Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

ज़ौक़ के मुनफ़रिद अशआर

हमें फॉलो करें ज़ौक़ के मुनफ़रिद अशआर
, गुरुवार, 17 अप्रैल 2008 (14:19 IST)
कहिए न तंगज़र्फ़ से ए ज़ौक़ कभी राज़
कह कर उसे सुनना है हज़ारों से तो कहिए

बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
ज़ुबान-ए-खल्क़ को नक़्क़ारा-ए-खुदा समझो

क्या बगुले की तरह खाक का पुतला ऐ दोस्त
उड़ता फिरता है, भरी जब से हवा है इसमें

ये लोग क्यों मेरे ऐब-ओ-हुनर को देखते हैं
उन्हें तो देखें ज़रा वो किधर को देखते हैं

एहसान नाखुदा के उठाए मेरी बला
कश्ती खुदा पे छोड़ दूँ, लंगर को तोड़ दूँ

नाज़ुक ख्यालियाँ मेरी तोड़ें अदू का दिल
मैं वो बला हूँ शीशे से पत्थर को तोड़ दूँ

वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
ऐसी हैं जैसी ख्वाब की बातें

बेयार रोज़-ए-ईद, शब-ए-ग़म से कम नहीं
जाम-ए-शराब दीदा-ए-पुरनम से कम नहीं

देता है दौर-ए-चर्ख़ किसे फ़ुरसत-ए-निशात
हो जिसके पास जाम वो अब जम से कम नहीं

सफहा-ए-दहर पर यक दिल न हुआ एक से एक
दिल के दो हर्फ़ हैं, सो वो भी जुदा एक से एक

फिर तो आए खैर से हम जाके उस मग़रूर तक
पर उछलता ही रहा अपना कलेजा दूर तक

दिल-ए-शोरीदा सर ने खाक उड़ा कर
बियाबाँ रख लिया सर पर उठा कर

इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र-ए-सुखन
कौन जाए ज़ौक़ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर

ले गया दिल कौन मेरा ज़ौक़ किस का नाम लूँ
सामने आ जाए तो शायद बता दूँ देख कर

क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद
सीने में होगी सांस अड़ी दो घड़ी के बाद

बीमार-ए-इश्क़ का न जो तुझसे हुआ इलाज
कह ऐ तबीब तू ही कि फिर तेरा क्या इलाज

रहता सुखन से नाम क़यामत तलक है ज़ौक़
औलाद से तो है यही दो पुश्त चार पुश्त

दिल इबादत से चुराना और जन्नत की तलब
कामचोर इस काम पर किस मुंह से उजरत की तलब

शक्ल तो देखो, मुसव्विर खींचेगा तस्वीर-ए-यार
आप ही तस्वीर उसको देख कर हो जाएगा

ज़ौक़ है तर्क-ए-वतन में साफ़ नुक़्स-ए-आबरू
बिकते फिरते हैं गोहर होकर समन्दर से जुदा

क़िस्मत ही से नाचार हूँ ए ज़ौक़ वगरना
सब फ़न में हूँ मैं ताक़ मुझे क्या नहीं आता

न हुआ पर न हुआ मीर का अन्दाज़ नसीब
ज़ौक़ यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा

ऐ ज़ौक़ तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर
आराम से है वो जो तकल्लुफ़ नहीं करता

ले लो अपने रू-ए-सीमी पर ज़रा आबी नक़ाब
नीलोफ़र दिखला रहा है अपना जोबन आब में

नहीं खिज़ाब से मतलब हमें ये मू-ए-सफ़ेद
सियाह पोश हुए मातम-ए-जवानी में

फंसे न हलक़्क़-ए-गेसू-ए-ताबदार में दिल
बला से गर हो निवाला दहान-ए-मार में दिल

रख लिया उसने चमन में गुल जो सर पर तोड़ कर
मैं भी हाज़िर हूँ कहा ग़ुंचे ने यूँ मुँह फोड़ कर

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi