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गौमूत्र से निर्मित हो रहीं 42 प्रकार की औषधियाँ

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रतलाम , गुरुवार, 1 सितम्बर 2011 (03:19 IST)
गौशालाओं के विकास एवं उन्नाति के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इससे इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई है। विहिप का उद्देश्य गौशाला बचाने के साथ गौवंश पालन से आम लोगों को स्वस्थ बनाना है। गौमूत्र से 42 प्रकार की औषधियाँ एवं 26 प्रकार की फसलरक्षक कीट नियंत्रण दवाइयाँ निर्मित की जा रही हैं।


उक्त बात विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हुकुमचंद्र साँकला ने कही। वे रतलाम जिले के जावरा नगर प्रवास के दौरान नपाध्यक्ष निर्मला हाड़ा के निवास पर पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने बताया कि विहिप के माध्यम से गौपालन द्वारा पंचम औषधियाँ, खाद एवं कीटनाशक दवाई का निर्माण प्रारंभ किया गया है। साबुन, देशी घी, मच्छर भगाने की अगरबत्ती आदि बनाए जा रहे हैं, जो नागपुर, अकोला, कानपुर, रायपुर, मुंबई, जयपुर, दुर्ग एवं भोपाल में निर्मित होते हैं। गौमूत्र से 42 प्रकार की औषधियाँ एवं 26 प्रकार की फसलरक्षक कीट नियंत्रण दवाइयाँ निर्मित की जा रही हैं। 13 प्रकार की खाद देश की 375 गौशालाओं में तैयार हो रही है।


उन्होंने बताया कि इंदौर शहर में गाय के दूध की खपत प्रतिदिन 5 हजार लीटर की है। श्री साँकला ने बताया कि देश में दान की परंपरा कायम है। विवाह के अवसर पर गोदान की परंपरा का निर्वाह करते हुए 2307 बेटियों की शादी में परिजनों ने 4614 गायों का दान किया है। गौसंवर्धन आयोग द्वारा 2 करोड़ 38 लाख रुपए का अनुदान भी दिया गया है। गौवंश की रक्षा के लिए गत 4 वर्षों में 15 लाख 60 हजार गौवंश को छुड़ाया है। उन्होंने बताया कि अनेक गौशालाओं में गौग्रास योजना चल रही है।


-निप्र

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