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'सेक्यूलर है, भारत का काला धन '

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, बुधवार, 29 अक्टूबर 2014 (11:30 IST)
- आर वैद्यनाथन प्रोफेसर (आईआईएम, बेंगलुरु)


विदेश से काला धन वापस लाने का मुद्दा सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता, ऐसा कहते हुए भारत की सर्वोच्च अदालत ने सरकार को सभी नाम बताने के आदेश दिए हैं। अब सवाल है कि सरकार ऐसा क्या करेगी जिससे विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस भारत लाना संभव हो पाएगा?


काले धन पर विशेष अध्ययन करने वाले भारतीय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु के प्रोफेसर आर. वैद्यनाथन ने मौजूदा परिदृश्य में काले धन के भारत आने से जुड़ी मुश्किलों को बीबीसी हिन्दी के पाठकों से साझा किया। पढ़िए आर वैद्यनाथन का विश्लेषण :

जिन लोगों ने विदेशी बैंकों में काला धन जमा किया है, वे आम भारतीय नहीं हैं। काला धन जमा करने वालों में देश के बड़े-बड़े नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा बॉलीवुड, मीडिया और स्पोर्ट्स शख्सियतें भी शामिल हो सकती हैं।
 

यानी काला धन सेक्यूलर होगा तो ये कहना गलत नहीं होगा। क्योंकि इसमें ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, यादव, ही नहीं, मुस्लिम, सुन्नी और शिया भी शामिल हो सकते हैं।
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सरकार का तर्क था कि दोहरा कराधान बचाव संधि (डीटीएए) की वजह से विदेशी बैंकों में जमा काला धन खाताधारकों के नाम उजागर नहीं किए जा सकते हैं। जबकि साल 2011 के शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि डीटीएए का संबंध खातेधारकों के नाम जाहिर करने से किसी भी तरह से नहीं जुड़ा है।

यूपीए सरकार ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि मौजूदा सरकार ने इसे गलत समझा। अदालत ने इसे स्पष्ट करते हुए नए आदेश जारी किए हैं।

राजनीतिक पक्षपात : काले धन का संबंध बार-बार टैक्स से जोड़ा जा रहा है। जबकि इसमें भ्रष्टाचार, ड्रग्स व्यापार, हथियारों की तस्करी, हवाला, चरमपंथ इत्यादि से जुड़े मसले शामिल हैं। अदालत के आदेश के बाद अब सरकार को सारे नाम बताने होंगे। लेकिन ये नाम केवल जजों तक ही सीमित रहेंगे, ताकि किसी तरह के राजनीतिक पक्षपात का सवाल न उठे।

मोदी ने वादा किया था, वे 100 दिन के भीतर काला धन वापस लाएंगे। लेकिन काला धन को देश में लाने में पांच से सात साल लग सकते हैं। फिलीपींस, पेरु, नाइजीरिया आदि देशों का उदाहरण देखें तो यहां काले धन को देश में वापस लाने में पांच से दस साल लग गए।

जनता की नजर : विदेशी बैंकों में जो काला धन जमा है वो इस देश की साधारण जनता का है, गरीबों, किसानों, कुलियों और मजदूरों का है। अब काले धन को देश में लाने का मुद्दा राजनीतिक नहीं रहा। देश की जनता की भी अब इसमें रुचि बढ़ गई है।

इस विषय पर लोग सोशल मीडिया यानी फेसबुक और ट्विटर पर काफी सक्रिय हैं। इतनी सक्रियता बोफोर्स के समय में भी नहीं थी। अब सरकार की हर कार्रवाई पर जनता की नजर है। ये राशि पांच सौ अरब डॉलर हो सकती है।

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