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ताड़ी के लिए करना पड़ेगा इंतजार

हमें फॉलो करें ताड़ी के लिए करना पड़ेगा इंतजार
झाबुआ , मंगलवार, 3 जनवरी 2012 (01:03 IST)
मौसम का असर ताड़ी पर भी पड़ा है। वैसे हर साल इसकी आमद दिसंबर के अंतिम दिनों में हो जाती है, लेकिन इस बार ठंड अधिक होने से इसके रसिकों को थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है।


झाबुआ जिले में से आलीराजपुर के निकल जाने के बाद यहाँ वैसे ही ताड़ी के पेड़ नहीं के बराबर बचे हैं। झाबुआ से सटे ग्राम रंगपुरा में 13 पेड़ हैं और कुछ ताड़ भगोर, डुगरा आदि इक्का -दुक्का स्थानों पर हैं। रंगपुरा के तोलिया तेरसिंह बताते हैं कि आलीराजपुर जिले से आने वाली ताड़ी फिलहाल झाबुआ में नहीं आ रही है। उनके परिवार में 8 वांजिया ताड़ एवं 5 फुलनिया ताड़ हैं। ये सभी ताड़ अलग-अलग सदस्यों में बँटे हुए हैं। सर्दी अधिक होने से ताड़ी नहीं निकलती है। जब मौसम थोड़ा संतुलित हो जाता है तो ताड़ी निकलना आरंभ हो जाती है। एक पेड़ पर 10-12 लोटी ताड़ी प्रतिदिन निकल जाती है।


सुबह निकलती है ताड़ी

तोलियासिंह के अनुसार सुबह 6-7 बजे वे पेड़ पर चढ़कर ताड़ी निकालते हैं और ताड़ी की खपत परिवार के सदस्यों में ही हो जाती है। प्रतिदिन 10-15 लोग ताड़ी के बारे में पूछने आ जाते हैं और ताड़ी होने पर पहले 15 रुपए प्रति लोटी के हिसाब से ताड़ी देते हैं। वांजिया ताड़ पर फल नहीं लगता है, जबकि फुलनिया ताड़ पर फल लगते हैं।


पोते को मिलता है फल

फल को बोने पर ताड़ का पेड़ लग जाता है, लेकिन इसके लिए धैर्य की जरूरत होती है। यदि दादाजी ताड़ का पेड़ लगाते हैं तो पोते को ताड़ी पीने को मिलती है। इस पेड़ को भरपूर पानी की जरूरत पड़ती है। उनके परिवार के सदस्यों द्वारा 12 ताड़ लगाए गए हैं। 30-40 वर्षों के बाद भी उनमें ताड़ी आना आरंभ नही हुई है। एक पेड़ को भरपूर पानी मिलने से वह अधिक गति से बड़ रहा है।


दवा का भी काम

ताड़ी के शौकीन राजेन्द्र कनेश ने बताया कि ताड़ी फायदा भी पहुँचाती है। उनका कहना हेै कि यदि सीमित मात्रा में ली जाए तो यह दवा का काम करती है। प्रातः निकलने वाली ताड़ी फायदेमंद रहती है और बाद में सूरज की किरणों के कारण इसमें खटास आ जाती है एवं नशा अधिक हो जाता है। आलीराजपुर जिले की मिट्टी अनुकूल होने से वहाँ ताड़ के पेड़ अधिक हैं। झाबुआ जिले की जमीन पथरीली है, इस कारण यहाँ ताड पनप नहीं पाते हैं।


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