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चम्मच तक नहीं उठाने वाले हाथों में है कप

सानिया और महेश भूपति ने जीता ग्रैंड स्लैम

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सीमान्त सुवीर

क्या यह महज अजूबा नहीं कहा जाएगा कि सानिया मिर्जा नाम की जिटेनिस सनसनी के हाथ छह माह पहले तक चम्मच तक नहीं उठा पातथे, वही हाथ आज ऑस्ट्रेलियन ओपन के मिश्रित युगल खिताब जीतकर भारी-भरकम कप उठाए नजर आए।

   कोई छह माह पहले तक सानिया के हाथों में इतना दर्द था कि वे चम्मच तक नहीं उठा पाती थीं लेकिन आज उनके हाथों में भारी-भरकम ऑस्ट्रेलियन ओपन का मिश्रित युगल का कप है। यह चमत्कार नहीं तो और क्या है      
चमत्कार होते हैं, लेकिन यदा-कदा...और ऑस्ट्रेलियन ओपन में वाइल्ड कार्ड के जरिये प्रवेश करने के साथ ही भूपति-सानिया मिर्जा की ‍गैरवरीय जोड़ी विजयी मंच तक पहुँच गई। दुनियाभर के टेनिसप्रेमी भारतीय टेनिस दबदबे के आज कायल हो गए हैं।

भारतीय टेनिस इतिहास में यह पहला प्रसंग है, जबकि किसी ग्रैंड स्लैम में तीन भारतीय एक साथ कामयाबी का सफर तय करने में कामयाब हुए हैं। पहले दिल्ली के यूकी भांबरी ने जूनियर वर्ग का खिताब जीता और अब सानिया-भूपति ने मिश्रित युगल में भारतीय परचम लहराया।

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पिछले डेढ़ दशक से भारतीय टेनिसप्रेमियों की जुबाँ पर तीन नाम ही उभरे। लिएंडर पेस, महेश भूपति और सानिया मिर्जा लेकिन अब चौथा नाम यूकी भांबरी का जुड़ गया है। माना कि पहले तीन नाम उम्र की ढलान पर हैं, लेकिन इनके खाली स्थान को भरने की शुरुआत यूकी भांबरी ने कर दी है।

22 सासानिया मिर्जा को मेलबोर्रॉड लेवर के कोर्ट का अच्छा खासा अनुभव रहा है। याद कीजिए गुजरे बरस को जब इसी कोर्ट पर सानिया ने ऑस्ट्रेलियन ओपन ग्रैंड स्लैम में तीसरे राउंड तपहुँचकर नई आस जगाई थी, लेकिन ऑपरेशन के बावजूद कलाई की चोट फिर उभर आने के कारण बीजिंग ओलि‍म्‍पिक के बाद से वे टेनिस कोर्ट पर नजर नहीं आईं। सानिया के नाम डब्ल्यूटीए का एक एकल और सात युगल खिताब हैं। वे युगल की रैंकिंग में 60वें स्थान पर बनी हुई हैं, जबकि एकल में उनकी रैंकिंग 100 से बाहर है।

  भारतीय टेनिस सनसनी की तमाम कमजोरियाँ महेश भूपति के तूफानी खेल के आगे दबकर रह गईं और एकल में 100 के पार रैंकिंग पर पहुँच चुकीं सानिया मिर्जा ने मिश्रित युगल खिताब जीतकर पूरी टेनिस बिरादरी को सकते में डाल दिया      
सानिया ने इन तमाम नाकामियों को पीछे छोड़ते हुए युगल में महेश भूपति के साथ जो करिश्माई प्रदर्शन किया है, उसे जल्दी भुलाया नहीं जा सकेगा। छह महीने पूर्व उनके हाथ का दर्द इतना अधिक था कि वे चम्मच तक नहीं उठा पा रही थीं, लेकिन चार माह कोर्ट से दूर रहने के बाद उन्होंने फिर से मेहनत की और आज परिणाम सबके सामने है।

