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हर महीने 10 लाख नौकरियां!

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, बुधवार, 25 फ़रवरी 2015 (14:15 IST)
- अजीत रानाडे आर्थिक मामलों के जानकार

मौजूदा भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती है बड़ी संख्या में उच्च गुणवत्ता वाले रोजगार का निर्माण। भारत को अगले दस साल तक हर महीने करीब 10 लाख नई नौकरियां तैयार करनी होंगी।


दुनिया के किसी और देश के सामने रोजगार पैदा करने की समस्या इतनी बड़ी नहीं है। इसके लिए सीधे तौर पर भारत की बड़ी आबादी जिम्मेदार है। भारत नौजवानों का देश है और अगले कई दशकों तक देश की औसत आयु तीस साल से कम रहने वाली है।

इसलिए देश में कामगार तबका जनसंख्या की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन नौकरी और रोजगार के मौके उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे। पढ़ें, लेख विस्तार से...

भारत में बेरोजगारी बहुत बड़े स्तर पर नहीं है, लेकिन ज्यादातर नौजवानों के पास जितना रोजगार होना चाहिए, उतना नहीं है। उनकी आय उनकी क्षमता से कम है। अब जो नए रोजगार तैयार होंगे वो बड़ी कंपनियों या रेलवे या डाक विभाग जैसे बड़े सरकारी विभागों में नहीं होंगे। अब खेती पर भी रोजगार के लिए निर्भर नहीं हुआ जा सकता।

अब नए रोजगार के मौके छोटे और मझोले उद्योगों (एसएमई) में बनेंगे। ये एसएमई विनिर्माण, टेक्सटाइल, खाद्य-प्रसंस्करण, गाड़ी-मोटर के कल-पुर्जों का निर्माण, मोबाइल फोन मरम्मत समेत कई अन्य क्षेत्रों में हो सकते हैं।

सेवा क्षेत्र में भी नए रोजगार तैयार हो सकते हैं। जैसे शहरी इलाकों में निजी सुरक्षाकर्मियों की मांग तेजी से बढ़ी है। ऐसे ही विभिन्न छोटे उद्योगों और दफ्तरों में रोजगार तैयार होंगे। लेकिन हर महीने 10 लाख लोगों को नौकरी देने के लिए आपको हर महीने कम से कम 10 हजार नए उद्यम शुरू करने होंगे।

अफसरशाही का संकट : संभव है कि रोजगार की तलाश की दौड़ में शामिल होने वाले एक चौथाई नवयुवक स्वयं का कामकाज शुरू कर दें और उद्यमी बन जाएं। यानी रोजगार निर्माण का सीधा संबंध नए कारोबार शुरू करने से है। और नए कारोबार का संबंध कारोबार करने से जुड़ी सुविधाओं से हैं।

अगर किसी छोटे कारोबार को शुरू करने के लिए सैकड़ों जगहों से अनुमति और स्वीकृति लेनी होगी, साथ ही अफसरशाही से जूझना होगा तो बड़े स्तर पर नए कारोबार शुरू करना संभव नहीं होगा। भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को या तो नए कारोबार शुरू करने की राह में आने वाली अड़चनों को दूर करना होगा या फिर नए कारोबार शुरू करने की अनुमति देने की प्रक्रिया में तेजी लानी होगी।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उनका लक्ष्य कारोबार करने की सहूलियत के मामले में भारत को दुनिया के शीर्ष 50 देशों में ले आना है, अभी वो 142वें स्थान पर है।

कौशल का विकास : नया कारोबार शुरू करने को आसान बनाने के अलावा रोजगार तैयार करने की दिशा में तीन अन्य महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं।

पहली चुनौती है, शिक्षा और कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट)। इनके बिना नए रोजगार निम्न गुणवत्ता के होंगे और उनसे होने वाली आय भी कम होगी। भारत में अकुशल श्रमिकों को इतनी भी मजदूरी नहीं मिलती कि वो गरीबी रेखा से ऊपर उठ सकें।

भारत में एक विचित्र समस्या है रोजगार में कमी के साथ-साथ कुशल श्रमिकों की कमी। भारत में जिस स्तर पर आधारभूत ढांचा तैयार करने की योजना बनाई जा रही है उसे देखते हुए भारत में जरूरत से 80 फीसदी कम सिविल इंजीनियर और आर्किटेक्ट होंगे। यहां तक कि वेल्डर और इलेक्ट्रिशियन जैसे अर्ध-कुशल पेशेवरों की भी कमी रहेगी।

शहरीकरण संबंधी निवेश : दूसरी चुनौती है, शिक्षा और प्रशिक्षण की उपलब्धतता। कुशल पेशेवर तैयार करने के लिए भारत को शैक्षणिक संस्थानों और टीचरों के प्रशिक्षण पर भारी निवेश करना होगा। साथ ही शिक्षा कर्ज के लिए भी धनराशि उपलब्ध करानी होगी ताकि नौजवान प्रशिक्षण ले सकें। इसका अर्थ है कि भारत में शिक्षा क्षेत्र में बड़े बदलाव की जरूरत है।

तीसरी चुनौती है, शहरीकरण और प्रवासन का रोजगार तथा जीविका से संबंध। भारत का तेजी से शहरीकरण हो रहा है। शहरी इलाकों में रोजगार के अवसर ज्यादा तेजी से पैदा हो रहे हैं। इसलिए शहरी आधारभूत ढांचे में निवेश की सख्त जरूरत है, जिसकी पूर्ति वर्तमान सरकार की शहरी नीतियों के अंतर्गत संभव प्रतीत नहीं होती।

शहरों में परिवहन, सस्ते निवास, स्कूल, अस्पताल और मनोरंजन केंद्रों जैसी सुविधाओं का निर्माण करना होगा। ये सही है कि ये ढांचे ज्यादातर स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं, लेकिन 100 स्मार्ट सिटी जैसे विशेष प्रयासों से इनमें तेजी लाई जा सकती है।

चीन का मॉडल : पिछले तीन दशकों में चीन एक मात्र ऐसा देश है जो इतने बड़े पैमाने पर औद्योगिक रोजगार निर्माण कर सका है। निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था के सहारे चीन ने बहुत तेजी से रोजगार तैयार किए।

भारत के पास चीन जैसी सहूलियत या राजनीतिक व्यवस्था नहीं है जिससे वो भी ऐसा कर सके। दुनिया भी एक और निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था को सहयोग देने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए भारत में रोजगार निर्माण मुख्य तौर पर घरेलू कारकों पर निर्भर होगा।

इसके अलावा चीन की श्रम आपूर्ति में आई स्थिरता का लाभ भी भारत उठा सकता है। बढ़ती मजदूरी और मज़दूरों की कमी के कारण बहुत से कम लागत वाले निर्माण कार्य चीन से बाहर जा रहे हैं। भारत चाहे तो इस मौके का लाभ उठा सकता है।

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