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एबीसी : जो बेटियों ने दोहराई

बेटियों, मुझे नाज है तुम पर

हमें फॉलो करें एबीसी : जो बेटियों ने दोहराई
ज्योति जैन

एक स्त्री होना अपने आपमें मुझे गौरव का अनुभव कराता है और मातृत्व इस गौरव को द्विगुणित कर देता है और यदि ये मातृत्व बेटियों का है तो इसमें और कई गुना इजाफा हो जाता है। अपनी बेटियों के जन्म के बाद मैंने इस बात को हमेशा महसूस किया। उनके साथ बिताए हर पल को भरपूर प्यार के साथ जिया।

जब अपनी गोद का सुरक्षा कवच उन्हें प्रदान करती तो उनके हावभाव से मालूम हो जाता कि वो मेरी गोद में स्वयं को महफूज महसूस कर रही हैं। मेरी एक उंगली पर भी उनकी नन्ही उंगलियों की पकड़ का अर्थ मालूम हो चला था। उनका पहली बार बैठना, घुटने चलना... हर पल की हर छवि मेरी स्मृतियों में कैद है। जब नन्ही गुलाबी-गुलाबी पगथली धरती पर डगमगाई तो फौरन उन्हें थामा। उसने भी मानो डग भरने की खुशी में किलकारी मारी और हथेली आसमान की ओर उठाई, मानो कह रही हो 'ममा! मुझे आसमान छूना है' और मैंने तय किया कि उनके हौसलों की उड़ान में मैं साथ दूंगी।

लकड़ी की तीन पहिए वाली गाड़ी पर चलते-चलते वे दोनों दौड़ना सीख गईं। गिरने से पहले ही संभल जाती थी। इस दौड़ के साथ स्कूल की दौड़ भी शुरू हुई। एबीसी से लेकर 1, 2, 3 और छोटी-छोटी कविताओं का सफर चलता रहा।

फिर साइकल की बारी आई। मैंने फिर कमर कसी। सीट से पकड़कर पीछे-पीछे घूमना और देखते-देखते दोनों फर्राटे से साइकल चलाने लगीं। समय के साथ बदलाव आया। साइकल की जगह स्कूटी ने ली। इस बार साथ देने के लिए मैं उनके पीछे बैठी। दो-चार बार डगमगाने के बाद जब उन्होंने मेरा हाथ अपने कंधे पर पाया तो लगा वे निश्चिंत हो गाड़ी चला रही हैं।

आज ये सत्र इसलिए याद आया कि कल, परिस्थितियां व पात्र भी बदल गए। मेरी उन्हीं दोनों नन्हियों ने बिना मेरी प्रत्यक्ष मदद के कार चलाना सीख लिया। और आज जब सुबह-सुबह मेरी बेटी ने मुछे ड्राइविंग सीट पर बैठाया, जो मैं सीखने के बाद भी टाल रही थी। भूमिकाएं रिवर्स हो गईं आज उसने मुझे एबीसी वानी एक्सीलेटर ब्रेक और क्लच सिखाया।

'मां ब्रेक दबाओ, गियर बदलो और एक्सीलेटर धीरे-धीरे छोड़ो। शाबाश ममा, वैरी गुड और आपको तो ट्रेफिक सेन्स भी है न कोई प्रॉब्लम नहीं होगी बिंदास चलाओ।' कहते-कहते मेरे गियर पर रखे हाथों पर उसकी नाजुक हथेली मजबूती से जम गई। यह वही मैं हूं ना का भाव था जो कभी उसे मैंने दिया था।

मैंने गाड़ी का शीशा नीचे किया और ताजी हवा को गहरी सांस ले फेफड़ों में भर लिया। स्वयं में नई ऊर्जा के संचार का अनुभव किया। तभी आसमान में चिड़‍ियों का झुंड चहचहाता हुआ गुजरा, वे चिड़‍िया जो हमेशा मुझे आसमान में उड़ने के लिए ललचाती थीं।

मैंने पुन: गहरी सांस ली। मेरी बेटियों मेरे साथ हैं, उनका हौंसला मेरे साथ हैं। अब तो उड़ना है हौंसलों से, आत्मविश्वास से...और मैंने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी।

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