बेटी के लिए माँ का घर हमेशा ऐसी जगह होती है जहाँ वह जाना चाहती है। और खुलकर जीना चाहती है। यह भी उस का अपना ही घर होता है लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि बेटी मायके को सिर्फ आराम करने की जगह ही मानती है।
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कई बार युवतियाँ मायके जाती हैं और दिन भर भाभी पर हुक्म चलाती हैं। अपने बच्चे कब खा रहे हैं कब नहा रहे हैं यह जिम्मा भी भाभी पर डाल देती हैं। उनको लगता है कि मायका तो होता ही है आराम करने के लिए। फिर ससुराल जाकर तो उन्हें काम ही करना है। लेकिन यह सोच ठीक नहीं है काम से तो मनुष्य क्रियाशील बनता है, जितना आप आराम करके अपने शरीर को सुस्त बनाएँगी उतना ही कष्ट आपको ससुराल जाकर फिर से काम करने में होगा।
लेकिन यह भी न करें कि पूरा काम ही अपने ऊपर ले लें, बल्कि आप उचित सहयोग से काम लें। मायके आने पर मां से और भाभी से नई-नई चीजें बनाना सीखें। वही चीजें ससुराल में आपको वाह-वाही दिलाएँगी। बुनाई, कढ़ाई, सिलाई या कोई नया व्यंजन हो आप कुछ भी पीहर में सीख कर ससुराल में प्रशंसा प्राप्त कर सकती हैं।
मायका आपको अच्छा लगता होगा, इस में कोई शक नहीं है लेकिन इतना याद रखें कि मायका तो मायका ही है, वहां अधिक समय तक रहेंगी या बारबार जाएँगी और जाकर आराम करेंगी तो सभी को खटकने लगेगा। होगा यह कि भाभी आपके आने के पहले ही अपने मायके निकल जाएगी। मायके जा कर आरामी जीव बनना तो और भी बुरा है। विपत्ति के समय जल्दी से जल्दी मायके पहुंचें व दुखदर्द में हाथ बटाएं। एक बात हमेशा याद रखें कि मायके की भी अपनी मर्यादाएं होती हैं, जिन को निभाना आवश्यक होता है।