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हिंदू होने के चलते नहीं मिला काम?

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, बुधवार, 27 मई 2015 (11:05 IST)
- उरूज जाफरी (पेशावर से)
 
पाकिस्तान के शहर पेशावर में कहा जाता है कि इस वक़्त कुल 1200 से 1500 हिंदू परिवार बसते हैं जबकि खैबर पख्तूनख्‍वाह प्रांत में इनकी तादाद 47,000 है। पेशावर के इतिहास से पता चलता है कि कभी इस शहर पर हिंदुओं का राज हुआ करता था मगर अब ये पुराने शहर की तंग गलियों वाले मुहल्लों तक ही सीमित हैं।
शहर में ज्यादातर वाल्मिकी समुदाय के हिंदू बसते हैं और सबसे मशहूर मोहल्ला है कालीबाड़ी, शायद उस ऐतिहासिक कालीबाड़ी मंदिर की वजह से जो यहां आज भी मौजूद है। जब मैं इस मोहल्ले में रहने वाले बिशन दास के घर पहुंची तो वे अपनी पत्नी और बेटी संध्या के साथ अपने घर ही में बने छोटे से मंदिर में पूजा कर रहे थे। मंदिर एक कमरे में बना है जो बैठक के लिए भी इस्तेमाल होता है।
 
उनकी कालोनी एक कंपाउंड के अंदर बनी थी जिसमें दो-तीन कमरों वाले तकरीबन तीन दर्जन से ज्यादा घर थे।
 
डिग्री लेकिन नौकरी नहीं : बिशन दास खाना पकाने का काम करते हैं। आमदनी कम होने के कारण वो अपने दिल की बीमारी का इलाज नहीं करा पा रहे हैं लेकिन उन्होंने बेटी को कांवेंट स्कूल में पढ़ाया और फिर यूनीवर्सिटी भेजा।
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संध्या ने यूनीवर्सिटी से एमएससी की डिग्री हासिल की। लेकिन परिवार का कहना है कि हिंदू होने की वजह से संध्या को उसी स्कूल में काम नहीं मिल पाया जहां से उन्होंने पढ़ाई की थी। अगर एक तरफ हिंदू नौजवानों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं तो वहीं कानून व्यवस्था भी कुछ बेहतर नहीं है। इस मोहल्ले में हिंदू और ईसाई परिवार एक दूसरे के विरोधी नजर आए।
 
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मामूली बात पे कत्ल : एक और वाल्मिकी परिवार से मिलने पर पता चला कि पतंगबाजी के मामूली झगड़े में एक हिंदू नौजवान ईसाइयों के हाथों मारा गया। इस मामले में जेल गए लोग अब रिहा हो गए हैं।
 
वाल्मिकी सवाल करते हैं, 'क्या कोई सभा नहीं है जो इसका संज्ञान ले।' शहर पेशावर की गोरखनाथ सभा मंडल के उपाध्यक्ष किशोर कुमार का इस मामले पर कहना है, 'सभा भी है और पंचायत भी है लेकिन ये मामला 302 का है, कत्ल का है, इसका फैसला सिर्फ सरकार कर सकती है, इसमें हमारा कोई दखल नहीं है।'
 
'कम से कम सुनवाई तो हो...' : उनका कहना था कि जो लोग कातिलों का समर्थन कर रहे हैं वो ताकतवर मुसलमान हैं इसलिए बात बढ़ जाने का खतरा भी है।
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इसी मामले पर मानवाधिकार कार्यकर्ता रखशंदा नाज का कहना है, 'खैबर पख्तूनख्वाह में हिंदू समुदाय बेहद कम तादाद में और मुश्किल हालात में है। ये पाकिस्तान के शहरी हैं लेकिन इन्हें भारत-पाकिस्तान के राजनीतिक झगड़ों की वजह से शक की नजर से देखा जाता है। ये इनके साथ ज्यादती है।'
 
रखशंदा नाज पाकिस्तान सरकार को सलाह देते हुए कहती हैं, 'हिंदू समुदाय का पिछड़ापन दूर करने में तो शायद कुछ वक्त लगे लेकिन फिलहाल के लिए उनकी सुनवाई हो कम से कम ये बहुत जरूरी है।'
 


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