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अगर गावस्कर वॉक-आउट कर जाते तो..

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, शनिवार, 3 जनवरी 2015 (14:22 IST)
- रेहान फजल (दिल्ली)

कल्पना कीजिए किसी टीम को भारत के खिलाफ जीतने के लिए मात्र 143 रन बनाने हों और इसके बावजूद भारत की क्रिकेट टीम 59 रनों से वह मैच जीत गई हो और वह भी विदेश में। यह करिश्मा अंजाम दिया गया था 1981 के मेलबर्न टेस्ट में। इस मैच में ही अंपायर के फैसले से नाराज सुनील गावस्कर ने करीब-करीब वॉक आउट ही कर दिया था।


अगर वह ऐसा कर देते तो न सिर्फ उन पर कम से कम पांच साल तक क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगता बल्कि भारत की पूरी टीम पर भी प्रतिबंध के बादल मंडराने लगते। दिलचस्प बात ये है कि इस बड़े विवाद के बावजूद भारत ये मैच जीतने में सफल रहा।

पूरी रिपोर्ट विस्तार से : सुनील गावस्कर के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया गई भारतीय क्रिकेट टीम सिडनी में पहला टेस्ट हार गई। एडिलेड का दूसरा टेस्ट भी भारत हारते-हारते बचा।

तीसरा टेस्ट विश्व प्रसिद्ध मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में था। मेलबर्न की पिच उस जमाने में स्पिनर्स को मदद देने के लिए मशहूर हुआ करती थी। लेकिन भारत के दोनों चोटी के स्पिनर दिलीप दोशी और शिवलाल यादव चोटिल थे।

भारत ने इसके बावजूद दोनों को खिलाने का फैसला किया। ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीता और भारत को पहले बल्लेबाजी करने के लिए आमंत्रित किया। उस समय तक सुनील गावस्कर और गुंडप्पा विश्वनाथ दोनों ही खराब फॉर्म में चल रहे थे।

सोबर्स की सलाह : उस जमाने में सर गारफील्ड सोबर्स मेलबर्न में ही रहा करते थे। वह भारतीय ड्रेसिंग रूम में आए और उन्होंने विश्वनाथ को सलाह दी कि वह तब तक कोई स्क्वायर कट न खेलें, जब तक उनके चालीस रन न हो जाएं।

विश्वनाथ ने उनकी सलाह पर पूरा ध्यान दिया और परिणाम रहा विश्वनाथ की फॉर्म में वापसी। दूसरे छोर से विकेट गिरते रहे लेकिन विश्वनाथ ने क्लासिक सेंचुरी मार कर ही दम लिया।

विश्वनाथ की सेंचुरी के बावजूद भारत की टीम 237 के साधारण स्कोर पर आउट हो गई। ऑस्ट्रेलिया ने इसका तगड़ा जवाब देते हुए 419 रन ठोके। भारत ने दूसरी पारी में इस श्रृंखला में पहली बार एक अच्छी शुरुआत की। चेतन चौहान और सुनील गावस्कर जम कर खेले।

आखिरकार गावस्कर उस फॉर्म में वापस आ रहे थे जब 1977 में उन्होंने जेफ टामसन के खिलाफ लगातार तीन टेस्टों में तीन शतक लगाए थे।
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गावस्कर आउट दिए गए : लेकिन तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी। डेनिस लिली की अंदर आती गेंद गावस्कर के पैड पर लगी और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की जबरदस्त अपील पर अंपायर वाइटहेड ने उन्हें एलबीडब्लू आउट दे दिया।

गावस्कर को यह फैसला इतना नागवार गुजरा कि वह पवेलियन लौटते समय दूसरे छोर पर खड़े चेतन चौहान को भी अपने साथ ले जाने लगे। चौहान बाउंड्री लाइन तक उनके साथ गए भी। लेकिन भारतीय टीम के मैनेजर ग्रुप कैप्टेन शाहिद अली खां दुर्रानी ने बिल्कुल बाउंड्री लाइन पर आ कर चेतन चौहान को वापस खेलने भेजा।

दुर्रानी ने बीबीसी को बताया, 'जब गावस्कर को आउट दिया तो उन्होंने इसका विरोध किया। पिच से नहीं हटे। फिर सुनील गावस्कर और डेनिस लिली में बहस हुई। उस समय मैं ड्रेसिंग रूम से ये नज़ारा देख रहा था। मुझे ये लग गया था कि बात बढ़ रही है। मैं दौड़ते हुए नीचे उतर कर गेट के पास आ गया। जब तक गावस्कर अपने गुस्से में चेतन चौहान को भी पवेलियन की तरफ लाने लगे। जब उन्होंने ऐसा करने से इंकार किया तो वह उन्हें पुश करते हुए करीब-करीब बाउंड्री लाइन तक ले आए। तब तक मैं भी बाउंड्री लाइन पर पहुंच गया था। मुझे गावस्कर के खिलाफ कटु शब्द भी इस्तेमाल करने पड़े। मैंने उनको बाहर पुश किया। अपने साथ मैं वैंगसरकर को लेकर गया था। उनको मैंने अंदर की तरफ धकेला। चौहान मुझे देख कर खुद ही वापस लौट गए।'

'अगर चौहान भी गावस्कर के साथ बाहर आ जाते तो भारत को यह मैच गंवाना पड़ता और इन दोनों खिलाड़ियों पर कम से कम पांच साल का प्रतिबंध लगता। तब न तो गावस्कर का विश्व रिकॉर्ड होता, न उनके ग्यारह हजार रन होते और न ही उनके 34 शतक होते। सारे टेस्ट खिलाड़ियों का करियर खत्म हो जाता क्योंकि पांच साल का समय इतना लंबा होता है कि कोई भी खिलाड़ी इतने लंबे समय तक अपनी फॉर्म बरकरार नहीं रख सकता।'

