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शेर से लड़ी बहादुर शारदा

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- दिनेश प्रजापति

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घना जंगल... लकड़ी बीनती कुछ ग्रामीण युवतियाँ और खूँख्वार शेर का आक्रमण... कहानी पूरी तरह किसी एक्शन फिल्म की तरह लगती है, लेकिन है यह बिलकुल सच्ची! इस नायिका प्रधान कहानी की नायिका हैं... १७ साल की शारदा बंजारा, जिन्होंने न केवल शेर महाशय से मुकाबला करने की दिलेरी दिखाई, बल्कि उनके कान उमेठकर उन्हें दुम दबाकर भागने को मजबूर कर दिया। आइए ज़रा विस्तार से जानते हैं।

नीमच (मप्र) जिला मुख्यालय की तहसील मनासा के गाँव बाक्याखेड़ी में रहती है शारदा। वो ५वीं तक पढ़ी है, लेकिन ५वीं पास से काफी तेज है। वो आगे पढ़ना भी चाहती है, लेकिन फिलहाल बाकी ही कई अन्य ग्रामीण और निचले तबके की लड़कियों की तरह उसके रास्ते में भी आर्थिक, सामाजिक व अन्य बाधाएँ हैं।

खैर... अभी हम चलते हैं कहानी के दूसरे प्रमुख हिस्से की ओर। तो एक दिन की बात है... उस दिन खेतों में निंदाई के काम से छुट्टी थी सो, शारदा चूल्हा जलाने के लिए जंगल में लकड़ियाँ बीनने गई। साथ में थीं दो बहनें, कमला व संगीता, भाभी टम्मू तथा काकी पन्नी।

  इन्हीं कुछ पलों में शारदा ने सोच लिया कि जब लड़ाई तय ही है तो क्यों न पूरे जोश के साथ लड़ा जाए। शेर ने उसकी पिंडली पकड़ रखी थी। शारदा ने तुरंत लपक कर पूरी ताकत के साथ शेर के कान पकड़ लिए और अपनी पिंडली छुड़ाने का प्रयास करने लगी।      
जंगल में जाते ही कुछ किलोमीटर की दूरी पर उन्हें जंगल के राजा के दर्शन हो गए, लेकिन महिलाओं ने सोचा कि दूरी काफी है, सो राजा साहब प्रजा के पास शायद ही तशरीफ लाएँ। यह सोचकर वे अपने काम में लग गईं, लेकिन शेर महाशय ने तब तक उनकी उपस्थिति सूँघ डाली थी, सो दबे पाँव वे आ पहुँचे और उन्होंने सबसे करीब लकड़ियाँ चुन रही शारदा पर झपट्टा मार दिया।

अचानक हुए इस हमले ने शारदा का संतुलन बिगाड़ दिया और कुछ सेकंड के लिए उसे समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ.. उसकी चीख सुनकर अन्य महिलाओं ने उसकी तरफ देखा और एक सम्मिलित चीख के साथ वे सब गाँव वालों को बुलाने के लिए दौड़ गईं। उन्हें लगा शायद शेर (बाघ, दरअसल आम भाषा में हर "बिग कैट" को शेर ही कहा जाता है।) ने शारदा को खत्म कर डाला।

इन्हीं कुछ पलों में शारदा ने सोच लिया कि जब लड़ाई तय ही है तो क्यों न पूरे जोश के साथ लड़ा जाए। शेर ने उसकी पिंडली पकड़ रखी थी। शारदा ने तुरंत लपक कर पूरी ताकत के साथ शेर के कान पकड़ लिए और अपनी पिंडली छुड़ाने का प्रयास करने लगी। इसी बीच उसने एक बड़ा पत्थर उठाकर शेर के सर पर दे मारा।

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शेर महाशय को इस दुबली-पतली, मरियल-सी लड़की से शायद ऐसी दिलेरी की उम्मीद नहीं थी। हमला तेज होते ही उन्हें लगा, "जान की खैर चाहिए तो भाग ले बेटा.." और बस, शेर महाशय दुम दबाकर भाग लिए।

घायल शारदा खुद ही चलकर जैसे-तैसे घर पहुँची। घर पर वह माँ के सामने डर के मारे सच नहीं बता पाई। बस इतना कह पाई कि जंगल में पेड़ से गिर गई, लेकिन थोड़ी देर बाद उसकी हालत खराब होने लगी और उसे सच बताना पड़ा। उसे तुरंत मनासा के शासकीय अस्पताल ले जाया गया और फिर बाद में एक निजी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। फिलहाल शारदा स्वास्थ्य लाभ ले रही है।

  मनासा के गाँव बाक्याखेड़ी में रहती है शारदा। वो ५वीं तक पढ़ी है, लेकिन ५वीं पास से काफी तेज है। वो आगे पढ़ना भी चाहती है, लेकिन फिलहाल बाकी ही कई अन्य ग्रामीण और निचले तबके की लड़कियों की तरह उसके रास्ते में भी आर्थिक, सामाजिक व अन्य बाधाएँ हैं।      
एक पुरानी जींस और टी-शर्ट पहनने वाली दुबली-सी शारदा के साहस के चर्चे चारों ओर हैं। शारदा की माँ कहती है कि उनकी बेटी को शेर पर सवार होने वाली माता और तेजाजी महाराज ने बचाया है। बस अब बेटी जल्दी से ठीक हो जाए, यही देवी माँ से कामना है।

बहरहाल, सभी के लिए प्रेरणा बन गई शारदा की इच्छा आगे पढ़ने की भी है और इसके लिए वह अपने माता-पिता के साथ गाँव के स्कूल में प्रवेश लेने भी गई थी, लेकिन किन्हीं अज्ञात कारणों से उसे प्रवेश नहीं मिल सका।

इच्छा पूरी नहीं हो सकी तो शारदा ने घर और खेती के कामों में मन लगा लिया। परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई विजयसिंह और तीन बहनें कस्तूरी, बतूल तथा सुमित्रा हैं। राधा, रुकमा, मोजम, कमला और संगीता शारदा की अच्छी सहेलियाँ हैं और अब तो शारदा इनकी ही नहीं, हम सबकी भी "नायिका" बन गई है। कितना अच्छा हो कि इस साहसी लड़की की पढ़ने और आगे बढ़ने की इच्छा भी पूरी हो जाए! इसके लिए हमारी दुआएँ उसके साथ हैं।

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