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ये आजाद पंछी हैं...

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बच्‍चे आजाद उन पंछि‍यों की तरह होते हैं जि‍न्‍हें ना आज का गम है ना कल की फि‍कर। उनके सारे काम स्‍वत: स्‍फूर्त होते हैं। लेकि‍न हम बड़े न जाने क्यों हमेशा उन्‍हें नि‍यम कायदे कानूनों में बाँधने में लगे रहते हैं। हम उन्‍हें अपने हि‍साब से बनाना चाहते हैं। सही ये होगा कि‍ वे अपने हि‍साब के बनें। तब ही वे अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाएँगे और आगे बढ़ पाएँगे।

शिक्षा से न लगाएँ अंदाजा
रवीन्द्रनाथ टैगोर के घर एक किताब थी जिसमें एक खेल चला करता था जिसमें बड़े-बूढ़े घर के बच्चों के संदर्भ में भविष्यवाणियाँ किया करते थे। घर में ग्यारह बच्चे थे जिनमें रवीन्द्रनाथ ही थे जिनके संबंध में कभी अच्छी भविष्यवाणी नहीं हुई, क्योंकि न वे प्रथम आते थे न ही कोई गोल्ड मेडल लाते थे।

रवीन्द्रनाथ की माँ ने भी लिखा है कि रवि से कोई आशा नहीं। आज सिर्फ रवीन्द्रनाथ को ही लोग जानते हैं। आइंस्टीन कभी भी गणित के सवाल ठीक तरह से हल नहीं कर पाए। यदि उस समय इनके बारे में कोई अंदाजा लगाता तो!

जीवन से निकलता गणित
एक गणित अध्यापक ने एक बच्चे से प्रश्न पूछा कि राजू मैंने तुम्हारे पिताजी को 1000 रुपए दिए। उसमें से उन्होंने 500 रुपए मुझे लौटा दिए। मेरे पास कितने रुपए बचेंगे? राजू ने कहा, सर बिलकुल नहीं। अध्यापक चौंके और बोले, तुम्हें इतना गणित नहीं आती! राजू कहा, सर सवाल गणित का नहीं, आप मेरे पिताजी को नहीं जानते। हाँ ये उत्तर है, जो बच्चे जीवन से खोजते हैं जिन्हें बड़े अक्सर किताबों में खोजते रहते हैं।

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समय के साथ खोती रचनात्मकता
बचपन जिंदगी से संचालित होता है जबकि हम अपनी आदतों से। हमारा मस्तिष्क एक प्रोग्रामिंग के तहत कार्य करता है जिसके प्रोग्राम हमारी आदतों से ही तय होते हैं। इसमें समय के साथ हमारी रचनात्मकता समाप्त होती जाती है। इस संदर्भ में अभी एक प्रयोग किया गया कि कुछ कमरों में दरवाजे और बिस्तर के बीच टेबल रख दी गई।

इससे वहाँ रहने वाले व्यक्तियों को दरवाजे तक पहुँचने के लिए टेबल का राउंड लगाना पड़ता था। उनमें से अधिकतर व्यक्ति टेबल को हटा देने पर भी आदतानुसार राउंड लगाकर ही दरवाजे तक कई दिनों तक पहुँचते रहे।

बच्चों के निर्माण में बनें सहयोगी
बच्चों की हाजिरजवाबी अक्सर हँसाती है, लेकिन आप बच्चों को सिर्फ बच्चा समझने की भूल न करें बल्कि उन्हें समझकर उनकी प्रतिभा को निखारने में उनका सहयोग करें। एक बच्चे से किसी ने पूछा, तू बड़ा होकर क्या बनेगा। उसने तुरंत जवाब दिया कि पागल! यह हैरानी की बात थी।

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पर बच्चे का जवाब वाकई समझदारीभरा था। उसने कहा, मेरी मम्मी मुझे डॉक्टर बनाना चाहती है, पापा इंजीनियर। भैया को क्रिकेट से बड़ा प्यार है तो उन्हें मुझमें तेंडुलकर दिखता है। मेरे चाचू को हारमोनियम प्ले करना आता है तो वे चाहते हैं कि एक अच्छा संगीतज्ञ बनूँ। अब बताइए मैं पागल नहीं होऊँगा तो और क्या होऊँगा!

जबरन की मालकियत
एक माँ अपने बेटे डब्बू से कहती है कि जरा देख तो बाहर पप्पू क्या कर रहा है? और वह जो भी कर रहा हो उससे कह दे कि न करे। आप सिर्फ इसलिए आदेश न दें कि आप उसके माता या पिता हैं।

फिर भी सिखाना तो पड़ता ही ह
एक काउंसलर के पास एक माता-पिता अपने किसी बच्चे की समस्या को लेकर गए। काउंसलर ने पूछा, क्या आप अपने बच्चे को मारते हैं। जब उन्होंने कहा, हाँ कभी-कभी तो यह जरूरी हो जाता है। काउंसलर ने कहा, सब इसी की देन है। आप नहीं जानते बच्चे के अवचेतन मन पर इसका इसका कितना दुष्प्रभाव पड़ता है।

जब काउंसलर के लेक्चर से वे परेशान हो गए तो उन्होंने कहा, क्या आपके बच्चे हैं! काउंसलर ने कहा, हाँ। तो एक बार दिल पर हाथ रख कह दीजिए कि आप उन्हें नहीं मारते। काउंसलर ने कहा, अब मैं आपको क्या बताऊँ।

सिद्धांत तो सिद्धांत होते हैं। जीवन में व्यावहारिकता के लिए ऐसा भी नहीं कि आप उसे कुछ नहीं बताएँ और सिखाएँ नहीं। बस उसके आंतरिक व्यक्तित्व को बदलने कोशिश न करें।

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