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नोटों से फैल रही हैं गंभीर बीमारियां?

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, शुक्रवार, 14 अगस्त 2015 (11:18 IST)
- सलमान रावी (दिल्ली)
 
क्या आपको पता है कि जो रुपए आप हाथ में लेते हैं वो आपके स्वास्थ्य के लिए कितने हानिकारक हैं। इन रुपयों में टीबी, डिसेन्ट्री और अल्सर फैलाने वाले खतरनाक संक्रमण मौजूद हो सकते हैं।
खास तौर पर उन रुपयों में जो पुराने हो रहे हैं या फिर जो ज्यादा चलते हैं जैसे दस, बीस, और सौ रुपए के नोट।
 
यूं समझ लीजिए कि इन नोटों के ज़रिए आपके अंदर बीमारियां पहुंच रही हैं। तो सवाल उठता है कि क्या पैसों की बजाय डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड के जरिए खरीदारी करना सेहत के लिए बेहतर है?
 
'इंस्टिट्यूट ऑफ जियोनॉमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी' यानी 'आईजीआईबी' के वैज्ञानिकों ने इन नोटों की डीएनए जांच में खतरनाक संक्रमण फैलाने वाले कुल 78 रोगाणुओं का पता लगाया है।
 
इसमें 'राइबोसोमल आरएनए' नामक तकनीक अपनाई गई। इससे पहले इस तकनीक से कम्प्यूटर, साबुन और बाजार में बिकने वालों कपड़ों की जांच में भी इसी तरह के संकेत मिले हैं।
 
कीटाणु मुक्त नोट : 'आईजीआईबी' के वैज्ञानिक मानते हैं कि शोध के नतीजे चौंकाने वाले हैं क्योंकि इनका सरोकार हर इंसान से है।
 
शोधकर्ताओं की पांच सदस्यों वाली टीम का नेतृत्व करने वाले 'आईजीआईबी' के वरिष्ठ वैज्ञानिक एस रामचंद्रन ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि शोध के बाद इतना तो समझ में आया है कि ज्यादा चलने वाले नोटों को कीटाणु मुक्त करना जरूरी है।
 
उन्होंने कहा कि इस शोध में नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिससे परिणाम भी जल्द ही सामने आ गए। इससे पहले नमूनों को प्रयोगशाला में भेजा जाता था और इस प्रक्रिया में काफ़ी समय लगा करता था।
 
वो कहते हैं, 'शोध के परिणाम चौंकाने वाले ज़रूर हैं क्योकि रुपयों से सबका सरोकार है। नोट एक दिन में कई हाथों से होकर गुजरते हैं और इस प्रक्रिया में वो रोगाणु भी एक इंसान से दूसरे इंसान तक फैलाने का काम करते हैं। इनमे वो नोट ज्यादा संक्रमित हैं जो ज्यादा चलते हैं।'
 
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खास मशीनें : शोध के लिए नोटों के नमूनों को दिल्ली के बाजारों, रेहड़ी वालों और सब्जी की दुकानों से इकठ्ठा किया गया था। कई देशों में करंसी नोटों को रोगाणु मुक्त करने की व्यवस्था है। इसके लिए मशीनें भी आती हैं जिनसे नोटों को रोगाणु मुक्त किया जाता है।

जापान सहित कई देश हैं जो समय समय पर अपनी करंसी को विशेष मशीन के जरिए कीटाणु मुक्त करते रहते हैं। मगर भारत में इसका उपयोग नहीं होता है। अलबत्ता पुराने नोटों को बदलने की व्यवस्था जरूर है।
 
रामचंद्रन का मानना है कि अब शोध का दायरा और बढ़ाना चाहिए क्योंकि यह पता लगाना और भी जरूरी हो गया है कि नोटों में पाए जाने वाले रोगाणुओं पर किन एंटीबायोटिक्स का असर नहीं होता है।

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