Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बोध योग से मिलती संतापों से मुक्ति

बोध को जाग्रत करें ध्यान से...

हमें फॉलो करें बोध योग से मिलती संतापों से मुक्ति

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

FILE
व्यक्ति एक शरीर में रहता है। शरीर 'जड़ जगत' का हिस्सा है। व्यक्ति के शरीर में एक मस्तिष्क है जो 'विचार' करता है। मस्तिष्क विचार करता है इसलिए विचार भी जड़ जगत का हिस्सा है। विचार जुड़ा होता है प्राण से अर्थात वायु से

हमारी श्वासों की लय अनुसार विचार बढ़ते और घटते हैं। ‍जीभ को स्थिर करके श्वासों को रोक देने से कुछ क्षण के लिए विचार भी रुक जाते हैं। तो सिद्ध हुआ की जड़ से बढ़कर है प्राण।

शरीर में प्राण है तभी तक विचार है। लेकिन इस शरीर (जड़), प्राण (वायु) से भी बढ़कर है मन (चित्त)। शरीर और प्राण का आधार है मन या माइंड। मन जिसमें कल्पनाएं, भावनाएं, स्मृतियां और विचार विचरण करता है। मन जुड़ा है सूक्ष्म शरीर से।

अब सिद्ध हुआ की जड़ से बढ़ा प्राण, प्राण से बढ़ा मन या चित्त। हमारे मन और मस्तिष्क पर विचार, कल्पना, आदत, भावना, क्रोध, भय आदि सभी मानसिक गतिविधियों के बादल छाए रहते हैं। इससे ही शरीर और प्राण संचालित होकर रोगी और निरोगी होते रहते हैं। इस समस्त तरह की गतिविधियों को रोक देने का नाम है- बोध योग।

सबसे बढ़कर बोध : शरीर से बढ़कर प्राण, प्राण से बढ़कर मन और मन से बढ़कर बोध। शरीर को साधने के लिए आसन है। प्राण को साधने के लिए प्राणायाम है। मन को साधने के लिए प्रत्याहार है और शरीर, प्राण, मन में सुप्त अवस्था में पड़े बोध को जगाने के लिए है ध्यान।

योग में बोध के संबंध में बहुत कुछ कहा गया है। शरीर, मन-मस्तिष्क की कल्पनाएं, ज्ञान, विचार आदि हमें रोगी बनाने वाले और धोका देने वाले रहते हैं। इससे व्यक्ति कभी भी सच्चाई को नहीं जान सकता, लेकिन जिसका बोध जाग्रत है उसको शरीर और मन में होने वाली प्रत्येक गतिविधियों का पूर्व ही ज्ञान हो जाता है।

प्रत्यक्ष और स्वज्ञान को जगाओं : आंखों देखा और कानों सुना भी गलत होता है। सदा शुद्ध और सात्विक भोजन करने और रहने के बावजूद भी व्यक्ति रोगग्रस्त हो सकता है। तब वह क्या है जिससे हमारे आसपास का आभामंडल शुभ्र वर्ण का हो जाता है? वह है सिर्फ बोध। बोध से प्रत्यक्ष और स्व का ज्ञान हो जाता है।

बोध कई प्रकार से होता है- ध्यान करने से। सदा साक्षीभाव में बने रहने से या लगातार प्राणायाम का अभ्यास करते रहने से। प्रत्यक्ष बोध और स्वबोध जरूरी है। इससे प्रत्येक गतिविधियां दूध का दूध और पानी के पानी की तरह स्पष्ट होने लगती है। दरअसल हर तरह की तंद्रा के टूटने से बोध जाग्रत होता है। विचार, कल्पना, भावना, स्वप्न और सुषुप्ति ये सभी बोहोशी (तंद्रा) के हिस्से हैं।

शांत कर देता है बोध : बोध उसी तरह है जैसे किसी नदी में तूफान होने से नदी के अंदर का कुछ भी दिखाई नहीं देता है और नदी का जल भी अपना मूल स्वरूप खो देता है लेकिन जब नदी शांत रहती है तब सब कुछ स्पष्ट हो जाता है और उसका सारा कचरा भी नीचे जम जाता है। उसी तरह अशांत शरीर और मन रोगग्रस्त हो जाता है

बोध के लाभ : बोध के जाग्रत होने से व्यक्ति की सभी तरह की मानसिक परेशानियां मिट जाती है। प्राणावायु सुचारू रूप से संचालित होने से शरीर निरोगी बना रहता है। सदा बोधपूर्ण जीवन यापन करने वाले व्यक्ति की स्वप्न और सुषुप्ति अवस्था समाप्त हो जाती है और वह निरंतर आनंदित अवस्था में रहता है।

मृत्यु के बाद ऐसे व्यक्ति को शरीर छुटने का पूरा-पूरा भान रहता है और उसके पास होती है नए जन्म के चयन की ‍शक्ति। - संदर्भ योग दर्शन, योग सूत्र

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi