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अधिकारों का हुआ असर

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- लोकेन्द्र सिंह कोट
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महिला सशक्तीकरण उनको बिना अधिकार दिए नहीं किया जा सकता है, इसी को ध्यान में रखते हुए 1992 में संविधान में 73वाँ संशोधन कर पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। विश्व के किसी भी अन्य देश में पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण नहीं किया गया है।

बिहार के बाद मध्यप्रदेश में पंचायत चुनावों में यह प्रतिशत बढ़ाकर 50 कर दिया है। तब से लेकर अब तक प्रदेश में तीन पंचायत चुनाव हो चुके हैं और महिलाओं ने अब धीरे-धीरे अपने अधिकारों को जानने से लेकर उनके प्रयोग करने तक का सफर तय कर लिया है।

संविधान में उठाए गए इस कदम के सकारात्मक परिणाम भी नजर आने लगे हैं। महिलाओं में जागृति आई है और अब वे राजनीति के साथ ही साथ सामाजिक क्षेत्र में भी अपनी सक्रिय और रचनात्मक भूमिका निभाने लगी हैं।

कुछ समय में देश के कुछ हिस्सों में ग्रामीण महिलाओं ने अभूतपूर्व जागृति का परिचय दिया है। मणिपुर, आंध्रप्रदेश तथा हरियाणा में शराब बंदी लागू करने के पीछे ग्रामीण महिलाओं के आंदोलन की ही भूमिका है। मणिपुर में तो ग्रामीण महिलाओं ने शराबबंदी के लिए आंदोलन चलाया, शराब पीने वाले पुरुषों का सामाजिक बहिष्कार किया और उससे भी आगे जाकर शराब पिए हुए पुरुषों की पिटाई करने तक का आंदोलन चलाया और इसमें अपने घर के पुरुषों को भी नहीं बख्शा।

इसके साथ ही अन्य राज्यों उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों में इन गिनी-चुनी महिलाओं ने सामाजिक बुराई और अन्याय के प्रति संघर्ष का बिगुल बजाकर उन पर काबू पाने में सफलता भी हासिल की।

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