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'बिहारी मोदी' पर भरोसा नहीं 'गुजराती मोदी' को?

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नितिन श्रीवास्तव (पटना से)
 
बिहार की राजनीति में आईपैड पर ख़बरें पढ़ने वाले और पॉवर पॉइंट प्रेज़ेंटेशन समझने वाले नेता शायद ही होंगे।
राज्य में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जिनके घरों के बाहर बड़ी गाड़ियां, दर्जनों समर्थक और खुद या पार्टी प्रमुख की तस्वीर वाले बैनर न दिखें।
लेकिन इसी बिहार की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी की हर चीज़ थोड़ी अलग है। इसके बावजूद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं किया है।
 
साढ़े सात साल राज्य के उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रहने वाले सुशील आरएसएस से भी जुड़े रहे हैं। वो जेपी आंदोलन से निकले नेता हैं। महाराष्ट्र की एक इसाई महिला से प्रेम विवाह करने वाले सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाने को लेकर भाजपा नेतृत्व शायद दो बातों पर सशंकित रहा।
 
पहला ये कि विपक्षी महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार नीतीश कुमार के मुक़ाबले सुशील मोदी का राजनीतिक कद छोटा है। दूसरी बात यह कि सुशील मोदी बिहार के उस जातीय समीकरण में फ़िट नहीं बैठते जिसका दम अप्रत्यक्ष रूप से लालू और नीतीश भरते रहे हैं।
 
हालांकि सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न बनाकर भाजपा नेतृत्व ने कथनी और करनी में फ़र्क सा दिखाया है। विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने का दावा करने वाली भाजपा ने दरअसल सुशील मोदी को पीछे रखकर जातीय समीकरणों में अपनी पैठ बनाने की जुगत भिड़ाई है।
 
भाजपा के ही कुछ लोग बताते हैं कि सुशील मोदी के सीवी यानी बायोडाटा में एक कमी है। दो साल पहले जब भाजपा के भीतर और बाहर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर दो धड़े बने हुए थे तो बिहार के मोदी गुजरात के मोदी के पाले में नहीं थे।
 
बिहार में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक इस मामले पर अलग-अलग राय रखते हैं। समाचार एजेंसी पीटीआई के ब्यूरो चीफ़ समीर सिन्हा कहते हैं, 'दिल्ली विधानसभा चुनाव में किरण बेदी का नाम घोषित करने के बाद मिले झटके से भाजपा बैकफुट पर रही। दूसरी अहम बात ये है कि सुशील मोदी प्रदेश में निर्विवाद लीडर भी नहीं हैं।'
 
वहीं पिछले एक महीने से बिहार का दौरा कर रहे 'द टेलीग्राफ़' अखबार के वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा को सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार न बनाने के पीछे केवल दो ही कारण नज़र आते हैं।
 
वो कहते हैं, 'भाजपा को इस बात का अहसास है कि बिहार के अंदरूनी इलाकों में भी नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ विरोध की कोई लहर नहीं है। दरअसल यह चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम नीतीश कुमार का है। दूसरी बात यह कि बनिया समुदाय से आने वाले सुशील मोदी चुनाव के पहले घोषित किए जाने वाले प्लान में फ़िट ही नहीं थे।'
 
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा के स्थानीय नेताओं में सुशील मोदी का कद सबसे बड़ा और छवि सबसे साफ़ है।

शायद यही वजह है कि प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाले भाजपा प्रमुख अमित शाह ने सुशील मोदी को प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर दे रखा है। सुशील मोदी के सरकारी निवास पर एक वॉर रूम भी काम करता है।
 
भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी बीबीसी से सुशील मोदी को सीएम पद का दावेदार न बनाए जाने पर कोई हैरानी नहीं जताई थी और कहा था कि पार्टी ऐसा करती रही है।
 
बहरहाल, बिहार चुनाव अपने अंतिम चरण की तरफ़ बढ़ रहा है और राजनीतिक समर में कूदी पार्टियां इसे जीतने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए हुए हैं। लेकिन जीत की स्थिति में छाछ और लस्सी पीकर दिन-रात चुनाव प्रचार करने वाले सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद से नज़रअंदाज़ करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।

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