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अहं की लड़ाई में उलझे स्त्री-पुरुष

हमें फॉलो करें अहं की लड़ाई में उलझे स्त्री-पुरुष

गायत्री शर्मा

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स्त्री-पुरुष हमारे परिवार व समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है। जिनके बारे में कहा जाता है कि ये परिवार रूपी गाड़ी के वे दो पहिये है, जो सामंजस्य बैठाकर एक साथ चलते हैं। लेकिन आज जमाना बदल चुका है। अब लोगों की सोच, उनका कार्य व जीवनशैली सभी में चमत्कारिक परिवर्तन आया है और इस परिवर्तन ने हमारी सारी पुरानी धारणाओं को बदल डाला है।

कल तक कहा जाता था कि स्त्री की रक्षा का संपूर्ण दायित्व पुरूष पर है। 'पुरूष' अर्थात स्वभाव से कठोर व ईरादों से बुलंद तथा 'स्त्री' अर्थात व्यवहार से नम्र व भावनात्मक रूप से कमजोर। बचपन में भी जब भाई-बहन लड़ते थें, तब हमारे माता-पिता अक्सर यही कहते सुने जाते थें कि 'अरे, तू लड़का होकर रोता है। रोना-धोना तो लड़कियों का काम है और तू तो मेरा बहादुर बेटा है।'

बचपन से हमें सिखाई जाने वाली इस तरह की बातें स्त्री-पुरूष में लिंग व प्रकृति के आधार पर भेद को उपजाती है और धीरे-धीरे यह हमारी सोच के रूप में विकसित हो जाती है। इससे बड़े होकर स्त्री व पुरुष में एक प्रतिद्वंदिता व अधिकारों की लड़ाई की शुरूआत होती है।

सभी जगह यही दिखाया जाता है :-
आजकल टेलीविजन में भी यही सब कुछ दिखाया जा रहा है। स्त्री-पुरुष की जंग व अहं की लड़ाई को दिखाकर उनमें बिखराव व विरोधाभासी विचारों को जन्म दिया जा रहा है। इन धारावाहिकों में कमाऊ व अभिमानी स्त्री पुरुषों से अपनी आजादी की दरकार करते हुए नजर आ रही है, जिसे देखकर यहीं प्रतीत होता है कि वह पुरुषों से वार्ता नहीं बल्कि जंग करने की तैयारी में है।

वहीं दूसरी ओर इन धारावाहिकों में पुरुष का पुरुषत्व उसे किसी महिला की गुलामी करने की इजाजत नहीं देता है। उसका अहं उसे अपनी बीवी की कमाई पर ऐश करने की इजाजत नहीं देता। इस प्रकार विचारों में मतभेद के कारण स्त्री-पुरुष में एक शीत युद्ध की शुरूआत हो जाती है, जो आगे चलकर उनके परिवार में बिखराव का कारण बनती है।

आज मेरे पास सब कुछ है :-
स्त्री-पुरुष के बढते विवादों का कारण स्त्री का निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर होना भी है। कल तक हमारे समाज में स्त्रियाँ केवल टाइपिस्ट, शीक्षिका या सेकेटरी की भूमिका में ही नजर आती थी और पुरुषों के अधीन काम करती थी किंतु आज शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के चलते स्त्रियाँ या तो किसी कंपनी की बॉस है या उच्च पदों पर आसीन है, जिसके अधीनस्थ कई सारे पुरुष काम करते हैं।

जो ताकत कल पुरुषों के हाथों में थी, अब वो स्त्रियों के हाथों में चली गई है। पुरुष इन सब बातों में स्वयं को हारता हुआ महसूस करता है और अपने अहं के बूते पर स्त्री पर रौब जमाने के कयास में उलझा रहता है।

प्यार बन गया है जंग :-
स्त्री-पुरुष की आपसी प्रतिस्पर्धा व अहं के टकराव की इस जंग में उनका प्यार कहीं खो सा गया है। अब वे एक-दूसरे के जीवनसाथी कम और प्रतिस्पर्धी अधिक बन गए है। उनकी इस लड़ाई में दोनों के हाथ कुछ नहीं लग रहा है। मिल रहा है तो तनाव और दु:ख। इन सभी से हो रहा है परिवारों का विघटन।

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