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'मोदी को C+ या B- से ज्यादा नहीं दे सकता'

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, मंगलवार, 26 मई 2015 (13:01 IST)
- नितिन श्रीवास्तव
 
भारत में ऐसे कई विदेशी हैं जो अब इसी देश को अपना घर मानते हैं। इन्हीं में से एक हैं 67 वर्षीय क्रिस्टोफर बरचेट जो आज भी नागरिक तो ब्रिटेन के हैं लेकिन वाराणसी में पिछले 45 वर्षों से रह रहे हैं।
1970 में भारत की धार्मिक राजधानी कहे जाने वाले बनारस आए क्रिस्टोफर को शहर में लोग जानते हैं और वे यहां के इतिहास और संस्कृति में खासी दिलचस्पी भी रखते हैं। इनकी पत्नी भारतीय हैं और तीनों बच्चों की शादियां हो चुकीं है।
 
कैसा विकास? : क्रिस्टोफर के अनुसार वाराणसी में पिछले एक साल में कुछ खास नहीं बदला है और उन्होंने सिर्फ घोषणाओं के बारे में सुना है।
 
उन्होंने कहा, 'मोदी जी का गुजरात मॉडल गुजरात में ही बेहतर हो सकता है। हालांकि ये मेरे निजी विचार हैं लेकिन यूरोप और दूसरी दुनिया में कभी भी किसी एक शहर को दूसरे की तर्ज़ पर बनाने की कोशिश नहीं की गई। तब बनारस को क्योटो या गुजरात मॉडल पर क्यों नापा जा रहा है।'
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क्रिस्टोफर के अनुसार जब 1970 के दशक में वे बनारस में रहते थे तब घाटों की सफाई होती थी और उसके बाद चीजें बदतर होती चली गईं।
 
उनके अनुसार, 'मुझे लगता है कि मोदी जी को बनारस की संस्कृति को पहले जैसा करने की बात करनी चाहिए न कि इस प्राचीन शहर की संकरी गलियों के ऊपर मेट्रो चलाने की। लंदन या एम्स्टर्डम को ही देख लीजिए। वहां पुराने शहर की संस्कृति बरकरार रखते हुए सभी आधुनिक तकनीक वाली चीज़ों को भी लागू कर दिया गया है। बनारस में लोगों को साफ़ पानी, ज़्यादा बिजली और सीवेज यानि गंदे पानी के निस्तारण का जरिया चाहिए, बस।'
 
क्या नहीं चाहिए : क्रिस्टोफर बरचेट को लगता है कि उन्होंने ब्रिटेन जैसे देश को त्याग कर बनारस में बसने का फैसला इसलिए किया था क्योंकि इसका एक धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व था। बनारस की संस्कृति, कला और इतिहास को पढ़ने समझने के बाद क्रिस्टोफ़र को लगता है कि बनारस में पिछले 45 वर्षों में कोई बेहतर बदलाव नहीं दिखा है।
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उन्होंने कहा, 'कुछ खास बदला ही नहीं है इसलिए मैं मोदी को C+ या B- से ज्यादा नहीं दे सकता। स्वच्छ भारत तो कहना बहुत आसान है लेकिन आप मुझे बताइए कि बनारस में कूड़े के निस्तारण के लिए क्या किया गया है। बचे हुए खाने को आज भी गाय-भैंस खातीं हैं और हजारों मंदिरों का कूड़ा अब भी गंगा में बहा दिया जाता है।'
 
इनको इस बात से भी तकलीफ है कि बनारस में सार्वजनिक शौचालयों के बारे में कभी नहीं सोचा गया और सांसद मोदी के एक वर्ष के दौरान भी हालात जस के तस ही हैं। हालांकि क्रिस्टोफर नरेंद्र मोदी को बेस्ट-ऑफ-लक भी देते हैं ताकि जितने वादे हो रहे हैं वे सभी क्रियान्वित हो सकें।
 
लेकिन हमारी मुलाकात खत्म होने के पहले वह कहते हैं, 'काफी निराश हूं मैं, सभी पार्टियों और उनके नेताओं से। पिछला एक वर्ष भी ऐसा ही रहा।'


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