1. वह जालीम है इनायत क्या करेंगे
भलाई की हिमायत क्या करेंगे
जो सूरज से हसद रखते हो दिल में
चिरागों की हिफाजत क्या करेंगे
अमीरे शहर से मनसब जो पाएँ
वह मुफलीस की हिमायत क्या करेंगे
अबस ताबीर में उलझे हुए है
वह ख्वाबों को हकीकत क्या करेंगे
रिया के मुक्तदी जब हो गए हम
रजा सच की ईमामत क्या करेंगे।
2. ना मैं मस्जिद बनाता हूँ न मैं मंदिर बनाता हूँ
तकद्दूस को समझता हूँ मुकद्दस घर बनाता हूँ
समझता हूँ जमाने की निगाहों के तग़य्युर को
मुस्व्वीर हूँ सफहे वक्त का मंजर बनाता हूँ।
3. सर होता है हो जाए हवा कुछ नहीं कहते
हम अपनी हकीकत के सिवा कुछ नहीं कहते
जब राह में बिछती हो बबूलें तो तड़प कर
ऊफ मेरे खुदा और सिवा कुछ नहीं कहते
बातील की खुशामद के लिए जश्न शब-व-रोज
हक डूब मरा है के तिरा कुछ नहीं कहते
कीमत तुम्हें इक रोज चुकानी है के तुम भी
ज़ालिम को समझते हो बुरा कुछ नहीं कहते
पत्थर पे लुटाते हो अकीदत के गुलिस्ताँ
है धूल में अलमास पड़ा कुछ नहीं कहते
मौसम की तरह तुम भी बदल जाते हो अक्सर
कहती है हवा हम तो रजा कुछ नहीं कहते।