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नौ साल से सक्रिय थे बांग्लादेशी चरमपंथी

- अमिताभ भट्टासाली (कोलकाता से)

हमें फॉलो करें नौ साल से सक्रिय थे बांग्लादेशी चरमपंथी
, गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014 (11:24 IST)
पश्चिम बंगाल के बर्दवान में हुए विस्फोट के बाद जिस चरमपंथी नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है उसके बारे में सरकार और खुफिया एजेंसियों को कम से कम नौ साल पहले ही जानकारी मिल गई थी। विकीलीक्स की वेबसाइट में बीबीसी को ऐसे दो संदेश मिले हैं जिनसे इसकी पुष्टि हो रही है।

अमेरिकी अधिकारियों ने जो दो गुप्त संदेश वॉशिंगटन भेजे थे उनमें बताया गया था कि बांग्लादेश के कुछ चरमपंथी और जिहादी गुट पश्चिम बंगाल में घुस आए हैं। ये गुट कुछ मदरसों के जरिए हिंसा फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

पढ़िए अमिताभ भट्टासाली की पूरी रिपोर्ट:

अमेरिकी अधिकारियों ने 2005 में वॉशिंगटन को जो दो गुप्त संदेश भेजे थे वे पश्चिम बंगाल के गृह सचिव, खुफिया विभाग के प्रमुख और जाने-माने मुस्लिम व्यक्तियों की बातचीत पर आधारित हैं।

इनमें लिखा गया था कि जमात-उल-मुजाहिदीन जैसे कई गुट पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से पश्चिम बंगाल में घुस गए हैं और यहां अपना नेटवर्क फैला रहे हैं और कुछ मदरसों के जरिए काम कर रहे हैं।

चार अगस्त, 2005 को भेजा गया पहला गुप्त संदेश पश्चिम बंगाल के पूर्व गृह सचिव प्रभात रंजन राय से बातचीत पर आधारित हैं। इसमें कहा गया था कि भारत-बांग्लादेश की सीमा पर बहुत सारे मदरसे बनाए जा रहे हैं जिनकी अनुमति नहीं ली गई है और बांग्लादेश से आए कुछ लोग इन्हीं मदरसों से जिहादी विचारधारा का प्रचार कर रहे हैं।

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सरकार : उस समय पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार थी। सीपीएम की केंद्रीय समिति के सचिव मोहम्मद सलीम से बीबीसी ने पूछा कि जब इन चरमपंथी समूहों के बारे में पता था तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

मोहम्मद सलीम ने कहा, 'विकीलीक्स ने यह बात 2005 के केबल के आधार पर यह बात कही हो, लेकिन वाम मोर्चे की सरकार 2001 से ही इसे लेकर चिंतित थी कि सीमा पर कुछ मदरसों से सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश की जा रही थी।'

खास बात यह है कि एक अमेरिकी केबल में सीपीएम पर यह आरोप लगाया गया था कि वह अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए बांग्लादेश से आए लोगों की मदद कर रही थी और उन्हें वोटर कार्ड, राशन कार्ड दिलाती थी।

बर्दवान धमाकों के बाद यह आरोप तृणमूल कांग्रेस पर भी लग रहा है।

'बड़ी गलती' : अमेरिकी अधिकारियों ने 16 दिसंबर, 2005 को दूसरा केबल भेजा था। यह पश्चिम बंगाल के खुफिया विभाग के पूर्व प्रमुख दिलीप मित्रा और रॉ के पूर्व उप निदेशक विभूति भूषण नंदी से बातचीत पर आधारित था। इसमें विस्तार से बताया गया था कि सीमा पर कैसे जिहादी गुट अपने मदरसे चला रहे थे।

पूर्व खुफिया अधिकारी गदाधर चटर्जी से हमने पूछा कि नौ साल तक किसी ने इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की? उन्होंने स्वीकार किया कि इस मामले में चूक हुई है।

ट्रेनिंग : चटर्जी ने कहा, 'विदेश से इतने लोग आए, विदेशियों को नियुक्त किया गया। विस्फोटक इकट्ठे किए गए, मदरसों में ट्रेनिंग होती रही और पुलिस या खुफिया एजेंसियों को पता भी नहीं चला- यह तो बड़ी गलती है।'

बांग्लादेशी जिहादी गुटों के अलावा दोनों केबलों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) पर भी सवाल उठाए गए। इनमें कहा गया कि बीएसएफ के कुछ भ्रष्ट कर्मचारी रिश्वत लेकर बांग्लादेश से लोगों को घुसने देते हैं।

बीएसएफ के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि अगर यह पता चल जाए कि किस दिन, किस क्षेत्र से बांग्लादेशी भारत में घुसे थे, तो वहां के जिम्मेदार अधिकारी को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

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