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खेलमंत्री के रूप में खास प्रभाव छोड़ा गिल ने

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नई दिल्ली (भाषा) , गुरुवार, 28 मई 2009 (21:09 IST)
मनोहरसिंह गिल की कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नति खेल मंत्रालय में केवल एक साल के अंदर उनके विशेष प्रयासों का तोहफा है, जिसे उन्होंने दिशाहीन मंत्रालय से प्रभावी बना दिया था।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त गिल को पिछली सरकार में पिछले साल अप्रैल में मणिशंकर अय्यर की जगह खेल मंत्री बनाया गया था, लेकिन 72 वर्षीय गिल ने कई मसलों पर कड़ा और स्पष्ट रवैया अपनाकर अपनी जीवंत उपस्थिति दर्ज कराई। इन फैसलों में केपीएस गिल का भारतीय हॉकी महासंघ के अध्यक्ष के रूप में विवादास्पद शासन को समाप्त करना भी है।

पंजाब से राज्यसभा सांसद ने भारतीय टीम के बीजिंग ओलिम्पिक के लिए क्वालीफाई करने में असफल रहने और आईएचएफ सचिव के ज्योतिकुमारन के रिश्वत कांड को ध्यान में रखकर हाकी महासंघ को निलंबित किया था और उसकी बागडोर भारतीय ओलिम्पिक संघ को सौंपकर खेल जगत का विश्वास जीता था।

वह गिल ही थे जिन्होंने पिछले साल 26 नवंबर को मुंबई में आतंकी हमले के बाद भारतीय क्रिकेट टीम का पाकिस्तान दौरा रद्द करने की सबसे पहले खुली वकालत की थी। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी और आफ स्पिनर हरभजनसिंह के पदम पुरस्कारों के समारोह में उपस्थित नहीं होने से उन्होंने खिलाड़ियों के लिये इस तरह के सम्मान समारोह में मौजूद रहना अनिवार्य कर दिया।

गिल ने इसके साथ ही सुरक्षा कारणों से चेन्नई में डेविस कप मुकाबले में नहीं खेलने के लिए टेनिस ऑस्ट्रेलिया की कड़ी आलोचना की थी। भारत को इस वजह से वाकओवर मिल गया था। इसके बाद उन्होंने आईपीएल के विवादास्पद एसएमएस गेम सिक्सअप का भी विरोध किया।

उन्होंने कहा कि इससे सट्टेबाजी और जुएबाजी को बढ़ावा मिलेगा। बीसीसीआई ने इस पर गौर किया और यह गेम रुकवा दिया। गिल ने इसके अलावा बीजिंग ओलिम्पिक से पहले और बाद में खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। इन ओलिम्पिक खेलों में भारत ने निशानेबाजी में स्वर्ण तथा कुश्ती और मुक्केबाजी में कांस्य पदक जीते थे।

गिल ने पदक विजेता पूर्व खिलाड़ियों की पेंशन में बढ़ोतरी करने के अलावा राजीव गाँधी खेल रत्न और अर्जुन पुरस्कार की पुरस्कार राशि भी बढ़ायी। वह नयी दिल्ली में 2010 में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों की प्रगति का नियमित आकलन करते रहे।

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