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भाग्य भरोसे है एथलेटिक में ओल‍िम्पिक पदक : श्रीराम

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नई दिल्ली , मंगलवार, 3 जुलाई 2012 (12:53 IST)
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अपने जमाने के दिग्गज एथलीट श्रीराम सिंह ने विदेशी कोच रखने की परपंरा की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि भारतीय एथलीटों के वर्तमान प्रदर्शन को देखते हुए उनसे लंदन ओल‍िम्पिक में पदक की उम्मीद नहीं की जा सकती।

एशियाई खेलों में दो बार 800 मीटर के स्वर्ण पदक विजेता और मांट्रियल ओल‍िम्पिक (1976) में सातवां स्थान हासिल करने वाले श्रीराम का मानना है कि यदि भारतीय एथलीट अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सफल रहते हैं तो यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी।

श्रीराम ने ‘भाषा’ से कहा कि हमारे एथलीटों के अभी तक के प्रदर्शन से तो लगता नहीं कि वे पदक जीत पाएंगे। काफी कुछ उस दिन के प्रदर्शन और भाग्य पर भी निर्भर करेगा है। यदि हमारे खिलाड़ी लंदन में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में भी सफल रहते हैं तो मैं उसे बड़ी उपलब्धि मानूंगा।

श्रीराम से जब पूछा गया कि भारतीय एथलेटिक दल में वे किस खिलाड़ी से कुछ उम्मीद रखते हैं तो उन्होंने पीटी उषा से कोचिंग लेने वाली 800 मीटर की धाविका टिंटु लुका का नाम लिया।

उन्होंने कहा कि उसमें दो मिनट के अंदर दौड़ पूरी करने का माद्दा है। मैंने हैदराबाद नेशनल्स में उसे देखा था और वे दो मिनट के अंदर दौड़ पूरी कर सकती है, लेकिन दूसरी लड़कियां 1 मिनट 55 सेकंड में दौड़ पूरी करती हैं। टिंटु को भी यहां तक पहुंचना होगा तभी वह अपनी प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती दे पाएगी। यदि कोई उलटफेर हो जाता है और भाग्य साथ में रहता है तो हम उसके सहारे फाइनल में पहुंचने की उम्मीद कर सकते हैं।

भारतीय एथलेटिक टीम के कोच रह चुके श्रीराम ने कहा कि विदेशी कोच रखने के चलन से इस खेल की स्थिति और खराब हुई। यदि आप विदेशी कोच रखते हो तो उनकी जवाबदेही भी तय होना चाहिए। देशी कोच की जवाबदेही होती है। विदेशी कोच रखने का कोई फायदा नहीं है। यदि विदेशी कोच सक्षम है तो उसे हमें ओल‍िम्पिक में स्वर्ण पदक दिलाना चाहिए।

यदि नार्मन प्रिचार्ड के 1900 में जीते गए दो रजत पदक को छोड़ दिया जाए तो ओल‍िम्पिक एथलेटिक्स में भारत पदक नहीं जीत पाया है। मिल्खा सिंह 1960 रोम ओल‍िम्पिक में 400 मीटर में चौथे स्थान, जबकि गुरबचन सिंह रंधावा 1964 में तोक्यो ओल‍िम्पि‍क में 110 मीटर बाधा दौड़ में पांचवें स्थान पर रहे थे। श्रीराम ने 1976 मांट्रियल ओल‍िम्पिक में 800 मीटर दौड़ में पदक की उम्मीद जगा दी थी, लेकिन आधी से अधिक दूरी तक पहले स्थान पर रहने के बावजूद उन्हें सातवें स्थान से संतोष करना पड़ा था।

श्रीराम ने कहा कि मैं तब पहली बार सिंथेटिक ट्रैक पर दौड़ा था। तब आज की तरह हमें विदेशों में प्रशिक्षण या विदेशों में होने वाली प्रतियोगिताओं में खेलने का मौका नहीं मिलता था। यदि तब सुविधाएं होती तो शायद बहुत पहले ओल‍िम्पिक एथलेटिक्स में भारत के नाम पर पदक दर्ज हो गया होता।

पीटी उषा ने 1984 में लास एंजिल्स ओल‍िम्पिक में उम्मीद जगाई थी। वे 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रही थी, लेकिन इसके बाद कभी भारतीय एथलीट ओल‍िम्पिक में प्रभावशाली प्रदर्शन नहीं कर पाए। (भाषा)

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