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भारत में हुनरमंद लोगों की भारी कमी है?

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, गुरुवार, 13 अगस्त 2015 (10:51 IST)
- समीर हाशमी (कारोबार संवाददाता)
 
भारत की एक बड़ी चुनौती इसकी युवा आबादी के लिए नौकरियां पैदा करना है। लेकिन इसके साथ ही इसे यह भी सुनिश्चित करना है कि नौकरी के इच्छुक लोग काम के लिए तैयार हों और कंपनियों के काम के हों। अब सरकार की कोशिश है कि नौकरी करने के इच्छुक करोड़ों लोगों को तकनीकी प्रशिक्षण देकर उन्हें हुनरमंद बनाए।
खेती नहीं नौकरी : केतन सावंत एक कृषक परिवार से हैं, लेकिन वह खेती नहीं करना चाहते। अपने गांव से दो घंटे की दूरी पर उन्होंने एक वोकेशनल ट्रेनिंग लेनी शुरू की है जिसमें वह बड़ी फैक्ट्रियों में काम में आने वाली मशीनें बनाना सीख रहे हैं।
 
उनका मकसद है कि वह किसी बड़ी फैक्ट्री में काम करें जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरे। केतन कहते हैं, 'मेरी खेती में कोई रुचि नहीं है। मैं चाहता हूं कि मुझे किसी बड़ी फैक्ट्री में नौकरी मिल जाए ताकि मेरे घर का जीवन स्तर सुधरे। मैं अपने घर के लिए एक टीवी और एक रेफ्रिजरेटर लेना चाहता हूं।'
 
भारत सरकार ने अप्रशिक्षित लोगों को हुनर प्रदान करने के लिए एक नया कार्यक्रम शुरू किया है। सरकार का कहना है कि वह अगले सात साल में केतन सावंत जैसे 40 करोड़ लोगों को हुनर प्रदान करना चाहती है।
 
यह प्रशिक्षण सफलतापूर्वक हासिल करने वाले लोगों को उनके हुनर और प्रशिक्षण के ब्यौरे वाले स्किल कार्ड और सर्टिफिकेट दिए जाएंगे। उम्मीद की जा रही है कि इससे उनके लिए नौकरी पाने की गुंजाइश बढ़ेगी।
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कुशल कारीगर की जरूरत : भारत की सिर्फ 2.3 फीसदी आबादी को प्रशिक्षित माना जाता है। जबकि अमेरिका की 52 फीसदी, जापान की 80 फीसदी और दक्षिण कोरिया की 96 फीसदी आबादी प्रशिक्षित है।
 
लेकिन नौकरी देने वालों के लिए सिर्फ यही समस्या नहीं है। रियल एस्टेट बिजनेस चलाने वाले निरंजन हीरानंदानी कहते हैं कि प्रशिक्षित लोगों में भी गुणवत्ता का अभाव होता है और उन्हें नौकरी पर लिए जाने के बाद फिर से प्रशिक्षण दिया जाता है।
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वो कहते हैं, 'आप किसी इंजीनियरिंग संस्थान से सिविल इंजीनियरिंग में गोल्ड मैडलिस्ट को नौकरी पर रखते हैं लेकिन उसे यह नहीं पता कि भवन-निर्माण कैसे किया जाता है। इसकी वजह यह है कि वह कभी भवन-निर्माण स्थल पर नहीं गया, क्योंकि उसकी शिक्षा में इसकी जरूरत ही नहीं है।'
 
'एक समस्या तो यह है और दूसरी समस्या यह है कि प्लम्बर को यह पता नहीं कि शिकंजे को कितना कसना है। वह इसे अनुभव और चीजों को तोड़कर सीखता है।' 'यह बहुत खराब स्थिति है कि उन्हें पता ही नहीं होता कि काम कैसे किया जाना है। वह इसे काम करने की जगह पर ही सीखते हैं और कितना सीखते हैं यह इस पर निर्भर करता है कि वह किसके साथ काम करते हैं।'
 
हर क्षेत्र में जरूरत : लेकिन अगर सरकार बड़ी संख्या में लोगों को हुनरमंद करने में कामयाब हो जाती है तो नौकरी पैदा करना एक अलग मुद्दा है। हर साल करीब 1.2 करोड़ लोग काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं और चूंकि आधी से ज्यादा आबादी 25 साल से कम उम्र की है इसलिए नौकरी चाहने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले दस सालों में जिस तरह की नौकरियों की मांग हुई है उसे देखते हुए यह तय है कि भारत के सामने बड़ी चुनौती है।
 
आईआईटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर जयंत जोसे थॉमस कहते हैं, 'आधे से ज्यादा नौकरियां भवन-निर्माण क्षेत्र में ही पैदा हुई हैं। लेकिन भवन-निर्माण क्षेत्र में प्रगति धीमी रही है। भारत के लिए चुनौती यह है कि वह विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियां पैदा करे, खासकर उत्पादन के क्षेत्र में।'
 
अब भारत का दांव सरकार के 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम पर है जिसका उद्देश्य देश को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब में बदलना है जो लिए विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सके और हुनर आधारित नौकरियां दे सके।
 
इसलिए भी क्योंकि मजबूत आर्थिक विकास को इन नौकरियों की जरूरत है और हुनरमंद लोगों को भी, जो यह कर सकें।

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