हम उन्हें यूँ हाल दिल का सुनाने में लगे हैं
कुछ कहते नहीं पाँव दबाने में लगे हैं
और ऐसे कहाँ हैरत ओ हसरत के मुरक़्क़े
ऐ दिल जो तेरे आईनाख़ाने में लगे हैं
कहना है उन्हें ये के न हम होंगे मुख़ातिब
पर कहते नहीं ज़ुल्फ़ बनाने में लगे हैं
क़ातिल तेरे दामन पे मेरे ख़ून के धब्बे
कुछ और भी ख़ंजर से छुड़ाने में लगे हैं
हर दम है ये डर फिर न बिगड़ जाए वो हसरत
पेहरों जिन्हें रो रो के मनाने में लगे हैं।