Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

इक़बाल के मुनफ़रीद अशआर

हमें फॉलो करें इक़बाल के मुनफ़रीद अशआर
, बुधवार, 21 मई 2008 (16:27 IST)
Aziz AnsariWD
अजब वाइज़ की दींदारी है यारब
अदावत है इसे सारे जहाँ से

कोई अब तक न ये समझा कि इंसाँ
कहाँ जाता है, आता है कहाँ से

मेरी निगाह में वो रिन्द ही नहीं साक़ी
जो होशयारी ओ मस्ती में इमतियाज़ करे

किसक़दर ए मै तुझे रस्मे हिजाब आई पसन्द
परदा ए अंगूर से निकली तो मीनाओं में थी

मैंने ए इक़बाल युरुप में इसे ढ़ूंढा अबस
बात जो हिंदोस्ताँ के माह सीमाओं में थी

फिर बादे बहार आई इक़बाल ग़ज़लख्वा हो
ग़ुंचा है अगर गुल हो, गुल है तो गुलिस्ताँ हो

उरूजे आदमे ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा महे कामिल न बन जाए

नहीं है नाउमीद इक़बाल अपनी किश्ते वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रखे़ज़ है साक़ी

मेरी मीनाए ग़ज़ल में थी ज़रा सी बाक़ी
शेख कहता है कि है ये भी हराम ए साक़ी

तेरे आज़ाद बन्दों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी, वहाँ जीने की पाबंदी

गुज़र-औक़ात कर लेता है ये कोहो-बियाबाँ में
कि शाहीं के लिए ज़िल्लत है कारे आशियाँ बन्दी

तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ए एहले मेहफ़िल
चिराग़े सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बेअदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

अनोखी वज़अ है, सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के यारब रहने वाले हैं

मेरे अशआर ए इक़बाल क्यों प्यारे न हों मुझको
मेरे टूटे हुए दिल के ये दर्द अंगेज़ नाले हैं

मोहब्बत के लिए दिल ढूँढ कोई टूटने वाला
ये वो मै है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में

ख़मोश ए दिल भरी महफ़िल में चिल्लाना नहीं अच्छा
अदब पहला क़रीना है मोहब्बत के क़रीनों में

बुरा समझूँ उन्हें ऐसा तो मुझ से हो नहीं सकता
कि मैं ख़ुद भी तो हूँ इक़बाल अपने नुकताचीनों में

गुल्ज़ारे हस्तोबूद न बेगानावार देख
है देखने की चीज़ इसे बार-बार देख

न आते हमें इसमें तकरार क्या थी
मगर वादा करते हुए आर क्या थी

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
जहाँ है तेरे लिए, तू नहीं जहाँ के लिए

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तेहाँ और भी हैं

तू शाहीं है, परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा

काफ़िर है मुसलमाँ, तो न शाही न फ़क़ीरी
मोमिन है तो करता फ़क़ीरी में भी शाही

काफ़िर है तो शमशीर पे करता है भरोसा
मोमिन है तो बे तेग़ भी लड़ता है सिपाही

वो सजदा रूहे ज़मीं जिससे कांप जाती है
उसी को आज तरसते हैं मिमबरो मेहराब

न तख्‍तोताज में ने लश्करोसिपाह में है
जो बात मर्देक़लन्दर की बारगाह में है

मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीरे उमम क्या है
शमशीरोसिना अव्वल, ताऊसोरबाब आखिर

मैख़ाना ए यूरुप के दस्तूर निराले हैं
लाते हैं सुरूर अव्वल, देते हैं शराब आखिर

नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो जब है कि गिरते को थाम ले साक़ी

जो बादा कश थे पुराने, वो उठते जाते हैं
कहीं से आबे बक़ा ए दवाम ले साक़ी

कटी है रात तो हंगामा गुसतरी में तेरी
सहर क़रीब है अल्लाह का नाम ले साक़ी

जाता हूँ थोड़ी दूर हर एक राहरौ के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं

परवाज़ है दोनों की इसी एक फिज़ा में
गरगस का जहाँ और है, शाहीं का जहाँ और है

पत्थर की मूर्ति में समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाके वतन का मुझको हर ज़र्रा देवता है

मस्जिद तो बना दी शब भर में, ईमां की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है, बरसों में नमाज़ी बन न सका

इक़बाल बड़ा उपदेशक है, मन बातों में मोह लेता है
गुफ्तार का ये ग़ाज़ी तो बना, किरदार का ग़ाज़ी बन न सका

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi