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वाहनों को भेजने का संकट

हमें फॉलो करें वाहनों को भेजने का संकट
जबलपुर , गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012 (07:57 IST)
व्हीकल फैक्टरी जबलपुर के सामने तैयार वाहनों को डिपो भेजने का संकट पैदा हो गया है। व्हीकल के वाहन अब तक सड़क मार्ग से पानागढ़, इलाहाबाद, जम्मू- कश्मीर, मुंबई, आसाम, गोहाटी आदि विभिन्न डिपो में जाते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ घटनाक्रमों के चलते सड़क मार्ग से वाहनों को भेजने पर अंकुश लगा दिया गया है। इसके अलावा व्हीकल में तैयार वाहन खड़ा करने की समस्या भी उभर आई है।


जानकारी के अनुसार, सेना की मांग पर देशभर की विभिन्ना डिपो में व्हीकल के निर्मित वाहन भेजे जाते हैं। लेकिन सेना की मांग के बावजूद मार्गों में आई बाधा के चलते तैयार वाहन डिपो तक नहीं पहुंच पा रहें हैं। वहीं दूसरी ओर वित्तीय वर्ष का समापन भी नजदीक है, जिसके चलते व्हीकल प्रशासन के सामने वित्तीय आंकड़े प्रस्तुत करने की समस्या भी बनी हुई है।


ये है वजह

कुछ माह पहले गांजा, अफीम जैसे मादक पदार्थों से भरे ट्रक पकड़े गए थे, जिससे सुरक्षा संस्थानों में हड़कंप मच गया था। इस घटना के बाद उच्चस्तरीय आदेश आया कि रेल के माध्यम से वाहनों को डिपो तक पहुंचाया जाए। सूत्रों की मानें तो रेलवे के माध्यम से वाहनों को भेजना व्हीकल प्रबंधन को रास नहीं आ रहा है। इसकी वजह सड़क मार्ग की तुलना में कम वाहन और समय अधिक लगना है। वहीं सड़क मार्ग से एक बार में 50 से 60 गाड़ियों का काफिला समय पर पहुंच जाता है। जानकारी अनुसार, पहले जब गाड़ियों का काफिला सड़क मार्ग से जाता था तो उसमें एक कर्मचारी वाहनों को डिपो तक पहुंचाने का काम करता था लेकिन रेल मार्ग से वाहन भेजे जाने पर दो से तीन लोगों का स्टाफ जा रहा है।


निजी कंपनियों की साजिश?

सुरक्षा क्षेत्र में इस बात को लेकर भी चर्चाएं हैं कि यह निजी कंपनियों की साजिश है। व्हीकल को सेना की ओर से जो काम मिलता है वह उसकी आपूर्ति समय पर होती है। वहीं निजी कंपनियां सेना से काम हथियाने के लिए कई बार सड़क मार्गों पर अवरोध पैदा कर व्हीकल को चुनौती देती हैं। व्हीकल फैक्टरी में इतना उत्पादन हो गया है कि गाड़ियां रखने की जगह तक कम पड़ने लगी है इससे दुर्घटनाओं का अंदेशा भी बढ़ गया है।


विकल्प की तलाश

पहले सेना की एक इकाई स्वयं सीओडी से वाहनों को ले जाने का काम करती थी। इसके बाद देश की अन्य डिपो में सेना अपने स्तर पर पहुंचाने का काम करती थी। बाद में हुए फेरबदल के कारण यह व्यवस्था वापस फैक्टरी की झोली में आ गई। तय हुआ कि फैक्टरी डिपो तक वाहनों को पहुंचाएगी। इसी बीच हुए घटनाक्रमों ने सारी व्यवस्था चौपट कर दी है जिससे फैक्टरी की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। फिलहाल वाहनों को डिपो तक भेजने का सारा दारोमदार रेलवे के भरोसे है। हालांकि प्रबंधन एक ऐसे विकल्प की तलाश में है जिसके माध्यम से वाहनों को सुलभता से भेजा जा सके।


इनका कहना है

फैक्टरी में इतना उत्पादन हो चुका है कि 3 एकड़ का स्टेडियम गाड़ियों से भरा पड़ा है। पूरा तंत्र इसी काम पर लगा हुआ है कि कैसे भी करके 31 मार्च तक गाड़ियों को भेजा जाए क्योंकि समय कम है। वाहनों को भेजने में मुश्किल हो रही थी, जिससे निपटने के लिए रेल मंत्रालय से मिलकर रैकों के सहारे गाड़ियों को भेजने का काम किया जा रहा है। पहले यही कार्य सड़क मार्ग से होता था जो अब कई वर्षों के बाद एक बार फिर से रेलवे के सहयोग से किया जा रहा है।


एसके मिश्रा, संयुक्त महाप्रबंधक, व्हीकल फैक्टरी जबलपुर




-राकेश मिश्रा

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