर की बातों में लगाकर सस्ते भावों में खुद माल बटोरने में लगे हैं। यह बात ठीक है कि किन्हीं विशेष बातों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया के कारण सेंसेक्स हजार-दो हजार प्वाइंट्स इधर-उधर हो जाए लेकिन यह क्या बात हुई कि कल तक अच्छी-भली चल रही देश की अर्थव्यवस्था की गति को खतरा उत्पन्न होने वाला है?

निवेशकों को जान लेना चाहिए कि प्रगति के पथ पर रुकावटें तो आती ही इसलिए हैं कि आगे कदम और मजबूती से तथा और अधिक अनुभवशीलता के साथ बढ़ें। इसलिए निवेशक चिंता न करें। और चिंता करने से अब होगा भी क्या? रुपए का शेयर पहले ही अठन्नी हो चुका है अब और गिरकर कितना गिरेगा?

बहरहाल शेयर बाजार में इन दिनों सन्नाटा पसरा हुआ है और नए इश्युओं का मार्केट भी इसकी चपेट में आ गया है। वाकहार्ट के बाद एमार एमजीएफ लैंड ने इश्यू कीमत घटाने का फैसला किया है जो इस तथ्य की तरफ इशारा करता है कि प्रतिष्ठित समूह या प्रमोटर्स भी अब निफ्टी या सेंसेक्स का स्तर देखकर इश्यू कीमत तय कर रहे हैं। और वे आखिर ऐसा क्यूँ न करें?

फ्यूचर केपिटल एवं रिलायंस के फुगावेदार इश्युओं को मिले जोरदार रिस्पांस को देखकर वित्तीय क्षेत्र के चतुर खिलाड़ियों को समझ में आ गया कि इस बाजार में स्टोरी भी बिक रही है और नाम भी बिक रहा है। इसलिए नकद कर लेने में क्या हर्ज है?

आम निवेशकों को ईश्वर का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि मार्केट क्रेश होने के कारण मनचाही कीमत पर शेयर जारी करने का सिलसिला जल्दी टूट गया अन्यथा प्राइमरी मार्केट निवेशकों को भी भारी नुकसान हो सकता था। प्रमोटर्स का क्या है? वे खुद तो 10 रु. में शेयर लेते हैं और कुछ ही महीनों या वर्षों में कोई 450 रु. के भाव पर तो कोई 750 रु. के भाव पर इश्यू ले आता है और निवेशक इन्हें भरते भी हैं, जबकि इसी क्षेत्र की ज्यादा बेहतर तथा सस्ते भाव पर मिल रही लिस्टेड कंपनी के शेयर को कोई पूछता ही नहीं है। वर्ना कहाँ एनटीपीसी और कहाँ रिलायंस पॉवर!! ये निवेशकों की मंडली है या सटोरियों की मंडी।

पते की बात...!
एक निवेशक ने एक-डेढ़ महीने पहले कहा कि बॉयोकान का शेयर खरीदना चाहिए। पूछा क्यों? तो जवाब मिला कि आप सोचो यदि बॉयोकान जैसी फंडामेंटली साउंड कंपनी का इश्यू आज के माहौल में आए तो हजार-डेढ़ हजार रु. प्रति शेयर के भाव पर सौ गुना भरा जाए कि नहीं? बात पते की कही दोस्त।

अब एक बुजुर्ग निवेशक की बात पर भी गौर कीजिए उनका कहना है कि चालीस साल पहले एक बाबूजी ने गन्नों के रस वाले को सुझाव दिया कि रस में बरफ भी डाल दिया करो। डाल देंगे बाबूजी पर पैसे ज्यादा लगेंगे। देंगे जरूर देंगे।

बाबूजी ने जवाब दिया और चालीस साल बाद बाबूजी के पोते ने गन्नों के रस वाले से कहा कि एक गिलास बिना बरफ का रस देना। रस वाला बोला भैयाजी पैसे थोड़े ज्यादा लगेंगे!! क्या गजब बात है ये पहले बरफ डालने के पैसे बढ़ाए और बाद में बरफ न डालने के पैसे भी बढ़ाए। गन्नों के रस वाले ऐसा खेल कर सकते है तो हमारे शेयर बाजार वाले क्यों नहीं कर सकते?

इंडिया बुल्स का भाव इसलिए बढ़ा क्योंकि मोतीलाल का इश्यू महँगे भाव पर खरीदने को निवेशक तैयार बैठे थे और मोतीलाल का भाव बाद में इसलिए बढ़ा क्योंकि एक और गुदड़ी का लाल मोतीलाल से भी ज्यादा महँगे भाव पर इश्यू लाने की तैयारी कर रहा था!!!

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