Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मूर्च्छा कुम्भक प्राणायाम

हमें फॉलो करें मूर्च्छा कुम्भक प्राणायाम

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

, मंगलवार, 30 नवंबर 2010 (14:24 IST)
ND
मुर्च्छा का अर्ध होता है बेहोशी। इस कुम्भक के अभ्यास से वायु मूर्च्छित होती है, लेकिन व्यक्ति नहीं। परिणामतः मन भी मूर्च्छित होता है, इसी कारण इसे मूर्च्छा कुम्भक कहा जाता है। मूर्च्छा प्राणायाम का अभ्यास अधिक कठिन है। परंतु इसके लाभ अनेक है यह मन को शांत कर आयु को बढ़ाता है

विधि- सिद्धासन में बैठ जाएँ और गहरी श्वास लें फिर श्वास को रोककर जालन्धर बंध लगाएँ। फिर दोनो हाथों की तर्जनी और मध्यमा अँगुलियों से दोनों आँखों की पलकों को बंद कर दें। दोनों कनिष्का अँगुली से नीचे के होठ को ऊपर करके मुँह को बंद कर लें। इसके बाद इस स्थिति में तब तक रहें, जब तक श्वास अंदर रोकना सम्भव हों। फिर धीरे-धीरे जालधर बंध खोलते हुए अँगुलियों को हटाकर धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ दें। इस क्रिया को 3 से 5 बार करें।

लाभ- इस क्रिया को करते वक्त पानी बरसने जैसी आवाज कंठ से उत्पन्न होती है, तथा वायु मूर्च्छित होती है, जिससे मन मूर्च्छित होकर अंततः शान्त हो जाता है। इस प्राणायाम के अभ्यास से तनाव, भय, चिंता आदि दूर होते हैं। यह धातु रोग, प्रमेह, नपुंसकता आदि रोगों को खत्म करता है। इस प्राणायाम से शारीरिक और मानसिक स्थिरता कायम होती है।

सावधानी- श्वास को रोककर रखते समय मन में किसी भी प्रकार के विचार न आने दें। यह क्रिया हाई ब्लडप्रेशर, चक्कर या मस्तिष्क से पीड़ित लोगों को नहीं करनी चाहिए। इस क्रिया से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से हृदय की गति कम हो जाता है, जिससे व्यक्ति बेहोशी की अवस्था में चला जाता है, लेकिन वह बेहोश नहीं होता है। इसीलिए इस क्रिया को योग शिक्षक की देख-रेख में ही करना चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi