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यूरोपीय ही होगा विश्व कप चैम्पियन...

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केपटाउन , गुरुवार, 8 जुलाई 2010 (00:53 IST)
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विश्व कप चैम्पियन टीम यूरोपीय ही होगी। चाहे नीदरलैंड्‍स हो, स्पेन या फिर जर्मनी। पिछले विश्व कप में भी यूरोप का जलवा दुनिया ने देखा लेकिन फुटबॉल का वह महासमर उसकी अपनी सरजमीं पर लड़ा गया। विश्व कप फाइनल में फ्रांसीसी कप्तान जिनेडिन जिडान का इतालवी डिफेंडर मार्को मातेराज्जी को हेडबट, जिडान को लालकार्ड और पेनल्टी शूट आउट में इटली की जीत कौन भूल सकता है।

अफ्रीकी सरजमीं पर पहली बार खेले जा रहे विश्व कप में चार सप्ताह और 61 मैचों के बाद यह बात तो तय हो गई है कि इस खेल पर अब यूरोपीयों की पकड़ पहले से कहीं अधिक है।

अफ्रीका ने साबित कर दिया कि किसी खेल के सबसे बड़े आयोजन की मेजबानी में वह पूरी तरह सक्षम है। यह बात दीगर है कि जीत के प्रबल दावेदारों में वह कभी नहीं था। घाना अपनी छाप छोड़ने वाली एकमात्र अफ्रीकी टीम रही जो अंतिम आठ तक पहुँची।

अफ्रीका के पास प्रतिभाशाली फुटबॉलर हैं जो यूरोप के बड़े क्लबों में खेलते हैं, लेकिन अफ्रीका के पास दशकों का अनुभव, कोचिंग में महारत और यूरोप की बराबरी करने लायक दौलत नहीं है।

उलटफेरों से भरे इस विश्व कप में दक्षिण अमेरिकी टीमों का मानमर्दन हुआ है। अंतिम आठ में पहुँची चार दक्षिण अमेरिकी टीमों में से एक भी फाइनल तक नहीं पहुँच सकी।

पाँच बार की चैम्पियन ब्राजीली टीम सांबा जादू नहीं चला सकी। अगला विश्व कप 2014 में ब्राजील में होना है और यदि उसे छठा खिताब जीतना है तो एक और पेले पैदा करना ही होगा।

डिएगो मेराडोना के जुनून और फुटबॉल के प्रति प्यार ने अर्जेंटीनाई प्रशंसकों को भी खुश होने के मौके दिए। आक्रामक फुटबॉल में भरोसा करने वाले कोच ने डिफेंस की अनदेखी की जो भारी पड़ गई।

उरूग्वे के लुई सुआरेज विश्व कप के खलनायकों में से रहे। क्वार्टर फाइनल में अवैध रूप से उन्होंने हाथ का इस्तेमाल करके घाना का निर्णायक गोल रोका जिससे ब्लैक स्टार्स जीत सकते थे। फीफा ने उसे नीदरलैंड्‍स के खिलाफ सेमीफाइनल से बाहर कर दिया।

सुआरेज के बिना उरूग्वे की टीम काँटे की टक्कर नहीं दे सकी। दूसरी ओर नीदरलैंड्‍स ने जबर्दस्त आक्रामक खेल दिखाते हुए फाइनल में जगह बनाई, जहाँ उसका सामना स्पेन या जर्मनी से होगा। यानी यूरोपीय सरजमीं के बाहर खिताब नहीं जीत पाने का कलंक इस बार मिट जाएगा। (भाषा)

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