गावस्कर का अफसोस : गावस्कर ने पिछले दिनों अपनी इस हरकत के लिए माफी मांगी, लेकिन यह भी कहा, 'मैं उस समय आउट नहीं था। गेंद मेरे बल्ले का मोटा किनारा लेते हुए पैड पर लगी थी। लेकिन फिर भी ये मेरे जीवन का सबसे खेदपूर्ण क्षण था। जो भी कारण रहा हो, मेरी उस हरकत को सही नहीं ठहराया जा सकता…।'

'मैं महसूस करता हूं कि एक कप्तान और एक खिलाड़ी के रूप में मैंने सही व्यवहार नहीं किया था। मैं अपने उस फैसले की सारी जिम्मेदारी स्वीकार करता हूं। मुझे अपनी निराशा ड्रेसिंग रूम की चारदिवारी के अंदर दिखानी चाहिए थी न कि मैदान पर हज़ारों लोगों के सामने।'

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लिली ने भड़काया : चेतन चौहान भी आज तक उस घटना को नहीं भुला पाए हैं। बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, 'ये बात स्पष्ट कर दूं कि गावस्कर साफतौर से नॉटआउट थे। गेंद लो जरूर रही। पहले उनके बैट पर लगी और फिर पैड में। मैं ये मानता हूं कि बैट पर गेंद जोर से नहीं लगी थी, लेकिन बैट पैड हो गया था।'

'आउट दिए जाने के बाद जब गावस्कर अपसेट हुए तो डेनिस लिली उनके पास जा कर पैड की तरफ इशारा करने लगे कि गेंद इस जगह पर लगी है। बाद में गावस्कर ने मुझे बताया कि जब वह पवेलियन की तरफ लौट रहे थे तो एक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ने उन्हें कुछ अपशब्द कहे। ये सुनते ही उनका गुस्सा बढ़ गया और उन्होंने मुझसे भी बाहर चलने के लिए कह दिया।'

ग्रेग चैपल बोल्ड : भारत ने अपनी दूसरी पारी में 324 रन बनाए लेकिन फिर भी यह कोई ऐसा स्कोर नहीं था जिससे जीत की कोई उम्मीद बंधती हो। ऑस्ट्रेलिया को डेढ़ दिनों में जीत के लिए 143 रन बनाने थे। तब तक कपिल देव भी जख्मी हो चुके थे।

करसन घावरी और संदीप पाटिल ने भारतीय गेंदबाजी की शुरुआत की। 11 के स्कोर पर घावरी ने डाइसन को पवेलियन की राह दिखाई और फिर उसी स्कोर पर उन्हेंने ग्रेग चैपल को क्लीन बोल्ड कर दिया।

बीबीसी से बात करते हुए करसन घावरी ने कहा, 'एक दिन पहले ही गावस्कर और हमने मिल कर ग्रेग चैपल को आउट करने का प्लान बनाया था। प्लान ये था कि जैसे ही वह आएंगे उनका बाउंसर से स्वागत किया जाएगा। मैंने पहली गेंद उन्हें बाउंसर ही करने की कोशिश की। लेकिन मेलबर्न की पिच इतनी खराब थी कि मेरी पूरी कोशिश के बावजूद गेंद उठी ही नहीं। उसने एक क्रैक पर टिप्पा खाया और ग्रेग चैपल जब तक अपना बल्ला नीचे लाते, उनका स्टंप दूर जा गिरा।'

शानदार गेंदबाजी : दिन समाप्त होते-होते दिलीप दोशी ने ग्रेम वुड्स को भी पवेलियन की राह दिखा दी। चौथे दिन का खेल समाप्त होने तक स्कोर था तीन विकेट पर 24 रन। उस रात भारतीय खिलाड़ी सो नहीं सके। घायल कपिल देव दो घंटे बाद का अलार्म लगा कर सोने गए। दो घंटे बाद जब अलार्म बजा तो उन्होंने पेन किलिंग इंजेक्शन लिया।

उसके बाद उन्होंने हर दो घंटे का अलार्म लगाया और हर बार इंजेक्शन लिया। यह प्रक्रिया पूरी रात चलती रही। अगले दिन सबसे पहले आउट हुए किम ह्यूग्स। दोशी ने उन्हें लांग हॉप फेंकी। वह उसे स्क्वायर कट करने गए। गेंद तेज़ी से निकली और उनके स्टंप्स बिखेर गई। ऐतिहासिक जीत

दूसरे छोर पर कपिल देव शॉर्ट रन अप के साथ गेंदबाजी कर रहे थे। पहले उन्होंने ब्रूस यार्डली को बोल्ड किया और फिर बॉर्डर को किरमानी के हाथों कैच कराया।

ऑस्ट्रेलिया की टीम मात्र 83 रनों पर सिमट गई और भारत ने 59 रनों से टेस्ट जीत कर सीरीज 1-1 से बराबर कर ली। इस जीत में टीम के करीब-करीब हर खिलाड़ी का हाथ था।

मैच के 33 साल बाद मैनेजर दुर्रानी ने याद किया, 'आप विश्वास करिए कुछ समय के लिए हम स्तब्ध थे। लेकिन जिस तरह से हमें विकेट मिलते जा रहे थे हमारी उम्मीदें बढ़ती जा रही थीं। हमारे साथ हमारे उच्चायुक्त के डी शर्मा बैठे हुए थे। जैसे ही मैच खत्म हुआ ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की हालत देखते ही बनती थी। कुछ देर के बाद हमें अंदाज़ा हुआ कि हम वास्तव में मैच जीत गए हैं।'

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