महेश भूपति की जगह और कोई खिलाड़ी होता तो संभवत: सानिया मिर्जा आज विजयी मंच पर नजर नहीं आतीं। भूपति ने सानिया के प्रमोशन से लेकर उन्हें विज्ञापन की दुनिया तक पहुँचाने में अहम किरदार निभाया है। भूपति में गजब का टेनिस जज्बा है और इसी बूते वे कुल 11 ग्रैंड स्लैम (7 ग्रैंड स्लैम मिश्रित युगल में) खिताब अपने नाम के आगे चस्पा कर चुके हैं।

  महेश भूपति में गजब का टेनिस जज्बा है और गैर वरीय होने के बावजूद सानिया मिर्जा को साथ लेकर वह मैच दर मैच की रणनीति बनाते हुए विजयी मंच तक पहुँचकर जीत का सेहरा बाँधने में कामयाब रहे। इस जीत से टेनिस में भारतीय दबदबे का खुलासा भी हो गया      
जब मार्तिना नवरातिलोवा टेनिस की महारानी होती थीं, तब विजय अमृतराज ने उन्हें यूएस ओपन के दौरान भारत आने का न्योता दिया था। मार्तिना का सवाल था कि ग्लोब में ये भारत है कहाँ? तब विजय ने उन्हें दुनिया के सात आश्चर्यों में शुमार 'ताजमहल' की याद दिलाते हुए कहा था कि भारत ही वह देश है, जहाँ ताजमहल है। तब मार्तिना ने कहा था कि हाँ उन्हें ताजमहल के बारे में पता है।

कोई 20 बरस पहले हुई यह चर्चा महज चर्चा बनकर नहीं रह गई और बाद में मार्तिना के साथ लिएंडर पेस ने मिश्रित युगल ग्रैंड स्लैम जीतकर यह दिखाने का प्रयास किया कि वह जिस देश से आते हैं, उसका नाम भारत ही है। आज भारतीय टेनिस का जलवा और दबदबा देखकर मार्तिना नवरातिलोवा ही नहीं, पूरी दुनिया दंग है।

जो खिलाड़ी भारत का नाम ग्लोब में ढूँढते थे, उन्हीं खिलाड़ियों के सामने आज भारतीय खिलाड़ी पूरी आन, बान और शान के साथ उतरते हैं और अपने हाथों में कप लेकर ट‍ेनिस कोर्ट से बाहर आते हैं।

बहरहाल, साल के पहले ग्रैंड स्लैम में सानिया-भूपति ने एक धमाकेदार शुरुआत करके सवा अरब की जनसंख्या वाले भारत में यह तो उम्मीद जगा ही दी है कि यदि इस जोड़ी का यही तालमेल बरकरार रहा तो वे शेष तीन ग्रैंड स्लैम में कमाल का प्रदर्शन कर सकती है। सानिया को चाहिए कि वे स्वदेश लौटने के बाद ग्लैमर की दुनिया में न डूबें (जैसा कि वे अकसर करती हैं) और भूपति के साथ ही लगातार अभ्यास करते हुए फ्रेंच ओपन की तैयारियों में जुट जाएँ।

भूपति ने भी इस बात के संकेत दिए हैं कि हमारी जोड़ी सालभर कायम रहेगी। दरअसल दोनों में तालमेल बहुत बढ़िया है। यही तालमेल भारतीय टेनिस को लम्बी छलाँग पर पहुँचा सकता है। यह भी जरूरी है कि सानिया फिटनेस के साथ पुरानी चोट के प्रति सचेत रहें।

यकीनन सानिया-भूपति की यह कामयाबी सपने के सच होने जैसी है। भूपति भारतीय टेनिस के लिए एक 'नायक' की तरह उभरे हैं और स्वदेश लौटने पर मेलबोर्न के विजेताओं को 'लाल कारपेट' सम्मान दिया जाना चाहिए।

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